मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

 भारी बमबारी के बीच सांता इस्राइल- ग़ज़ा पहुंचा या नहीं, यूक्रेन-  रसिया पहुंचा या नहीं। क्योँकि वहां सांता के जाने का समाचार नहीं देखा।  कोई शांति लिए नोबल पुरस्कार विजेता बम बर्षकों के नीचे  खड़े होकर चिल्लाया नहीं कि  बंद करो ये विनाश। ऐसा भी कोई समाचार नहीं देखा।  किसी को  कंधे में क्रॉस रख कर वहां  शांति की अपील करते नहीं देखा. वहां किसी इस्लामिक पैगम्बर  के अनुयायी को शांति के लिए मार्च निकालते नहीं देखा। सारे चर्च और मस्जिदें मौन क्योँ हैं. 

एक विचित्र द्विविधा में दिखते हैं दोनों।  आतंक का साथ दें  या युद्ध का। 

युद्धों के बीच मात्र तानाशाहों की क्रूरता , आतंक , भय ,मृत्यु और विनाश को अपनी भाषा बोलते देख रहा हूँ। 

यहाँ पर आकर दिखाई देता है कि नोबल पुरस्कार किस को और क्योँ दे दिऐ जाते हैं। 

आतंक और युद्ध किसकी भाषा है और शांति का नोबल किस प्रकार के लोगों की भाषा बोलने वालों को दिया  जाता है. 

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...