एक अच्छा मौसम !
वर्ना इस मई एसा तो गर्मी से बुरा हाल हो जाता . और अभी तक रजाई नहीं छूटी है . संतोष की बात यह है कि नदी में अभी पानी सुखने की कगार पर नहीं पहुंचा . पीने के पानी का संकट शायद इस बार थोडा कम हो . मछलियाँ भी इस बार पानी की कमी की समस्या से नहीं जुझेंगी . गधेरों में भी इस बार पर्याप्त पानी है।
वैसे यह बारिश नवम्बर माह व फरवरी माह में होती तो तो फसल बहुत अच्छी होती लेकिन यह बारिश फसल बर्बाद करने के बाद हुई . यह सिलसिला पिछले कई बरसों से चला रहा है . सारी मेहनत के बाद अंत में किसान के पास बीज भी नहीं बचता है . लेकिन स्थानीय किसान अपना फसल चक्र का समय बदलने को तैयार ही नहीं .सूखे के
हालात हमने स्वयं पैदा किये हुए हैं . हर बर्ष हमारे जंगल जल रहे हैं . लेकिन ताज्जुब है की कोई ग्रामीण उस आग को बुझाने को नहीं जाता है। महत्वपूर्ण बनस्पतियां हर बर्ष जल कर राख हो रही हैं . पानी को रोकने वाली बनस्पति हर बर्ष जलाई जा रही है। नए पेड़ हर साल आग लगने के कारण नहीं पनप पा रहे हैं . जंगलों की सघनता कम हो रही है। हम हर बर्ष अपने आस पास को तबाह करने के लिए स्वयं जिम्मेदार हैं .हमारी पैदावार घटी है। क्यों? यह मान लिया गया है की जंगलों की आग बुझाना हमारा दायित्व नहीं है। हमें खुद को बचाने के लिए भी मजदूरी /या धन चाहिए .