शाम होते होते इतना थक जाता हूँ कि ब्लॉग पर बैठे-बैठे नींद आने लगती है।
कभी -कभी लगता है कि लिखने के लिए कुछ नहीं बचा । लेकिन फिर दिखाई देता है कि इतना बचा है कि अभी तो शुरू भी नहीं माना जा सकता ।
इस देश में भ्रष्ट्राचार के खिलाफ सरकार को हिलाने के लिए एक ही व्यक्ति काफी है बशर्ते कि वह खुद भ्रष्ट न हो । स्वार्थी न हो ।
भ्रष्ट्राचार की हद तो काफी पीछे छूट गई है । इस कीचड़ में देश बहुत आगे निकल आया है ।
जनता के पास नेताओं का विकल्प भी होना चाहिए ।क्यों कि कुरसी मिलते ही नेता की सोच ख़त्म हो जाती है । विवेक ख़त्म हो जाता है । या भ्रष्टाचार के बल पर विवेकहीन सत्ता पर काबिज हो जाते हैं ।
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