सोमवार, 21 दिसंबर 2009

किसान और महंगाई

किसान फिर निराश दिखाई दे रहे हैं वर्षा के कोई आसार नहीं दिख रहे हैं और यदि इस माह वर्षा नहीं हुई तो पहाड़ी क्षेत्रों में गेहूं ,सरसों की फसल मार खा जाएगी । बाज़ार दिन पर दिन महँगा होता जा रहा है गरीब और मजदूरों का क्या होगा यह सरकार के एजंडा में अभी नहीं आया । एक गरीब किसान रो पीट कर /डर के मारे अपना वोट तो दे देता है लेकिन बाद के पांच साल रोता रहता है वोट देने के बाद फिर उसकी कोई नहीं सुनता है । जबकि चुनावों में एक एक नेता लाखों करोड़ों खर्च कर डालता है । खैर में फसल पर बात कर रहा था हमारे यहाँ जल प्रबंधन के साथ साथ फसल प्रबंधन की भी आवश्यकता है । हमें परम्परागत फसल चक्र में परिवर्तन करना होगा तथा बाजार को भी अपने फसल प्रबंधन से जोड़ना होगा ताकि किसान सरकार पर निर्भर न रहे । तथा दिन पर दिन बढ़ती महंगाई से प्रभावित न हो ।

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...