बुधवार, 14 सितंबर 2011

गुलाम मानसिकता से भी आजादी चाहिए .

हिंदी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं ।
उन सभी नेताओं को जो हिंदी या अन्य भारतीय जनों की प्रांतीय भाषाओँ के मतदाताओं के मतों से जीत कर संसद पहुंचते हैं । किन्तु वहां जाकर अंग्रेजी में अपना भाषण देते हैं ।
जब वोट मांगते हैं तब उन्हें हिंदी या अन्य भारतीय/प्रांतीय भाषा बोलनी आती है । किन्तु संसद में पहुंचते ही वे सबसे पहले अपनी भाषा बदलते हैं । यह जनता का सरासर अपमान है । राष्ट्र का अपमान है ,हिंदी का अपमान है । हिंदी भाषियों का अपमान है । जनता को अधिकार है कि वे संसद में अपनी भाषा का तिरष्कार करने वाले सांसदों को भी बदलें .हिंदी के हर साहित्यकार का दायित्व है कि वह प्रधानमंत्री को राष्ट्र भाषा के प्रयोग के लियें लिखें । कम से कम भारत माता के मंदिर में तो राष्ट्र भाषा को प्राथिमकता मिले । वे सांसद जो हिंदी नहीं जानते हैं .क्या अपनी क्षेत्रीय भाषा भी नहीं जानते हैं ।
इस गुलाम मानसिकता से भी आजाद होना ही होगा ।

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