आज काफी दिनों के बाद अपने ब्लॉग पर बैठा हूँ एक अजीब -सी उधेड़बुन में हूँ कि क्या लिखूं और क्या न लिखूं ? बरसात अपनी हद से आगे निकल कर सब कुछ तहस नहस करने पर आमादा है । कभी पहाड़ सूख रहे थे और अब जगह-जगह पहाड़ धंस रहे हैं । लगता है कि पहाड़ों पर बना हर मकान खतरे की जद में है ।
यह सब अनियंत्रित निर्माण का नतीजा है ।
दिन बहुत व्यस्त रहा । दोपहर बाद कमरे से बाहर निकलने का समय नहीं मिला । कुछ प्रधान लोग आये थे । उनके साथ बातों में रह गया । शाम को बाहर निकल कर कुदरत का नजारा देखा । हरियाली धरती पर बिछ गयी है ,। एक हरे कालीन की तरह ,जिस पर चलते हुए हरे सपने देखे जा सकते हैं ।
यह मौसम प्यार का है । और इसे सहेज कर रखा जा सकता है।
बादलों को देखा । अभी पानी से भरे आकाश में घूम रहे थे लग रहा था कि बरसने के लिए जगह तलाश रहे हों ।
कई दिनों से पुराने सूख चुके झरनों को फिर झरते देखा ।लगता था कि दूध के झरने हैं ।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे। रूस - यूक्रेन/नाटो , हमास - इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल के सर्वनाशी युद्धों के...
-
आज बुरी तरह थक गया हूँ । या बुखार आने वाला है । लेकिन सोऊंगा तो ब्लॉग लिखकर ही । कल मैंने लिखा था कि किसान को आर्थिक सुरक्षा देनी होगी । तभी...
-
महंगाई भले ही अरबपति मुख्यमंत्रियों /करोडपति मंत्रियों /उद्योगपतियों /नौकरशाहों /बड़े व्यापारियों के लिए कोई मायने नहीं रखती हो लेकिन बेरोज...
-
बारिश की कमी से किसानों की परेशानी साफ़ दिखने लगी है. यानि फसल तो प्रभावित होगी ही साथ ही पानी की भी किल्लत बनी रहेगी। किसान यानि पहाड़ी ग्...