शनिवार, 16 जनवरी 2010

कल ही दिल्ली से लौटा हूँ । संस्था के कार्य से गया था । मामा जी के यहाँ रुका था ।मारे कुहरे के तीन दिन धूप नहीं देखी बगैर धूप के जीवन की कल्पना भी इतनी ही ठंडी होगी . पाखी और अहा जिंदगी पत्रिकाएं खरीदी । इनमें रचनाएँ प्रकाशनार्थ भेजूंगा यहाँ की भाग दौड़ वाली जिंदगी थका देने वाली और ऊबाऊ लगती है । दौड़ते भागते वाहनों को देख कर लगता है की यहाँ लोग धैर्य और सुकून की जिंदगी जीना पसंद नहीं करते और न ही दूसरों को इस तरह जीने देना पसंद करते हैं । यहाँ धन ही सब कुछ है । उसके आगे जीवन का कोई मूल्य नहीं । आखिर इस ह्रदयहीन दौड़ा-भागी का औचित्य क्या है ? जीवन के मूल्य अनावश्यक नियम और कानून के फंदे में उलझ कर रह गए हैं ।सत्ता के पास के प्राकृतिक जीवन के दृष्टिकोण का अभाव है .और न ही नागरिकों/प्राणियों के प्राकृतिक हितों की सुरक्षा की कोई चिंता या कार्ययोजना है. जबकि प्राकृतिक नियम बेरहमी से तोड़े जा रहे हैं । यहाँ शुद्ध हवा और शुद्ध जल के लिए कोई नियम नहीं है कुछ इस भावना के साथ कि धन के आगे यह सब कोई मायने नहीं रखते.यहाँ व्यक्ति के धन और स्व केन्द्रित होने के कारण प्राकृतिक तौर पर जीवन मूल्यों का हनन हुआ है

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...