गुरुवार, 31 दिसंबर 2009
नए साल की शुभ कामनाएं .
सभी मित्रों शुभचिंतकों ,विद्वान् पाठकों ,लेखकों ,कवियों, कलाकारों , को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं । हम सभी संकल्प लें कि हम नए साल में एक स्वस्थ , जागरूक ,सह्रदय समाज के निर्माण में अपनी भूमिका निभाएं । हम अपने आसपास के समाज में ही देखें तो दिखाई देगा कि करने के लिए बहुत कुछ है । कमी है तो सिर्फ द्रष्टिकोण की । मौजदा हालात को बेहतर बनाने संकल्प की । मसलन गंगा या अन्य नदियों को प्रदुषण मुक्त करने के लिए राष्ट्रीय संकल्प से अधिक क्षेत्रीय संकल्प महत्वपूर्ण है । उसी प्रकार सामाज के लिए क्षेत्रीय जागरूकता अधिक महत्वपूर्ण है । अपने आसपास की चीजों को जो की समाज के हित में नहीं है उन्हें बदलने की पहल हमें ही करनी होगी । हमारे आसपास बहुत से ऐसे व्यक्ति महिलाएं ,बच्चे या पशु हैं जिन्हें हमारी जरुरत है । हम अपनी लेखनी उनके हितों के लिए भी चलायें । क्षेत्रीय स्तर साहित्य साधना कर रहे संगठनों को इस ओर भी सक्रिय होना चाहिए ।
रविवार, 27 दिसंबर 2009
मछलियाँ कहाँ गई ?
स्याल्दे से आते हुए देख रहा था कि रामगंगा नदी में जल स्तर बहुत कम हो गया है । यह गर्मियों के लिए अच्छा संकेत नहीं है । और इस तरफ किसी का भी ध्यान नहीं है । जाते समय केदार के पुल से देखा कि बड़ी -बड़ी मछलियाँ धूप सेंकते हुए तैर रहीं है । जबकि मासी क सांगू रो पुल के आस पास अब मछलियाँ दिखनी ही बंद हो गई है । मछुआरों ने कारतूस और महाजाल /फांस लगाकर लगभग सारी मछलियाँ मार डाली है। बहुत पहले ,मुझे अब भी याद है कि सांगू रौ में तो अनगिनत मछलियाँ और बड़ी-बड़ी मछलियाँ इसी तरह जाड़ों में धूप सेंकने आया करती थी और लोग बड़े चाव से इन्हें देखने आते थे । लोगों क शिकार खाने कि हवस ने इस प्राकृतिक मत्स्य विहार का खात्मा कर दिया है । जबकि केदार क बारे में मालूम हुआ कि यहाँ मछलियों क शिकार पर पाबन्दी है । तब मासी में इस तरह की पाबन्दी क्यों नहीं ?
शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009
ठंडी सुबह की शुरुआत
कल रात इंटरनेट जल्दी चला गया था तो लिख नहीं पाया । सुबह ठण्ड के मारे और कुछ काम तो हो नहीं पाता लगता है कि हिम युग में हूँ इस ठण्ड में या तो दौड़ने निकला जा सकता है या फिर कोई मश्शकत का काम करने निकला जा सकता है ।ताकि शरीर में गर्मी का संचार हो और पसीना निकल आये ।हर रोज रात को निश्चय करके सोता हूँ कि सुबह पांच बजे उठकर घूमने जाऊंगा लेकिन सुबह उठकर देखता हूँ कि अभी तो बहुत अँधेरा है । जंगली जानवरों -सुअरों, बाघों , सियारों के घूमने का समय है । मेरे लिए ब्लॉग पर बैठ कर आराम से लिखना ही ठीक रहेगा । सोच रहा हूँ कि मई में एक पत्रिका 'सृजन सदर्भ' के नाम से प्रकाशित करूँ । इसके लिए लेखकों से रचनाएँ आमंत्रित करनी होंगी । अभी से तयारी करनी होगी । आज एक दो गावों में जाना है । एन जी ओ शुरू करने के बाद हर व्यक्ति से जुड़ने का अवसर मिला है । गावों को करीब से देखने का मौका मिला है । लोग और उनकी परेशानियों को जानने का मौका मिला है ।
गुरुवार, 24 दिसंबर 2009
पाले कि चादर
यूँ तो सुबह बहुत जल्दी उठ गया था लेकिन चाय पी कर फिर बिस्तर में घुस गया था और उजाला होने के बाद बाहर निकल कर देखा कि बहुत कड़ाके की ठण्ड है । बाहर निकलने की हिम्मत नहीं आ रही है ।मैंसोच रहा था कि आज कोई चिड़िया गा क्यों नहीं रही ? इतनी ठण्ड में कौन पक्षी बाहर निकल कर गायेगा । जबकि बाहर घना कुहरा और जमीन में सफ़ेद पाले की चादर बिछी है और पानी छूना तो आग छूने के समान हो रहा है । ऊँची पहाड़ियों में तो धूप निकल आई होगी .और इस मासी की घाटी में तो कुहरा छंटने के बाद ही धूप आएगी .दिन इतने छोटे हो गए हैं कि बारह बजने के बाद तो लपक कर सीधे सांझ पेश आ रही है । उमा कह रही है कि महाशय जी नहा लो लेकिन मैंने हाथ खड़े कर दिए हैं । अब दिन के काम की रुपरेखा तैयार करता हूँ । अब पक्षियों के गाने की आवाज आने लगी है लगता है कि धूप आ गई है ।
बुधवार, 23 दिसंबर 2009
हर पल एक नया रंग
सुबह से ही बहुत व्यस्त था .दिनु की लड़की हुई है . भतीजी हुई है ताऊ बन गया हूँ । एक अद्भुत अनुभव ।ताऊ बनने का ।मुझे अपने ताऊ याद आ गए । कुछ देर संस्था का कार्य किया । फिर टेक्सी चलाई .और फिर वापस आकर धूप सेंकने बैठ गया दिन में धूप में बैठा देख रहा था कि किरणें पहाड़ों को हर पल एक नए रंग से रंग रही थी । पहाड़ हर पल अपनी आभा बदलते जा रहे थे । लग रहा था कि हम सब प्रकृति के केनवास के चित्र हैं । ऐसे चित्र जिनके भीतर भी एक केनवास है जिसमें कि हमें हर पल रंग भरना है यह हम पर निर्भर करता है कि हमकिस तरह के चित्र बनाते हैं कैसा रंग भरते हैं ।
मंगलवार, 22 दिसंबर 2009
यह समय
अगर हमारे पास काम ज्यादा है तो हमें न तो वक़्त का ख़याल रहता है और न ही हमें प्रकृति से कोई लेना देना होता है । हम भावना शून्य हो जातें हैं संवेदना ख़त्म हो जाती है । और अपने ही समाज से कट जाते हैं हमें अपने काम से अलावा और कुछ नहीं दिखाई देता है जब हम अपने काम से थक चुके होते हैं और सोचते हैं कि थोड़ा बाहर देख लें तो बाहर देखने के लिए बहुत देर हो चुकी होती है । हम धूप के आने और जाने का अनुभव भूल चुके होते हैं । यही नहीं हम रिश्ते भी भूल चुके होते हैं । काम कितना ही हो खुद को प्रकृति से कभी दूर नहीं करना चाहिए । एक गाय और एक आदमी का रिश्ता बना रहना चाहिए । एक पेड़ और एक आदमी का रिश्ता बना रहना चाहिए । आदमी और आदमी का रिश्ता बना रहना चाहिए । और यदि प्रकृति के साथ भावनात्मक रिश्ता ख़त्म हो गया तो प्रकृति को ख़त्म होने में ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा । तब हम स्वयं को कहाँ बचा पाएंगे ।
यह समय सबकुछ बचाने का है हमें धूप बचानी है । वर्षा बचानी है । पेड़ बचाने हैं। हवा बचानी है । और मानवीय संवेदना बचानी है तथा प्रकृति के साथ अपने रिश्ते बचाने हैं ।
यह समय सबकुछ बचाने का है हमें धूप बचानी है । वर्षा बचानी है । पेड़ बचाने हैं। हवा बचानी है । और मानवीय संवेदना बचानी है तथा प्रकृति के साथ अपने रिश्ते बचाने हैं ।
सोमवार, 21 दिसंबर 2009
किसान और महंगाई
किसान फिर निराश दिखाई दे रहे हैं वर्षा के कोई आसार नहीं दिख रहे हैं और यदि इस माह वर्षा नहीं हुई तो पहाड़ी क्षेत्रों में गेहूं ,सरसों की फसल मार खा जाएगी । बाज़ार दिन पर दिन महँगा होता जा रहा है गरीब और मजदूरों का क्या होगा यह सरकार के एजंडा में अभी नहीं आया । एक गरीब किसान रो पीट कर /डर के मारे अपना वोट तो दे देता है लेकिन बाद के पांच साल रोता रहता है वोट देने के बाद फिर उसकी कोई नहीं सुनता है । जबकि चुनावों में एक एक नेता लाखों करोड़ों खर्च कर डालता है । खैर में फसल पर बात कर रहा था हमारे यहाँ जल प्रबंधन के साथ साथ फसल प्रबंधन की भी आवश्यकता है । हमें परम्परागत फसल चक्र में परिवर्तन करना होगा तथा बाजार को भी अपने फसल प्रबंधन से जोड़ना होगा ताकि किसान सरकार पर निर्भर न रहे । तथा दिन पर दिन बढ़ती महंगाई से प्रभावित न हो ।
शनिवार, 5 दिसंबर 2009
अंधेरे का साथ
एक बार जी में आ रहा था कि कुछ देर मीठी धूप में सो लेना चाहिए । हरी धरती और नीले आकाश को देखता रहूँ । रोजमर्रा की सारी झंझटों को एक किनारे फैंक दूँ । न तो पत्नी की बाहें हों न प्रेमिका का ख़याल । लेकिन इन्हीं सारी झंझटों ने बुरी तरह घेर कर रखा है। और देखते -देखते धूप की तपिश कम हो गई । लगा की पत्नी एक गिलास चाय ले आती तो ठीक रहता । उमा ने दो बार चाय पिलाई भी । पत्नी और बच्चों से घिरा उन्हीं से बतियाते हुए दिन निकल गया , बच्चों के बीच भी लगा कि सारी परेशानियों से दूर हूँ । धूप के यूँ ही चले जाने का कोई मलाल नहीं हुआ । धूप गई तो कोई बात नहीं खूबसूरत पहाड़ तो साथ हैं । और जब अँधेरा इन्हें भी ढँक लेगा तो खूबसूरत अँधेरा तो साथ रहेगा ही ।अँधेरा- एक मौन , एक विराम । नई शुरुआत के लिए ।
शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009
आज फिर कई दिनों बाद ब्लॉग पर बैठा हूँ , सुबह सोचा था कि आज तीन ग्राम पंचायतों का भ्रमण करूंगा लेकिन एक तलाई और अफों में ही दिन ढलने लगा । दिन इतने छोटे हो गए हैं कि कब दिन निकला और कब ढल गया पता ही नहीं लगता । लौटते हुए सोच रहा था कि नदी में पानी का स्तर अभी से गिरना शुरू हो गया है जंगलों में पेड़ों की सघनता कम हो गई और सबसे महत्त्व का और ध्यान देने की बात है की जंगलों से छोटे जीव जंतु लगभग गायब हो गए हैं जिससे की बाघ और चीतों का पारंपरिक भोजन जंगलों में ख़त्म हो गया है जिस कारण बाघों और चीतों /तेंदुओं ने गावों पर हमला करना शुरू कर दिया है । अभी कुछ दिन पहले अखबार में पढ़ा था कि उत्तराखंड में गत वर्ष करीब १३ बाघ मारे जा चुके हैं । जो कि एक चिंता का विषय है । बाघों का इस तरह आक्रामक हो जाने का एक मुख्य कारण जंगलों उनके भोजन की कमी भी है ।
सोमवार, 23 नवंबर 2009
आज कई दिनों बाद अपने ब्लॉग पर बैठा हूँ । लिखने के लिए बहुत कुछ है शुरुआत हिन्दी विरोधी राज ठाकरे से करता हूँ । यह हिन्दुस्तान के विरोध की दस्तक भी हो सकती है । यानी राज ठाकरे के अलगाव वादी नीति की शुरुआत । भारतीय संसद को इस घटना को पूरी गंभीरता से लेते हुए सख्त कदम उठाना चाहिए . हिन्दी भाषियों को राज ठाकरे की इस घिनोनी हरकत का विरोध सड़क पर आकर करना चाहिए । कोई भी संभ्रांत भारतीय हिन्दी का विरोध नहीं कर सकता है ।आज राज ठाकरे ने हिन्दी का विरोध किया कल दक्षिण में कोई हिन्दी विरोधी पैदा होगा परसों उत्तर में कोई हिन्दी विरोधी पैदा होगा और सरकार ख़ामोशी से सब देखती रहेगी सरकार की यह उदासीनता उचित नहीं ।
शनिवार, 24 अक्टूबर 2009
कलम मैं ताकत
दिन में एक चक्कर गैरखेत गया हिमाच्छादित पहाडियों ने मन मोह लिया । आज लगभग छः माह बाद दो कवितायें लिखी । हो सकता है की अभी सोते सोते एक कविता और लिख डालूं । काफ़ी समय से लग रहा था की मैं कविताओं की दुनियां से रिटायर हो गया हूँ । वैसे भी हर गंभीर और मौलिक विधा लगभग रिटायर -सी होती जा रही है । कोई कह रहा है कि कविता मर रही कोई कह कर चला जा रहा है कि कहानी ,उपन्यास,या निबंध मर रहा है । दरअसल ये सब हारे/ ऊबे/चुके हुए लोग हैंजिनके पास नया कहने को कुछ नहीं है जो आम जन को उकेरता हो। उनका मानना है कि कलम बेअसर हो चुकी है। उन्हौंने लिखना बंद किया तो घोषणा कर डाली कि यह सब तो मर रहा है । जो अपनी दूकान बंद कर जुआ घर मैं बैठे हैं। या नशे मैं धुत्त हैं ।या समाज के बारे मैं सोचना बंद कर दिया है। उन्होंने लिखना बंद किया तो पढ़ना भी बंद किया । लेकिन सौभाग्य से यह सब फल-फूल रहा है। लोग लिख रहे हैं । और समाज की चेतना को झकझोर भी रहे हैं । उनकी कलम मैं ताकत है।
गुरुवार, 22 अक्टूबर 2009
शिक्षा में गावं और गरीब
इस बीच लगातार व्यस्तता के कारण ब्लॉग पर नहीं बैठ पाया । कई गावों मैं घूमा कई लोगों से मिला गावों और पहाड़ को बिल्कुल करीब से देखा । मन को बाँध लेने वाले पानी के बहते गधेरे नदियाँ और हरियाली । लेकिन उतनी ही चिंताजनक अशिक्षा और गरीबी । शिक्षा, विशेष कर उच्च शिक्षा में तो गावं के लिए कोई जगह नहीं है । प्रतिभाओं के लिए भी नहीं , यदि जगह है तो धनी शहरियों के लिए । माननीय कपिल सिब्बल जी की शिक्षा नीति में तो गरीब ,गावं के लिए तो कोई जगह नहीं दिखाई दे रही है । वहाँ एक वर्ग विशेष है जिसके लिए गावं और गरीब का गला घोंटा जा रहा है । एक व्यापक वर्ग को वेहतर उच्च शिक्षा से वंचित रहना होगा माननीय कपिल सिब्बल जी की शिक्षा नीति से समाज के एक बड़े वर्ग के युवाओं में अपने भविष्य के प्रति घोर निराशा उत्पन्न होगी । जो कि समाज के लिए कोई अच्छा संकेत नहीं है ।
बुधवार, 14 अक्टूबर 2009
ठण्ड एकदम बढ़ गई । मौसम में यह परिवर्तन बहुत सुखद लगा । परसों मोहना गया था । मोबाइल से कुछ सांझ के चित्र खींचे लेकिन अफसोस कि ढलती सांझ को शब्दों में नहीं ढाल पाया । और मुस्कराती हुई साँझ पलटकर चली गई । और इसी के साथ प्रकृति का परिधान भी बदल गया । और इससे पहले कि अंधेरे का परदा कायनात को ढक ले मैं और उमा मासी को लौट आए ।
शनिवार, 10 अक्टूबर 2009
विश्व शान्ति का स्वरुप क्या है ? मानक क्या हैं ?
आजकल शाम होते-होते बुरी तरह थक जा रहा हूँ । न लिखने की फुर्सत न पढ़ने की । उमा का तो और भी बुरा हाल हो जाता है । सुबह ४ बजे से काम पर शुरू हो जाती है और रात बिस्तर पर जाने तक लगातार काम । इसी आपाधापी के चलते आजकल वह कमजोर भी हो गई है ।
कल समाचार पढा कि बराक ओबामा को नोबेल पुरूस्कार मिला है । लगा कि नोबेल समिति ने इस पुरुस्कार की घोषणा जल्द बाजी में कर दी है । ओबामा महोदय की कार्य शैली को कम-से-कम तीन -चार साल देख लेना चाहिए था। पुरूस्कार की व ओबामा महोदय जी की भी महत्ता घटी है। इसे कम-से-कम गौरवशाली उपलब्धि तो नहीं कहा जा सकता है। नोबेल पुरूस्कार की गिरती साख को देखते हुए इस पुरुस्कार को या तो बंद कर देना चाहिए या इसी के समकक्ष एक नए पुरूस्कार का सर्जन कर एक नई समिति बनानी चाहिए जिसमें कि इस विश्व स्तर के पुरूस्कार को बांटने का विवेक हो । इस पुरूस्कार के साथ एक सबसे बड़ी समस्या है कि यह पुरूस्कार अंग्रेजी से बाहर नहीं जा पा रहा है जिससे यह नोबेल समिति यह साबित कराती है के अंग्रेजी के अलावा दुनिया के किसी भी साहित्य में किसी भी विज्ञान में या अन्य विषयों में कुछ भी श्रेष्ट नहीं है , और अंग्रेजों के अलावा कोई दूसरा व्यक्ति श्रेष्ट नहीं है । बराक ओबामा महोदय के विश्व शान्ति के प्रयास क्या हैं ?
कल समाचार पढा कि बराक ओबामा को नोबेल पुरूस्कार मिला है । लगा कि नोबेल समिति ने इस पुरुस्कार की घोषणा जल्द बाजी में कर दी है । ओबामा महोदय की कार्य शैली को कम-से-कम तीन -चार साल देख लेना चाहिए था। पुरूस्कार की व ओबामा महोदय जी की भी महत्ता घटी है। इसे कम-से-कम गौरवशाली उपलब्धि तो नहीं कहा जा सकता है। नोबेल पुरूस्कार की गिरती साख को देखते हुए इस पुरुस्कार को या तो बंद कर देना चाहिए या इसी के समकक्ष एक नए पुरूस्कार का सर्जन कर एक नई समिति बनानी चाहिए जिसमें कि इस विश्व स्तर के पुरूस्कार को बांटने का विवेक हो । इस पुरूस्कार के साथ एक सबसे बड़ी समस्या है कि यह पुरूस्कार अंग्रेजी से बाहर नहीं जा पा रहा है जिससे यह नोबेल समिति यह साबित कराती है के अंग्रेजी के अलावा दुनिया के किसी भी साहित्य में किसी भी विज्ञान में या अन्य विषयों में कुछ भी श्रेष्ट नहीं है , और अंग्रेजों के अलावा कोई दूसरा व्यक्ति श्रेष्ट नहीं है । बराक ओबामा महोदय के विश्व शान्ति के प्रयास क्या हैं ?
बुधवार, 7 अक्टूबर 2009
बर्षा चक्र
आज बुरी तरह थक गया हूँ । या बुखार आने वाला है । लेकिन सोऊंगा तो ब्लॉग लिखकर ही । कल मैंने लिखा था कि किसान को आर्थिक सुरक्षा देनी होगी । तभी वह अपनी खेती को बढ़ाने या खेती पर अपनी निर्भरता को मजबूत करेगा । पहाडों में खेती पर तो किसान जिंदा नहीं रह सकता । यहाँ जहाँ पर खेती बर्षा पर निर्भर है वहां परम्परागत बुआई में या फसल चक्र में परिवर्तन के साथ -साथ समय चक्र में भी परिवर्तन की आवश्यकता है क्योंकि पिछले कुछ बर्षों से यह देखने में आ रहा है कि बारिश का समय एक-डेढ़ माह आगे खिसक गया है यानी जो बारिश जुलाई -अगस्त में होती थी वह बारिश सितम्बर अक्टूबर में होने लगी है। इससे फसल का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है । और हर साल सूखे की स्थिति उत्पन्न हो रही है । और किसानों में हर साल एक निराशा घर कर जाती है। मैंने कई जगह देखा है कि वहां किसान वारिश होने के बाद ही बोआई करते हैं और बर्षा चक्र के साथ चलने के कारण अच्छी फसल प्राप्त करते हैं ।
मंगलवार, 6 अक्टूबर 2009
हमारे किसान
आजकल गावों में भ्रमण कार्यक्रम में व्यस्त हूँ । कल और परसों बारिश की वजह से नहीं गया । किसान हाड़ तोड़ मेहनत करता है । उसपर यदि समय पर बारिश नहीं हुई तो किसान बहुत हताश हो जाता है । उसे अपने व बच्चों का भविष्य शून्य दिखाई देता है ग्रामीण व छोटे किसानों का भविष्य तो बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है । सारी मेहनत के बाद किसान बाज़ार की ओ़र ताके तो क्या होगा ? वह खेती छोड़ मेहनत मजदूरी की तरफ़ भागेगा । किस्सान के पलायन के साथ ही एक परम्परा का भी समाप्त होने का खतरा रहता है । हर किसान के भीतर एक पीढियों पुरानी परम्परा भी होती है । किसान के पलायन के साथ ही गावं और जमीन के भी प्रभावित होने की पूरी संभावना रहती है । इसलिए किसी भी प्रकार हो किसान को आर्थिक सुरक्षा मिलनी चाहिए ।
गुरुवार, 1 अक्टूबर 2009
जीवन की रिक्तता
असोज का महीना क्या लगा कि घर के काम में उलझ कर रह गया हूँ -यह भी एक अनुभव है . दिन भर काम करने के साथ -साथ यह भी सोचना होता है कि आज ब्लॉग पर क्या लिखूं । हमारे जीवन में हर रोज कुछ न कुछ ऐसा घटित होता है कि हमें वह पल याद रहता है और हम कुछ दिन तक अपने मित्रों से उस बात का जिक्र करते हैं । वह एक सुखद या दुखद स्वप्न भी हो सकता है । या एक रिक्तता -जिसका जिक्र भी बहुत महत्व का होता है । कुछ लोग खालीपन से भागते हैं ,जबकि कुछ ऐसे भी हैं जो अपने जीवन के खाली स्थान को सुरक्षित रखना चाहते हैं । ताकि जिंदगी की भाग -दौड़ से उबने के बाद अपनी जिंदगी के खाली कमरे में आ कर कुछ पल आराम से बिताये जा सकें और इस रिक्तता से नई ऊर्जा प्राप्त की जा सके । यह रिक्तता आत्ममंथन की प्रेरणा देती है हमें चिंतन का अवसर मिलता है । और हम इत्मीनान से पीछे और आगे देख सकते हैं । अपने रास्ते तय कर सकते हैं । यह खालीपन फूलों की सुगंध से भरा होना चाहिए ।
बुधवार, 30 सितंबर 2009
याद नहीं स्वप्न
रात जो स्वप्न देखे वे पूरे याद नहीं रहे । आधे -अधूरे । जिनसे कोई संकेत नहीं पकडा जा सकता । आजकल मन्दिर का काम देख रहा हूँ तो सपने भी मन्दिर से ही सम्बंधित हो रहे हैं । लेकिनगावं मैं होने वाली भावी घटनाओं से उनका कुछ न कुछ संकेत तो है ही ।
दिन में घरेलू काम से फुर्सत मिलाने के बाद आफिस में बैठकर संस्था का काम देखा ।कल के लिए कार्यक्रम की रूप रेखा तय की ।
दिन में घरेलू काम से फुर्सत मिलाने के बाद आफिस में बैठकर संस्था का काम देखा ।कल के लिए कार्यक्रम की रूप रेखा तय की ।
मंगलवार, 29 सितंबर 2009
महिलाओं की दिनचर्या
नीद जल्दी खुल गई थी . लेकिनअंधरे की वजह से बाहर निकालने का मन नहीं कर रहा था । सुबह जाड़ा दस्तक देने लगा है । दिन गर्म और शाम फिर ठंडी । गावों में महिलाओं की दिनचर्या बहुत व्यस्त होने लगी है सुबह से ही उन्हें घास काटने का तनाव घेर लेता है फिर खाना बनाने की फिक्र दूसरी तरफ़ अनाज व अन्य फसलों को कूटने/मानने /सुखाने -सभालने की मारामारी ,तीसरी चिंता की यदि वारिश हो गई तो बर्ष भर के किए कराये पर पानी फ़िर जायगा -सारे काम आनन -फानन में करने हैं । तब माना जायगा की असोज बटोर लिया है । पहाड़ का दिन महिलाओं के लिए पहाड़ की चढाई जैसा कठिन होता है शाम होते-होते इतना थक चुकी होती हैं कि अपने लिए खाना बनाने की भी सामर्थ्य नहीं रहती । और अगर बच्चे छोटे हों ,उन्हें घर पर देखने वाला कोई न हो तो महिलाओं के साथ -साथ बच्चों की स्थिति भी बहुत दयनीय हो जाती है । रोजगार के लिए पलायन ने पहाड़ की महिलाओं /बूढों और बच्चों को एक भयानक अकेलापन दिया है । पहाडों का सौंदर्य जितना अद्वितीय है समस्यायें भी उतनी ही विकट हैं ।
सोमवार, 28 सितंबर 2009
धूप में शब्द
धूप कहना चाह रही थी कि मैं धूप हूँ । और तुम छांह ढूंढ़ लो ।
लेकिन शब्द नहीं मान रहे थे । वे निकल पड़े चरवाहों के साथ । शब्द धूप में तपना चाहते थे ,वे सारी गर्मी/सारा तेज सोख लेना चाहते थे अपने भीतर , शब्द मेरी आंखों को देना चाहते थे तेज
दिन में सोच रहा था कि आज शाम को काफी लिखूंगा लेकिन खाना खाते ही पलकें भारी लगाने लगी । और ज्यादा देर तक कंप्यूटर पर बैठना नहीं हो सकेगा ।
लेकिन शब्द नहीं मान रहे थे । वे निकल पड़े चरवाहों के साथ । शब्द धूप में तपना चाहते थे ,वे सारी गर्मी/सारा तेज सोख लेना चाहते थे अपने भीतर , शब्द मेरी आंखों को देना चाहते थे तेज
दिन में सोच रहा था कि आज शाम को काफी लिखूंगा लेकिन खाना खाते ही पलकें भारी लगाने लगी । और ज्यादा देर तक कंप्यूटर पर बैठना नहीं हो सकेगा ।
रविवार, 27 सितंबर 2009
लेकिन सुकून
कल लिखने का मन नहीं किया । थक गया था । गावं कैसे भी हों होते बहुत सुंदर हैं शांत और गंभीर । चारों ओर से प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य से घिरे । जिस गावं में भी जाना होता है उस गावं में ही लगता है कि यहीं घर बनाकर रहा जाय। आज तो लगभग गावं सड़क से जुड़ गए हैं लेकिन पुराने समय में लोगों ने अपना समय बहुत कठिनाई में गुजारा होगा । तब सड़कें नहीं थी पैदल मार्ग प्रचलन में थे । आज की तरह हर गावं के नजदीक बाज़ार नहीं थे । लोगों को रोजमर्रा की चीजें लेने बहुत दूर तक पैदल ही जाना होता था । लेकिन जरूरतें भी बहुत कम हुआ करती थी अनाज व शाक- सब्जी का उत्पादन घर पर ही प्रयाप्त हो जाता था पानी की कोई कमी नहीं थी वे लोग जो तमाम कठिनाइयोंऔर असाध्य रोगों के बावजूद जो बच गए वे बहुत ताक़तवर होते थे तथा शारीरिक श्रम बहुत किया करते थे । तथा खाने में दूध/दही/ छाछ /घी का प्रयोग किया करते थे क्योंकि पशु पालन तब मुख्य व्यसाय था । और हर घर में दूध, दही,घी की कोई कमी नहीं थी । । तब लोग घरेलू इलाज पर ज्यादा निर्भर होते थे । जबकि आज देखने में आ रहा है कि ऐलोपथी से ऊबे हुए लोग घरेलू /आयुर्वेदिक इलाज की ओ़र झुक रहे हैं । पहाडों में दूर दूर ऊँचाइयों में बसे गावों को देख कर पुराने ज़माने के लोगों की याद आई । आज सुविधाओं ने जीवन को बहुत आसान बना दिया है । हर चीज मनुष्य के वश में है । लेकिन सुकून नहीं ।
गुरुवार, 24 सितंबर 2009
जादुई मिठास .
कल अल्मोड़ा गया था ।साथ में -मां नंदा देवी सेवा समिति के अद्ध्यक्ष श्री किशानंद उप्रेती जी भी थे । संस्था के पंजीकरण का नवीनी करण करवाया, देर होगई तो रात वहीं होटल में रुके । शाम को एक चक्कर बाज़ार घूमने गए यहाँ पर लोग शाम के वक़्त बाज़ार मैं घूमना ज्यादा पसंद करते हैं शाम के वक़्त में बाज़ार में अच्छी रौनक रहती है । लोग तरह-तरह की चीजों की खरीददारी ,घूमने,मिलने -मिलाने आते हैं ।लोगों की वाणी में एक तरह का जादुई मिठास है । शहर -एक बौद्धिक शहर भी है और खूबसूरत भी । सबसे खास बात यह है की शहर अपने भीतर गावं की संस्कृति को भी जीवित रखे हुए है ।
मैं और उप्रेती जी साथ ही रुके । रात देर तक संस्था के कार्यों के बारे मैं चर्चा करते रहे । लौट कर खाना खाकर कुछ देर पिताजी के साथ बैठा । बातचीत की । थकान महूसस हो रही थी .तो सोचा की जल्द ही डायरी लिख कर सो जाना चाहिए ।
मैं और उप्रेती जी साथ ही रुके । रात देर तक संस्था के कार्यों के बारे मैं चर्चा करते रहे । लौट कर खाना खाकर कुछ देर पिताजी के साथ बैठा । बातचीत की । थकान महूसस हो रही थी .तो सोचा की जल्द ही डायरी लिख कर सो जाना चाहिए ।
सोमवार, 21 सितंबर 2009
प्रतिदिन एक समय
दिन में अपने अन्य कार्यों के साथ सोच रहा था की आज अपने ब्लॉग पर क्या लिखूंगा और अब नींद के मारे बुरा हाल है मन कर रहा है कि छोड़ो भी अब क्या लिखना है । अधिकांश समय इसी कमरे में कम्प्यूटर पर बीता । कभी कुछ --कभी कुछ करता रहा ।उब गया तो रसोई में जाकर चाय बनाकर चाय पी ,फिर खेत में जाकर कुछ काम किया . बच्चों के साथ बैठा ,लौटकर फ़िर कमरे में आया कुछ पुरानी फाइलें देखी । कुछ किताबें तरतीबवार लगाई और अपनी डायरी के पुराने पन्ने पढ़े । कम से कम पाँच सौ पन्ने होंगे जिन्हें सम्पादित करना है । और कम से कम चार सौ कवितायें होंगी जिन्हें संपादित कर प्रकाशन के लिए तैयार करना है । अब इन्हीं कार्यों को प्रथिमकता की सूची में रखना होगा , प्रतिदिन का एक समय इस काम के लिए निर्धारित कर दूंगा ।
असोज के काम ने बहुत जोर पकड़ लिया है । लोग बाज़ार से बिल्कुल से गायब से हो गए हैं । लोग यानी खरीददार ।
असोज के काम ने बहुत जोर पकड़ लिया है । लोग बाज़ार से बिल्कुल से गायब से हो गए हैं । लोग यानी खरीददार ।
रविवार, 20 सितंबर 2009
आंखों में रंग
कोई और काम नहीं था सिवाय घर देखने के । सुबह उमा के साथ धान मानंने खेत में गया ,खेतों में काम करना मेरे लिए काफी आनंददायी काम है । खेतों में मैं प्रकृति के करीब होता हूँ पौंधों और मिट्टी से बातें कर सकता हूँ । हवा को सुन सकता हूँ । अपनी आंखों मैं भर सकता हूँ रंग पूरी प्रकृति के । रच सकता हूँ कोई तस्वीर मन के भीतर ।
खेत से लौटकर मैं सीधे अपने कम्प्यूटर कक्ष मैं आ गया । कुछ फाइलें चेक की । उमा मुझे कुछ घर के काम का निर्देश देकर फ़िर घास के लिए चली गई । मुझे उसके लौटने तक दिन के खाने की सारी तैयारी पूरी करके रखनी थी । खाना खा कर थोडी देर आराम करने के बाद वह फ़िर घास के लिए निकल गई . वह शाम तक बुरी तरह थक चुकी होती है । पहाड़ में औरतें बहुत मेहनत करती हैं । पूरे घर का बोझ उनके कन्धों पर टिका होता है । और ८०% आदमियों का भी । क्योंकि आदमी बाज़ार से शाम को दारु के नशे में धुत्त होकर घर पहुंचता है । दिनभर की थकी औरत को उसकी गालियाँ ,मार ,ताने और उसकी बुरी हालत को भी झेलना होता है ।
खेत से लौटकर मैं सीधे अपने कम्प्यूटर कक्ष मैं आ गया । कुछ फाइलें चेक की । उमा मुझे कुछ घर के काम का निर्देश देकर फ़िर घास के लिए चली गई । मुझे उसके लौटने तक दिन के खाने की सारी तैयारी पूरी करके रखनी थी । खाना खा कर थोडी देर आराम करने के बाद वह फ़िर घास के लिए निकल गई . वह शाम तक बुरी तरह थक चुकी होती है । पहाड़ में औरतें बहुत मेहनत करती हैं । पूरे घर का बोझ उनके कन्धों पर टिका होता है । और ८०% आदमियों का भी । क्योंकि आदमी बाज़ार से शाम को दारु के नशे में धुत्त होकर घर पहुंचता है । दिनभर की थकी औरत को उसकी गालियाँ ,मार ,ताने और उसकी बुरी हालत को भी झेलना होता है ।
शनिवार, 19 सितंबर 2009
पहाड़ और परेशानी
आज दिन बहुत थका देने वाला था । पहले गावं गया । वहां माईथान और धूणी मन्दिर मैं धूप बत्ती की । फिर वहाँ से लौटकर तिमिलखाल में आयोजित शहीद मोहन चंद्र शर्मा जी के पुण्य तिथि के दिन आयोजित श्रद्धांजलि समारोह में श्रद्धा सुमन अर्पित करने गया । लौटकर फलाहार लिया । पहली नवरात्रि का व्रत लिया था ।
तिमिलखाल की चढाई देख कर बहुत आश्चर्य हुआ कि यहाँ लोगों कोअपने घर तक पहुचने के लिए पहाड़ चदनेमें बहुत परेशानी होती होगी रोजमर्रा के सामान ले जाने में तो और भी दिक्कत का सामना करना पड़ता होगा आज के इस समय में तो जबकि हर घर तक को सड़क मार्ग से जोड़ा जा रहा है यह गावं वंचित कैसे रह गया .तथा इससे ऊपर के गावों में तो और भी अधिक बुरा हाल होगा, यहाँ की आबोहवा बहुत अच्छी है ।
तिमिलखाल की चढाई देख कर बहुत आश्चर्य हुआ कि यहाँ लोगों कोअपने घर तक पहुचने के लिए पहाड़ चदनेमें बहुत परेशानी होती होगी रोजमर्रा के सामान ले जाने में तो और भी दिक्कत का सामना करना पड़ता होगा आज के इस समय में तो जबकि हर घर तक को सड़क मार्ग से जोड़ा जा रहा है यह गावं वंचित कैसे रह गया .तथा इससे ऊपर के गावों में तो और भी अधिक बुरा हाल होगा, यहाँ की आबोहवा बहुत अच्छी है ।
गुरुवार, 17 सितंबर 2009
स्वप्न कथा
सुबह उमा ने ४ बजे उठा दिया, खेती के दिन हैं वह अपने दिन के काम की तैयारियों में लग गई ।और मैं अपने रोज के काम में । दिन कंप्यूटर पर बीता, कुछ देर खेत में काम किया । शाम को बाज़ार की तरफ़ निकला दोस्तों से गप्पें मारने । बंधू जी से गप्पें मारी लेकिन वहाँ मौलिक /सामाजिक बातें होती हैं सुरेश देव्तल्ला प्रधान , महेश वर्मा , भगवत सिंह रावत ,राजेंद्र बिष्ट ,चंदू भाई, से होता हुआ मिन्टो दीदी जी के घर ।
रचनात्मक कुछ भी नहीं । दिन के बेकार ही गुजर जाने का एहसास (बेकार गुजर जाना यानि सृजन किए बगैर गुजर जाना ) रात को होता है , तब दिन निकल चुका होता है । और हमारे पास एक रात होती है , स्वप्न देखने के लिए । वहाँ सृजन नहीं होता है - हो सकता है सृजन की प्रेरणा हो -स्वप्न अतीत भी है और भविष्य भी । स्वप्न अक्सर हमें रास्ते पर लाने की कोशिश करते हैं हमारा अंतर्मन हमारे भविष्य की गणना करता है बहुत दूर तक देखता है । आवश्यकता है तो स्वप्न को समझने के द्रष्टिकोण की ।
रचनात्मक कुछ भी नहीं । दिन के बेकार ही गुजर जाने का एहसास (बेकार गुजर जाना यानि सृजन किए बगैर गुजर जाना ) रात को होता है , तब दिन निकल चुका होता है । और हमारे पास एक रात होती है , स्वप्न देखने के लिए । वहाँ सृजन नहीं होता है - हो सकता है सृजन की प्रेरणा हो -स्वप्न अतीत भी है और भविष्य भी । स्वप्न अक्सर हमें रास्ते पर लाने की कोशिश करते हैं हमारा अंतर्मन हमारे भविष्य की गणना करता है बहुत दूर तक देखता है । आवश्यकता है तो स्वप्न को समझने के द्रष्टिकोण की ।
बुधवार, 16 सितंबर 2009
आस्था का केन्द्र
दिन में मैं और उमा गावं गए । मन्दिर निर्माण का कार्य देखा इशवरी दत्त ,बाला दत्त ,दामोदर ,प्रकाश चन्द्र , मोहन चन्द्र काम कर रहे थे । उमा घास काटने चली गई और मैं मन्दिर में रहा । सभी लोगों की आस्था का केन्द्र , यहाँ आकर सभी सर झुकाते हैं अपनी समस्याओं के समाधान चाहते हैं . अपनी गलतियों को स्वीकार करते हैं दिमाग मैं एक नई ताजगी और आत्मविश्वाश लेकर घर लौटते हैं . कुछ देर बाद मैं भी खेत में चला गया ,दिमाग को एक अद्भुत शान्ति मिलती है इन खेतों के बीच ।मुझे तो इन खेतों के बीच बहुत आनंद आता है लेकिन देख रहा हूँ कि उमा के पास काम की अधिकता हो गई है शाम होते -होते वह बुरी तरह थक चुकी होती है । जबकि अभी असोज का पूरा महीना शेष है । फसल भी कटनी है और घास भी काटनी है । इसे व्यस्थित करना होगा । सुबह एक आसमानी रंग की खुबसूरत चिड़िया घर के आगे के पेड़ पर बैठ गई यह आगंतुक चिड़िया थी । कुछ देर पेड़ की शाख बैठकर पर उसने गाना गया ।
मंगलवार, 15 सितंबर 2009
धान उनकी रग-रग में
कल बहुत थक गया था तो डायरी नहीं लिखी ,आज दिन में कुछ देर संस्था का काम किया । खेत में गया । उमा ने धान काटे थे मैंने उन्हें एक ढेर में लगाया ताकि चार पाँच दिन बाद उन्हें मान दिया जाय । हमारे यहाँ एक पीढ़ी इन धानों को बहुत प्यार करती है ये धान उनकी रग-रग में उगते हैं उनका अतीत इन्हीं धान की बालियों के साथ गुजरा वे आज भी ,उम्र के आखिरी दौर में अपने खेतों में बड़े प्यार से आते हैं हरे -भरे खेतों के बीच अपनी यादों को सींचते हैंऔर घर लौट कर अपने परिजनों के बीच खेत -बैल और फसल की यादों को बाँटते हैं । धान ही उनकी संस्कृति रही और धान ही उनका जीवन उनकी पूजा -तपस्या । और एक पीढ़ी को ये धान उलझन लगते हैं । उन्हें ये धान छोड़ कर शहर जाना है । खैर........ ।
अभी खाना खा कर कुछ देर इजा -बौज्यू के साथ बैठ कर बात चीत की । उससे पहले मुन्नू,कुन्नु और दिप्पी ने दिमाग का भुजिया बना कर रख दिया था । बारिश के बंद होने के साथ ही खेती बाड़ी के काम ने जोर पकड़ लिया है । यह समय किसानों के लिए बहुत ही व्यस्तता का होता है । पूरी सार किसानों से भरी पड़ी है । कोई फसल काट रहा है तो कोई उन्हें ढेर लगा रहा है । तो कोई दूसरी फसलों को काट कर घर को ले जा रहा है । चाय- नाश्ता, खाना -पानी सब खेत में । ऊपर से मौसम का भी डर है इसलिए सारे काम फ़टाफ़ट निबटाने हैं ।
अभी खाना खा कर कुछ देर इजा -बौज्यू के साथ बैठ कर बात चीत की । उससे पहले मुन्नू,कुन्नु और दिप्पी ने दिमाग का भुजिया बना कर रख दिया था । बारिश के बंद होने के साथ ही खेती बाड़ी के काम ने जोर पकड़ लिया है । यह समय किसानों के लिए बहुत ही व्यस्तता का होता है । पूरी सार किसानों से भरी पड़ी है । कोई फसल काट रहा है तो कोई उन्हें ढेर लगा रहा है । तो कोई दूसरी फसलों को काट कर घर को ले जा रहा है । चाय- नाश्ता, खाना -पानी सब खेत में । ऊपर से मौसम का भी डर है इसलिए सारे काम फ़टाफ़ट निबटाने हैं ।
रविवार, 13 सितंबर 2009
प्रेम की भाषा का जवाब
दिन बेकार -सा गया । यूँ तो करने को कुछ ख़ास नहीं था फ़िर भी कुछ काम करने बैठो तो बच्चों का उधम । परेशान होकर सोने जाओ तो बच्चे वहाँ भी नहीं छोड़ते ।बहुत सुखद है बाल लीला । लेकिन एक घंटे मैं दिमाग का भुजिया बना कर रख देते हैं ।और एक घंटे बाद दिमाग किसी काम का नहीं रहता । सिर्फ़ कुछ घरेलू काम किए । फूलों की छंटाई की । गाय और बछड़े को नहलाया -धुलाया । फूलों से बात करो तो फूल बातें करने लगते हैं . गाय से बातें करो तो गाय बातें करने लगती है . बिल्लियों से बातें करो तो बिल्लियाँ बातें करने लगती है प्रेम की भाषा का जवाब भी प्रेम से ही मिलता है । दादी जी का श्राद्ध था ।पिताजी ने श्राद्ध किया । उमा खाना खाकर घास लेने चली गई कुछ देर श्री नंदकिशोर मासीवाल और श्री प्रताप राम जी के साथ बैठ कर क्षेत्रीय विकास के सम्बन्ध पर चर्चा की । एक बार सोच रहा था कि बाज़ार घूम आऊं फिर सोचा कि खाली बाज़ार जाकर भी क्या करूँगा बच्चे सो गए तो मैं कम्प्यूटर पर बैठ गया । और शाम तक काम करता रहा ।
शनिवार, 12 सितंबर 2009
यह सौंदर्य और स्वप्न
आज सुबह से ही मौसम साफ़ था । चटख धूप । दिन में गावं गया ।खेत भर आए हैं । और जल्द ही फसल कटनी आरम्भ हो जायगी । मन्दिर का निर्माण कार्य देखा । लौटते हुए घाटी के सौंदर्य को निहारता हुआ आया । यह सौंदर्य स्वप्नों के एक ऐसे संसार में ले जाता है जहाँ जाकर इस दुनिया और वर्तमान का कोई होश नहीं रहता । अपने अस्तित्व का भान नहीं रहता है.स्वप्न इस हरियाली में खेलते हुए गुजरे अतीत के , स्वप्न प्रेम के , स्वप्न वर्तमान के ,इस प्रकृति में एकाकार होकर खोने के । इन पहाडों में ये आँखें दूर तक का सफ़र कर लेती हैं . विचारों को एक विराट खुला आकाश मिल जाता है . इसी अस्तित्वहीनता के बीच शब्द आकार लेने लगते हैं और जब ध्यान टूटता है चेतना लौटती है तो बनती है एक कविता . लौटकर खाना खाया । फिर आकर अपने कम्प्यूटर पर बैठ गया । पी४ पोएट्री पर एक कविता पोस्ट की । बाज़ार नहीं गया ।शाम के खाने के बाद कुछ देर पिताजी के साथ बैठ कर मन्दिर निर्माण के सम्बन्ध में बातें की । और फिर आकर कम्प्यूटर पर बैठ गया । डायरी पोस्ट भी हो गई है । अब सोने के लिए जाना ही ठीक होगा
शुक्रवार, 11 सितंबर 2009
छ: तारीख से लगातार बर्षा से चारों ओ़र गहरी हरियाली छा गई है । रामगंगा अपने उफान पर है ।ओह! इतना डरावना उफान । इतनी विशाल नदी को देखकर लगता ही नहीं इस नदी के अस्तित्व को कोई खतरा है लेकिन मई -जून में तो बारिश न होने के कारण इसके भविष्य को लेकर चिंता होने लगी थी ।इसका पानी बिल्कुल सूख चुका था । लोग बे हिसाब मछलियाँ नदी से उठा -उठा कर ले गए ऐसा पहले कभी नहीं देखा । इस बारिश से रास्तों के दोनों ओर कमर कमर तक लम्बी घास उग आई है खेत /जंगल सब हरे भरे हो गए हैं लगभग सभी गधेरों में पानी बहने लगा है काश! धरा का यह हरित कालीन सदाबहार होता । इन गाड़ गधेरों का पानी बारहों मॉस इसी तरह भरा पूरा बहता रहता तो पहाड़ से पलायन आधा रूक जाता। लोग इस पानी और जमीन से अपने लिए सोना उगाते ।
अभी इस अंधेरे में बहार बर्षा की पायल बज रही है -छम्म -छम्म! अँधेरा इतना सुहावना भी होता है ? मन करता है कि इस सुंदर अंधेरे में घुमने निकलूं और उड़ान भरूं मन के आकाश में ।
अभी इस अंधेरे में बहार बर्षा की पायल बज रही है -छम्म -छम्म! अँधेरा इतना सुहावना भी होता है ? मन करता है कि इस सुंदर अंधेरे में घुमने निकलूं और उड़ान भरूं मन के आकाश में ।
सोमवार, 7 सितंबर 2009
इसी बारिश में
दिन मैं तेज बारिश में पहाड़ों को नहाते देखा । पेड़ों,लताओं , फूलों, पत्तियों पर गिरती बूंदों से बजाने वाले संगीत की ताल पर उन्हें झूमते देखा , देखा कि हवा और बारिश मैं पेड़ नाचने /गाने लगते हैं । बारिश उनके लिए एक उत्सव है । लेकिन अतिब्रष्टि या तूफ़ान नहीं । इसी बारिश में उमा गाय के लिए घास काटने के लिए चली गई, लौटी तो भीग कर निज्झुत्त हो चुकी थी । एक गिलास गरम चाय बनाकर मेडम को दी । और मैंने भी पी । मुझे चाय पीने का मन हो ही रहा था ।
दिन में कुछ देर कम्प्यूटर पर कार्य किया मेल देखी । बारिश के कारण बाज़ार नहीं गया । सन्डे पोस्ट में छपी अपनी कवितायें पढ़ी । अच्छी लगी । कुछ देर बच्चों के साथ बैठ कर उनका स्कूल का काम देखा । बच्चों के बीच बैठना ,उनकी बातें सुनना , उनके साथ बात-चीत करना भी बहुत जरुरी है बाहर बारिश अभी भी जारी है
दिन में कुछ देर कम्प्यूटर पर कार्य किया मेल देखी । बारिश के कारण बाज़ार नहीं गया । सन्डे पोस्ट में छपी अपनी कवितायें पढ़ी । अच्छी लगी । कुछ देर बच्चों के साथ बैठ कर उनका स्कूल का काम देखा । बच्चों के बीच बैठना ,उनकी बातें सुनना , उनके साथ बात-चीत करना भी बहुत जरुरी है बाहर बारिश अभी भी जारी है
रविवार, 6 सितंबर 2009
एक धुएँ का शहर
आज सुबह ही दिल्ली से लौटा हूँ । नानी जी के पीपल पानी पर गया था । आधी दिल्ली तो रहने के लिए सबसे खतरनाक स्थान है ।ऐसी जगहों पर जो लोग अस्थाई तौर पर या कम वेतन पर काम कर रहे हैं उन्हें वापस अपने गावं या गावं के नजदीकी शहर मैं जाकर काम तलाश करना कर अपनी रोजी रोटी चलानी चाहिए । या स्वरोजगार ,खेती आदि करनी चाहिए क्योंकि वहाँ सबकुछ प्रदुषण मुक्त तो होगा । और कम खर्च में काम चल जायगा लेकिन दिल्ली तो लोगों का समंदर बनता जा रहा है ।भीड़ -अथाह भीड़ बेशुमार दौलत कमा कर भी लोगों के चेहरों पर सुकून नहीं दिखाई देता -बेचैनी का/दौड़ा-भागी का एक अंतहीन सिलसिला । इसी अशांति के कारण लोगों की सहनशीलता ख़त्म होती जा रही है । वहाँ गलियों में हवा के लिए जगह नहीं है । धूप के लिए जगह नहीं है । और रहना एक विवशता है । पेड़ भी उगना नहीं चाहते हैं । उनके लिए उगना भी एक विवशता है ।चारों ओर धुआं ही धुआं और शोर ही शोर ।
दिल्ली जाकर तो लगभग सभी मित्रों के यहाँ जाना होता है । रात बस में नींद नहीं आई रात भर बस फुटबाल की तरह उछालती हुई लाई। नाश्ता करके सो गया । उमा ने खाने के लिए जगाया । तरो-ताजा होकर खाना खाया फिर कंप्यूटर पर बैठा । मेल देखी बाद में बाज़ार को निकल गया मित्रों से मिला जगदिश पाण्डेय , राजेंदर सिंह बिष्ट ,चंदू भाई ,महेश वर्मा ,मुरली मनोहर ,नरेश कुमार , विपिन शर्मा आदि कई मित्र गण मिले घर आते आते काफी अँधेरा हो चुका था ।
दिल्ली जाकर तो लगभग सभी मित्रों के यहाँ जाना होता है । रात बस में नींद नहीं आई रात भर बस फुटबाल की तरह उछालती हुई लाई। नाश्ता करके सो गया । उमा ने खाने के लिए जगाया । तरो-ताजा होकर खाना खाया फिर कंप्यूटर पर बैठा । मेल देखी बाद में बाज़ार को निकल गया मित्रों से मिला जगदिश पाण्डेय , राजेंदर सिंह बिष्ट ,चंदू भाई ,महेश वर्मा ,मुरली मनोहर ,नरेश कुमार , विपिन शर्मा आदि कई मित्र गण मिले घर आते आते काफी अँधेरा हो चुका था ।
शुक्रवार, 28 अगस्त 2009
दिन भर तेज धूप
बाज़ार बंद होने के कारण दिनभर घर मैं ही रहा । संतोष मासीवाल जी से प्रिंटर मंगाया था वे आज दिन में लगा गए । दिन भर प्रिंटर को चलाना सीखा । सुबह एक बार लग रहा था कि वारिश होगी । लेकिन दिन भर तेज धूप रही कुछ लोग मिलने के लिए आए थे ।कुछ देर गप्पें मार कर चले गए । दिन किस तरह निकल गया कुछ पता ही नहीं चला । शाम होते -होते प्रिंटर पर काम करना सीख लिया । खाना खाकर कुछ देर पिताजी के साथ बैठकर बातचीत की तत्पश्चात आकर कंप्युटर पर बैठा ।
गुरुवार, 27 अगस्त 2009
शब्दों की डोर
पिछले तीन चार दिनों से कुछ लिख नहीं पाया । लिखने के लिए तो रोज बैठता था । लेकिन एक बार हाथ से छूटी शब्दों की डोर हाथ नहीं आ रही थी । कल कविताओं का एक नया ब्लॉग बनाया । उस पर दो कवितायें लिखी । दिन मैं एक चक्कर गावं गया हरियाली को देख कर तबियत खुश हो गई । लौटने का मन ही नहीं कर रहा था । दूर तक खुबसूरत जंगलों की चादर ओढे पहाड़ और बर्फ की चादर ओढे हिमालय के पहाडों की श्रंखलायें बाँध देती हैं कुछ लोगों से मिलकर लौट आया ।
सोमवार, 24 अगस्त 2009
आज इतना ही
सुबह मामा जी का फ़ोन आया कि नानी जी का देहांत हो गया मन किसी काम पर नहीं लगा । बहुत दुःख हुआ । दिन भर व्यस्त रहा । सांसद श्री प्रदीप टम्टा जी का भ्रमण कार्यक्रम था। घर आकर मालूम बिल्ली के बच्चे को गौल ले गया । बहुत दुःख हुआ ।एक बार पहले भी इसे गौल का मुँह से बचा कर लाया था । फिर पतंग बाघ के मुख से बचाया . शाम को कुन्नु का जन्म दिन था । साधारण तरीके से मनाया ।
आज इतना ही ।
आज इतना ही ।
रविवार, 23 अगस्त 2009
झूम रही है रात
दिन का अधिकांश हिस्सा घर पर ही गुजरा । दोपहर अपने अकेलेपनऔर खामोशी के कारण बहुत उदास सी लगाती है . लगता है कि इन पहाड़ी बीहड़ों में कुछ ढूंढ रही है इतवार होने की वजह से बच्चे भी घर पर ही थे । गप्पों का भी एक अंतहीन सिलसिला है । इसलिए फालतू गप्पबाजी से बचने की कोशिश करता हूँ । दिन मैं एक चक्कर भूमियाँ मन्दिर गया । गणेशोत्सव में भाग लिया । अपनी कविताओं के लिए एक ब्लॉग बनाने की सोच रहा था । लेकिन नहीं बन पाया । नींद के मारे पलकें झुकी जा रही हैं । बाहर कीड़ों की सीटी बजाने की आवाज आ रही है । बहुत मधुर संगीत है । अंधेरे में इन कीटों के संगीत पर झूम रही है रात । रात की यह चहल पहल और संगीत मय वातावरण बहुत आकर्षित करता है । अब बैठा नहीं जायगा । रात कितनी ही खुबसूरत हो नींद सुला ही देती है ।
शनिवार, 22 अगस्त 2009
गावं बुलाते हैं .
फिर एक बार धूप अपना रंग दिखाने लगी है । किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखाई देने लगी हैं । दिन मैं तल्ली महरौली गया था । प्रधान जी नहीं मिले तो लौट आया । गावं एक भैंस भी जब रंभाती है तो बड़े प्रेम से । पेड़ बहुत प्रेम से मिलते हैं । रास्ते बहुत ख़याल रखते हैं । हर चीज मैं अपनापन दिखाई देता है । हर कहीं एक सरलता दिखाई देती है नक्काशीदार चौखटों वाले घर बहुत आकर्षित करते हैं बाखलियाँ बहुत लुभाती हैं . आतंरिक तौर पर लोगों मैं आपसी विवाद भी होंगे .मनमुटाव भी होगा . फिर भी गावं शान्ति व् सद्भावना के लिए जाने जाते हैं . खाने के लिए ससुराल चला गया था । कुछ देर श्वसुर जी से बातें की । मासी आते-आते शाम हो चुकी थी । कुछ देर पिताजी के साथ बैठ कर बातें की । उमा ने घास से आने के बाद बताया कि घास काटते वक़्त दराती से उसकी उंगली कट गई है । देखा तो थोडा घाव हो गया था लेकिन मामूली- सा । खाना खाकर अब अपने डेशबोर्ड पर बैठा हूँ सोचने का एक अंत हीन सिलसिला है विषय कहीं से शुरू होता है और कहीं पर ख़त्म ।
शुक्रवार, 21 अगस्त 2009
धूप के लौटने की तरह
कल अल्मोड़ा गया था । देर होने के कारण रात वहीं रूक गया था । जगदीश पाण्डेय जी के कमरे में रहा । देर रात तक क्षेत्रीय राजनीति पर चर्चा की । दिन में अहा जिंदगी पत्रिका खरीदी ,पत्रिका अच्छी लगती है , समकालीन पत्रिकाओं में सबसे अलग है । स्तरीय भी ।
खाना खाकर सोने की सोच रहा था लेकिन मुन्नू,कुन्नू और दिप्पी की धमा चौकड़ी ने सोने ही नहीं दिया तो उठ कर कंप्युटर पर बैठ गया तो यहाँ बिल्ली आकर गोद में बैठ गई और काम नहीं करने दिया । मैंने चुपचाप बाज़ार निकलने में ही भलाई समझी । कुछ दोस्तों से मिला फिर अपने अड्डे पर आगया यानी बंधू जी की दूकान -चर्चाओं और निष्पक्ष-बेवाक बहस का केन्द्र ।
धूप के लौटने की तरह में भी शाम होते-होते घर लौट आया । उमा रुकी हुई थी की मैं गाय दुहने में उसकी मदद के लिए आऊं। खुबसूरत सांझ कुछ देर बाहर खड़ी रही और फिर न मालूम कब चली गई ।
खाना खाकर सोने की सोच रहा था लेकिन मुन्नू,कुन्नू और दिप्पी की धमा चौकड़ी ने सोने ही नहीं दिया तो उठ कर कंप्युटर पर बैठ गया तो यहाँ बिल्ली आकर गोद में बैठ गई और काम नहीं करने दिया । मैंने चुपचाप बाज़ार निकलने में ही भलाई समझी । कुछ दोस्तों से मिला फिर अपने अड्डे पर आगया यानी बंधू जी की दूकान -चर्चाओं और निष्पक्ष-बेवाक बहस का केन्द्र ।
धूप के लौटने की तरह में भी शाम होते-होते घर लौट आया । उमा रुकी हुई थी की मैं गाय दुहने में उसकी मदद के लिए आऊं। खुबसूरत सांझ कुछ देर बाहर खड़ी रही और फिर न मालूम कब चली गई ।
बुधवार, 19 अगस्त 2009
लग रहा है कि आज लिखने के लिए कुछ ख़ास नहीं है । हर रोज लिखने के लिए होगा भी क्या ? समाचार लोग पढ़ ही लेते हैं -और अपनी -अपनी अभिरुचि के अनुसार समाचारों के अर्थ भी निकाल लेते हैं । फिर होती है तू-तू-, मैं -मैं , मारूं -मरुँ ,खबरों का असर बहुत तेजी से होता है लेकिन सकारात्मक कम और नकारात्मक बहुत अधिक । अभी कुछ देर पहले ही लाइट आयी है ।लाइट नहीं थी तो एक बार सो चुका था बिजली आयी तो नींद खुली और यहाँ आकर बैठ गया । दिन खाली -खाली सा गुजरा -बस एकाध मित्रों से मुलाक़ात कुछ इधर -उधर की गप्पें -धूप ,वारिश और महंगाई पर और कुछ नहीं ।किसानों और ग्रामीणों की पहली चिंता तो राशन पानी ही होती है मेरे बाज़ार से देरी से आने पर उमा जी का पारा थोडा चढ़ा हुआ है मनाना पड़ेगा। कुछ पृष्ट समयांतर के पढ़े
मंगलवार, 18 अगस्त 2009
दिन मैं एक चक्कर चौखुटिया गया .चौखुटिया मासी के बीच सड़क की हालत बहुत ही ख़राब है सरकारी काम का आलम यह है की पिछले आठ सालों से बारह किलोमीटर की सड़क पर डामर नहीं हो पा रहा है लोग बहुत परेशान हैं । यदि किसी किमी पर काम हो रहा है तो इतना घटिया कि एक तरफ़ से बन रहा है तो आगे बढ़ने तक पीछे का बना हुआ टूट जा रहा है । मासी पहुँचने के बाद सुकून मिलता है कि ठीक- ठाक घर पहुँच गए ।
कुछ देर कंप्युटर पर काम किया । मेल देखी। शाम के समय बाज़ार गया, बंधू जी , चंदू भाई से होता हुआ श्री राजेंद्र सिंह जी के घर तक गया । वहाँ कुछ अन्य मित्र गण भी बैठे थे । इस वारिश से बहुत टूट-फूट हो गई है । किसीका मकान टूटा तो किसी के खेत की दीवाल टूटी
कहीं पहाड़ खिसक कर रोड पर आए तो किसी के मकान के ऊपर । कई जगह से मकान पर पहाडी से खिसक कर आए मलवे के नीचे लोगों के दब कर मरने के समाचार अखबारों में छपी है ।
कुछ देर कंप्युटर पर काम किया । मेल देखी। शाम के समय बाज़ार गया, बंधू जी , चंदू भाई से होता हुआ श्री राजेंद्र सिंह जी के घर तक गया । वहाँ कुछ अन्य मित्र गण भी बैठे थे । इस वारिश से बहुत टूट-फूट हो गई है । किसीका मकान टूटा तो किसी के खेत की दीवाल टूटी
कहीं पहाड़ खिसक कर रोड पर आए तो किसी के मकान के ऊपर । कई जगह से मकान पर पहाडी से खिसक कर आए मलवे के नीचे लोगों के दब कर मरने के समाचार अखबारों में छपी है ।
रविवार, 16 अगस्त 2009
आज मेरे ब्लॉग का डेशबोर्ड खो गया था । बड़ी मुश्किल से मिला । सोच रहा था कि आज़ादी के बासठ साल बाद दुनिया में हमारी और हमारे पड़ोसी पाकिस्तान की सामाजिक स्थिति क्या है ? भारत पूरे विश्व मैं शान्ति और सद्भावना के उद्देश्यों साथ -एक महान लोकतान्त्रिक शक्ति के रूप मैं उभर रहा है वहीं पाकिस्तान एक असफल राष्ट्र और वैश्विक आतंकवाद के केन्द्र के रूप में सामने आया है । एक हिंसक राष्ट्र के तौर पर उभरा है । आज अमेरिकी ड्रोन विमानों के द्वारा पाकिस्तान पर लगातार हवाई हमले किए जा रहे हैं और पाक सरकार चुपचाप बमों की मार झेल रही है । इन बमों के द्वारा पाकिस्तान के आत्मसम्मान की भी धज्जियाँ उड़ रही हैं पाक सरकार की यह कैसी बेबसी है जबकि पाक उदार और सहयोगी पड़ोसी भारत के साथ युद्ध के लिए तैयार है फिर भी भारत शान्ति और सद्भावना का समर्थक है ।यही विचारधारा भारत को महान बनाती है। दिन यूँ ही गुजरा । बूंदा -बांदी दिनभर रही शाम के समय जगदीश पाण्डेय भाई आए थे कुछ देर उनके साथ बैठकर राजनैतिक चर्चा की साथ में मासीगावं के श्री प्रताप राम जी भी थे । मैं अन्दर डायरी लिख रहा हूँ और बाहर वर्षा का संगीत बज रहा है । अंधेरे मैं वर्षा के इस संगीत की धुन पर कौन नाच रहा होगा ?
शनिवार, 15 अगस्त 2009
आज का मौसम बहुत सुहावना था । कल रात से लगी वारिश आज दिन भर रही । इस वारिश से मौसम में एक खुशनुमा तबदीली आ गई है सुबह स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए मिन्टो दीदी जी के स्कूल में गया उसके बाद रामगंगा वेळी पब्लिक स्कूल मैं गया । दोपहर बाद एस,एस ,हीत बिष्ट मेमो,स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रम में चौखुटिया गया । छोटे -छोटे बच्चों की अभिनय कला बहुत आश्चर्यजनक थी । इस तरह का उत्कृष्ट प्रदर्शन निजी स्कूल के बच्चों व् शिक्षकों की मेहनत का परिणाम थी । हमारे यहाँ के सरकारी स्कूलों -प्राथमिक स्तर से इंटर स्तर तक कहीं भी इतनी उत्कृष्ट प्रस्तुति देखने में नहीं आ रही है । शिक्षा का स्तर तो सोचनीय स्तर तक नीचे गिरा हुआ है उसकी चिंता न तो अभिभावकों को है न शिक्षकों को । हालत यह है कि धनी तबके के लोग अपने बच्चों को मोटी फीस या डोनेशन दे कर निजी शिक्षण संस्थानों में भेज देते हैं । तथा मध्यम व गरीब तबके के लोगों के लिए सरकारी स्कूल एक मजबूरी होते हैं ।
शुक्रवार, 14 अगस्त 2009
दिन मैं थोड़ा वारिश हुई एक ओखली पानी जितनी . हरियाली थोड़ा बढ़ेगी। एक चक्कर परथोला गया प्रधान श्री गुसाई राम जी से संस्था से सम्बंधित काम था । लौट कर कुछ देर बंधू जी के साथ बैठा ,उसके बाद श्री राजेन्द्र सिंह जी के साथ बैठकर चाय पी । बाज़ार में जन्माष्टमी के मेले की भीड़ लगनी शुरू हो चुकी थी ऑफिस में बैठकर कुछ काम निपटाया । मेला भी लोगों के मेल मिलाप का एक अच्छा ज़रिया है । कहाँ -कहाँ के नए-पुराने मित्र अचानक मिल जाते हैं । फिर नमस्कार पुरस्कार के बाद शुरू होता है यादों को दोहराने -बांटने का सिलसिला । शाम को बाज़ार की तरफ़ निकला लौट कर उमा के साथ चाय पी ।
गुरुवार, 13 अगस्त 2009
कुछ देर पहले गैरखेत से लौटा हूँ । यहाँ आकर अद्भुत शान्ति की अनुभूति होती है । सुखद एकांत मिलता है जो कि जीवन में ऊर्जा के लिए आवश्यक है सुबह पहले श्री अमर दा से गाड़ी का काम कराया श्री रमेश चंद्र चतुर्वेदी जी को गैरखेत छोड़ना था । उनके मित्र जी की कथा थी इसलिए गैरखेत गया । खाना वहीं खाया । चारों ओर की पहाडियों को देखता रहा -वाह ! आसमान में बादल होने की वजह से हिमालय की पहाडियां दिखाई नहीं दे रही थी । लेकिन रामगंगा नदी घाटीबहुत सुंदर लग रही थी । इसे पर्यटक स्थल होना ही चाहिए ।
बुधवार, 12 अगस्त 2009
दिन पूरी तरह व्यस्त रहा । संस्था के कार्य से ग्राम कल्छिपा व सीमा गया । कल की वारिश से लोगों मैं थोडा उम्मीद जगी है कि अभी भी हरियाली होगी और घास की समस्या हल होगी । दोपहर की धूप मैं जंगलों के बीच से गुजरते हुए बहुत अच्छा लगा लेकिन लगा की इन चीड़ के दरख्तों के बीच बांज और देवदार भी लगा होना चाहिए शाम के वक़्त गाड़ी लेकर उत्तमसानी तक गया रास्ते मैं नौबाडा से आगे जाने पर टायर फट गया टायर बदल कर लौट रहा था तो पट्टा टूट गया । बहुत परेशान किया आज गाड़ी ने । घर आते-आते बुरी तरह थक चुका था । उमा ने चाय बना कर दी । खाना खा कर कुछ देर कंप्युटर पर काम किया । सोते- सोते दस बज चुके थे।
मंगलवार, 11 अगस्त 2009
एक तरफ नींद लग रही है दूसरी तरफ़ ब्लॉग लिखने से स्वयं को नहीं रोक पा रहा हूँ । आज कई दिनों बाद पानी बरसा है तो एक उम्मीद जगी कि अभी हरा होगा .सूखे को देखते हुए तो लगता है कि कम से कम सतझड़ तो होने ही चाहिए तब कहीं जाकर श्रोत फूटेंगे . दिन मैं गाड़ी का कुछ काम कराया । एक चक्कर बंधू जी की दूकान तक गया । मासी के विकास के सम्बन्ध में कुछ चर्चा की । चाय पीकर लौट आया. कंप्युटर पर कुछ टाइपिंग का काम किया । और दिन इसी तरह निकल गया । उमा जी दूध लेकर आ गई दूध पीकर सो जाउंगा
सोमवार, 10 अगस्त 2009
पिछले दो -तीन दिन से नेट काम नहीं कर रहा था । इसलिए अपना ब्लॉग पोस्ट नहीं कर पाया । कल अल्मोडा गया था . दूर से शहर बहुत खुबसूरत दिखता है लेकिन नजदीक जाने पर दिखाई देता है कि पूरा पहाड़ काट- काट कर मकान बनाए जा रहे हैं भविष्य में भूमि धसान का भयंकर खतरा स्पष्ट दिखाई दे रहा है सरकार के पास पहाडों में शहर बसाने का कोई वैज्ञानिक तरीका नहीं दिखाई दे रहा है । उदाहरण के लिए पहाडों पर जब सड़क बनाई जाती है तो पहाड़ काट कर सड़क बनाए जाने के बाद सड़क के ऊपर का हिस्सा धंस कर नीचे आ जाता है इसी तर्ज पर पहाड़ का हर शहर खतरे की ज़द में है । भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए सरकार को पहाडों पर मकान बनाने के लिए कुछ वैज्ञानिक मानक तय करने चाहिए । इसी प्रकार शहर के गंदे पानी के निकास की बात है शहर का गंदा पानी पहाडी ढलानों /गधेरों से होते हुए सीधे नदियों में मिलता है इस प्रकार नदियाँ भी प्रदूषित हो रहीं हैं जबकि नदियाँ पहाडों की जीवन रेखा हैं । क्योंकि श्रोत सूखते जा रहे हैं और पहाडों के वाशिंदों की नदियों पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। ऐसे हालत में नदियों को प्रदूषणमुक्त करने के प्रयास तत्काल किए जाने चाहिए । वरना प्रदूषित पानी पीने से होने वाले नुकसानों व् प्रदूषित नदियों के मछलियाँ खाने से होने वाले रोगों का सामना करना पडेगा ।
बुधवार, 5 अगस्त 2009
शाम का वक़्त कंप्युटर पर बीता ,मूड ठीक नहीं था तो गाड़ी लेकर जाना उचित नहीं समझा । सुबह राखी का त्यौहार बच्चों ने खुशी के साथ मनाया .कुछ देर छत में जाकर चाँदनी रात का लुत्फ़ लिया काश इस वक़्त लाइट चली जाती तो चाँदनी में मौन /गंभीर अँधेरा पहाडिओं में पसरा दिख जाता दिन की यादों को अपने सीने में छुपाये हुए । यह बात अलग थी कि लोगों को थोड़ा परेशानी होती लेकिन इस गर्मी में बाहर निकल कर पहाडिओं के बीच अंधेरे का लुत्फ़ भी लेते ।
दिन आया और मेरी जिंदगी से होता हुआ निकल गया । अब रात की बारी है आंखों से होते हुए आयगी स्वप्नों से होते हुए निकल जायगी
दिन आया और मेरी जिंदगी से होता हुआ निकल गया । अब रात की बारी है आंखों से होते हुए आयगी स्वप्नों से होते हुए निकल जायगी
अभी अभी गावं से लौटा हूँ । सूखा और लोगों की चिंताएँ देखी,इतने भयंकर रूप से गर्मी और अवर्षा पहले कभी नहीं देखी । यह तो चतुर मॉस का हाल है .बाद के महीनों मैं क्या होगा ?एक और आश्चर्य कि जंगलों मैं पेड़ कम होते जा रहे हैं । यानी कि जंगलों की सघनता कम होती जा रही है यह मैंने कई जंगलों मैं देखा है । इसीलिए जंगलों की नमी भी ख़त्म होती जा रही है श्रोत सूखते जा रहे हैं । जिसका असर गधेरों और अंततः नदियों पर पड़ रहा है इस सब को देखते हुए प्रतीत होता है कि हमारी नदियों का अस्तित्व भी खतरे मैं है ।
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