सुबह - सुबह पक्षियोँ के कलरव से नींद खुली। चाय पीकर बाहर निकला तो देखा कि खेतों ने घने कुहरे की चादर ओढ़ी है और ठण्ड हरियाली के पहरे में खड़ी है। बाहर निकलने का साहस नहीं हो रहा था लेकिन समय के साथ चलने के लिए कमरे से बाहर निकला।
धूप के निकलने के साथ ही कुहरा हवा में घुलने लगा और ठण्ड भी किरणों के रथ में बैठकर चली गई। हरियाली निश्चिंत होकर अपनी आभा बिखेरने लगी घाटी के दोनों और की पहाड़ियां आकर खड़ी हो गई।
शीत ऋतु में हर वर्ष कई प्रकार के नए - नए अतिथि पक्षी घर के आस पास आकर चहकने लगते हैं या कहूँ कि मिलने आते हैं.
उनका आना अच्छा लगता है। मेरे मित्रों में वे भी प्रिय मित्र हैं.