मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

लोक तंत्र का महापर्व

 कल गावं में सौहार्दपूर्ण वातावरण में मतदान  हुआ।  सभी दलों के कार्यकर्ताओं ने सामूहिक जलपान की व्यवस्था की थी सीधा सा सूत्र था मत अपना अपना लेकिन गावं सबका । सभी एक दूसरे के सुख दुःख के साथी।  रोटी अपनी मेहनत  खानी है फिर बैर एवं मुटाव क्यों ?   सुख दुःख में गावं पड़ोस ही पहले काम आएगा।  

शांत वातावरण में हँसते हंसाते कब मतदान का दिन निकल गया लोगों को पता ही नहीं चला , 
चुनाव  में प्रचार और  चुनाव की व्यवस्था  बदलनी चाहिए।  प्रचार  के तरीके अब उबाऊ और अनावश्यक लगने लगे हैं. करोड़ों में निबटता है एक चुनाव।  एक निर्धन और समाज सेवी तो आज के समय में चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकता। धन कुबेरों साथ चुनावी प्रतिस्पर्धा में उसकी आवाज कहीं खो जाती है  यह चुनाव  व्यवस्था का काला सच है। धनाढ्य लोगों का एक राजनैतिक वर्ग खड़ा हो गया है   जिसमें सामान्य व्यक्ति के लिए स्थान नहीं है. एक ऐसी भनायक परंपरा  आकार ले रही है जहाँ लोकतंत्र और सामाजिकता समरसता, समानता का कोई स्थान अथवा मूल्य नहीं। भ्रष्ट, अपराधी और  बाहुबली ही समाज के आदर्श के रूप में स्थापित किये जाते हैं.  जिसके पास धन या पारिवारिक राजनैतिक पृष्टभूमि है वही राजनैतिक सत्ता हथिया लेगा।  यहां सामाजिक हितों के लिए किसी विचारधारा का कोई मूल्य नहीं.  सत्ता और  राजनीति में समाज और सामाजिक हितों की  विचारधारा से जुड़े लोग कम आ रहे हैं।  

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...