गुरुवार, 1 जुलाई 2010

महंगाई

महंगाई भले ही अरबपति मुख्यमंत्रियों /करोडपति मंत्रियों /उद्योगपतियों /नौकरशाहों /बड़े व्यापारियों के लिए कोई मायने नहीं रखती हो लेकिन बेरोजगार/छोटे किसान /गरीब और मजदूर के सामने तो संकट खडा कर ही देती है । महंगाई तो बढ़ी पर मजदूरी या किसानों के उत्पाद का मूल्य वहीँ का वहीँ रहा । इस महंगाई से तो एक भयंकर सामाजिक असंतुलन पैदा हो गया है .
दूसरी सबसे बड़ी समस्या किसानों के लिए पानी की दिखाई दे रही है । जल स्तर कम होने से सिंचाई प्रभावित हो रही है ।सरकार के पास प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के अलावा प्राकृतिक संसाधनों के विकास की कोई नीति नहीं दिखाई दे रही है । पहाड़ों पर सड़कें तो बनाई जा रही हैं लेकिन सडकों के निर्माण में इन्जिनिरियंग का काम कोई बेहतर नहीं दिखाई दे रहा है । यहाँ की इंजीनियरिंग का कार्य अदूरदर्शी है । प्राकृतिक स्थितियों से इनका कोई विशेष लेनादेना नहीं दिखाई देता है । इन्हें पैसा और पहाड़ दिखाई देता है अन्धान्धुन्ध तरीके से पहाड़ खोदे जा रहे हैं ।
सुबह मालूम नहीं कैसी थी ।
दुकान खोलते ही तीन चार ततैयों ने डंक दे मारा ।
सुबह का सुहानापन तो दर्द की भेंट चढ़ गया । लेकिन दर्द तो मुझे हुआ था सुबह तो हर रोज की तरह सुहावनी ही थी ।

कैसी थी सुबह

देखा ही नहीं कि सुबह कैसी थी
यह भी याद नहीं कि सबह के साथ धूप आई या नहीं । खेतों में किसान भरे पड़े थे । सब आपाधापी में थे । देख रहा था कि औरते खेतों से कितना प्यार करती हैं ।
सुबह एक चक्कर गावं गया माई थान दिया जलाया
दिन कंप्यूटर पर बीता । सीधा -साधा नामालूम- सा
गावं में आम आदमी महंगाई के बोझ के नीचे खो -सा गया है । महंगाई के साथ ही उसकी मजदूरी को भी बढ़ाया जाना चाहिए । करोड़ पति मंत्री /नेताओं /उद्योगपतियों और नौकर शाहों के लिए चीजों का महंगा होना कोई मायने नहीं रखता है.लेकिन गरीब के लिए तो महंगाई होना कुँए में धकेले जाने के समान है

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