रविवार, 27 सितंबर 2009

लेकिन सुकून

कल लिखने का मन नहीं किया । थक गया था । गावं कैसे भी हों होते बहुत सुंदर हैं शांत और गंभीर । चारों ओर से प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य से घिरे । जिस गावं में भी जाना होता है उस गावं में ही लगता है कि यहीं घर बनाकर रहा जाय। आज तो लगभग गावं सड़क से जुड़ गए हैं लेकिन पुराने समय में लोगों ने अपना समय बहुत कठिनाई में गुजारा होगा । तब सड़कें नहीं थी पैदल मार्ग प्रचलन में थे । आज की तरह हर गावं के नजदीक बाज़ार नहीं थे । लोगों को रोजमर्रा की चीजें लेने बहुत दूर तक पैदल ही जाना होता था । लेकिन जरूरतें भी बहुत कम हुआ करती थी अनाज व शाक- सब्जी का उत्पादन घर पर ही प्रयाप्त हो जाता था पानी की कोई कमी नहीं थी वे लोग जो तमाम कठिनाइयोंऔर असाध्य रोगों के बावजूद जो बच गए वे बहुत ताक़तवर होते थे तथा शारीरिक श्रम बहुत किया करते थे । तथा खाने में दूध/दही/ छाछ /घी का प्रयोग किया करते थे क्योंकि पशु पालन तब मुख्य व्यसाय था । और हर घर में दूध, दही,घी की कोई कमी नहीं थी । । तब लोग घरेलू इलाज पर ज्यादा निर्भर होते थे । जबकि आज देखने में आ रहा है कि ऐलोपथी से ऊबे हुए लोग घरेलू /आयुर्वेदिक इलाज की ओ़र झुक रहे हैं । पहाडों में दूर दूर ऊँचाइयों में बसे गावों को देख कर पुराने ज़माने के लोगों की याद आई । आज सुविधाओं ने जीवन को बहुत आसान बना दिया है । हर चीज मनुष्य के वश में है । लेकिन सुकून नहीं ।

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...