आज दिन बहुत गर्म था । लगता था कि जून आ गया ।
मौसम का यह मिजाज लोगों को विचलित कर रहा है । शहर और गावं दोनों चिंचित हैं .वह किसान हो या नौकरीपेशा चिंता हर कहीं है । करोड़ों रुपये खर्च करके भी आप कुदरत के रस्ते नहीं रोक सकते .क्योंकि आपने ही करोड़ों खर्च करके कुदरत के साथ खिलवाड़ किया है । कुदरत नदी या हवा के प्रदुषण के लिए जिम्मेदार नहीं है । कुदरत जंगलों के सफाए के लिए भी जिम्मेदार नहीं है । यह सब अपने आप नहीं हो रहा है । यह किया जा रह़ा है ।
दर असल जबतक ये जिम्मेदारियां तय नहीं हो जाती तब तक सुधार की कोई भी कोशिश सफल नहीं होगी और हालात बदतर होते जायंगे । हवा और पानी के लिए घर -घर लड़ेंगे गली -मोहल्ले लड़ेंगे , गावं-गावं लड़ेंगे ,शहर -शहर लड़ेंगे ,देश- देश लड़ेंगे । लेकिन सुधार की तरफ कोई नहीं सोचेगा ।हर किसी के अपने स्वार्थ हैं . पूंजीपतियों के अपने स्वार्थ हैं .फैक्ट्रियों और नेताओं के अपने स्वार्थ हैं . आज पानी बोतलों में बिक रहा है कल हवा बिकेगी फिर धूप बिकेगी । ये स्थिति आने वाली है । वर्तमान हालात को देखते हुए यह स्थिति ज्यादा दूर नहीं दिखती । क्योंकि अपनी तरफ से कोई कुछ करता नहीं दिखाई नहीं दे रहा । सबकी नजर सरकारी वजट पर है । और वजट की बन्दर बाँट होती है । फिर सब कुछ वैसा का वैसा । हम सुधार की प्रक्रिया को अपने पूजा -पाठ या भोजन की तरह अनिवार्य क्यों नहीं बनाते ?
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