मंगलवार, 14 अक्टूबर 2014

 नमस्कार ,सज्जनो
अचानक ठण्ड ने दस्तक दी , सुबह नींद से जागा तो देखा की बाहर बारिश खड़ी थी।
यह हुद हुद तूफ़ान  के प्रभाव की बारिश  थी।  जो दिन भर लगी रही। दिन भर खूब भीगा।
ऐसा मौसम तो कवियों का मौसम होता है. या फिर प्रेमियों का।
मैं कमरे के अंदर बैठा ब्लॉग लिख रहा हूँ और बाहर तेज बारिश  और  छत से गिराने वाले पानी की आवाज आ रही है। यह मौसम हमारे लिए मजेदार हो सकता है लेकिन सबके लिए नहीं ,अचानक आये हुए मेहमान की तरह है यह बारिश। लेकिन एक बात  तो है कि यह बारिश चातुर्मास में हुई कम बारिश की पूर्ति कर देगी।
कहीं किसान खुश हैं तो कहीं परेशान।
किसानों के हाथ अचानक थम गए हैं। उनके पास चर्चाओं के लिए वक्त निकल आया है।


कभी -कभी लगता है कि हम आदमी होना भूलते जा रहे हैं।
हम रूपया हो रहे हैं। और समझने लगते हैं कि दूसरे लोग भी रूपया बन गये हैं। यह पूरी पृथ्वी रूपया होती जा रही है।  मिट्टी रूपया। पेड़ रूपया ,पानी रूपया,हवा रूपया, खून रूपया, आग रूपया,औरत रूपया ,बच्चा रूपया , इस प्रकृति की हर चीज रुपये में तब्दील होती दिख रही है।
कम  से कम  हमें यह प्रयास तो करना ही चाहिए कि हम आदमी को रूपया होने से बचाएं। खुद रूपया होने से बचें। 

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...