शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009
आज फिर कई दिनों बाद ब्लॉग पर बैठा हूँ , सुबह सोचा था कि आज तीन ग्राम पंचायतों का भ्रमण करूंगा लेकिन एक तलाई और अफों में ही दिन ढलने लगा । दिन इतने छोटे हो गए हैं कि कब दिन निकला और कब ढल गया पता ही नहीं लगता । लौटते हुए सोच रहा था कि नदी में पानी का स्तर अभी से गिरना शुरू हो गया है जंगलों में पेड़ों की सघनता कम हो गई और सबसे महत्त्व का और ध्यान देने की बात है की जंगलों से छोटे जीव जंतु लगभग गायब हो गए हैं जिससे की बाघ और चीतों का पारंपरिक भोजन जंगलों में ख़त्म हो गया है जिस कारण बाघों और चीतों /तेंदुओं ने गावों पर हमला करना शुरू कर दिया है । अभी कुछ दिन पहले अखबार में पढ़ा था कि उत्तराखंड में गत वर्ष करीब १३ बाघ मारे जा चुके हैं । जो कि एक चिंता का विषय है । बाघों का इस तरह आक्रामक हो जाने का एक मुख्य कारण जंगलों उनके भोजन की कमी भी है ।
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