शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013


 कभी -कभी हम तय नहीं कर पाते  हैं  कि  करना क्या है ?
एक चौराहे  पर चार  रास्ते  मिलते हैं या चौराहे से चार रास्ते  निकलते हैं . अजीब उलझन सी आ खड़ी होती है.

कुछ इसी तरह दिन निकला ,प्रकृति का सबकुछ नियमित था .लेकिन मैं नहीं .
और  मैं अनिमियत होने का लुत्फ़ भी नहीं उठा पा रहा था .
छांछ पी और धूप सेंकी .खाना खाया और सो गया .
उठा तो चाय पी . आज कुछ भी करने का मन नहीं हुआ . दिन को निकलने दिया , धूप को  आने दिया . हवा को बहने  दिया ,सारे काम चुप चाप होने दिए . किसी काम में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया .
आज सपनों को भी आने की मनाही थी .
आज अपने भीतर एक शून्य चाहता था .
चुप- चाप शाम ने दस्तक दी . मैंने दरवाजा खोला . दिए की रोशनी की  एक किरण सीधे मेरे भीतर प्रवेश कर गयी .जैसे रोशनी को मेरे दिल के भीतर से गुजरते हुए एक लंबा रास्ता तय करना हो .
ज्यों ज्यों अँधेरा गहराता गया मेरे भीतर उजाला बढ़ता गया .
मुझे लगा कि इसी रोशनी की तलाश थी मुझे . यहीं से होकर कोई राह निकलती है .

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...