कभी -कभी हम तय नहीं कर पाते हैं कि करना क्या है ?
एक चौराहे पर चार रास्ते मिलते हैं या चौराहे से चार रास्ते निकलते हैं . अजीब उलझन सी आ खड़ी होती है.
कुछ इसी तरह दिन निकला ,प्रकृति का सबकुछ नियमित था .लेकिन मैं नहीं .
और मैं अनिमियत होने का लुत्फ़ भी नहीं उठा पा रहा था .
छांछ पी और धूप सेंकी .खाना खाया और सो गया .
उठा तो चाय पी . आज कुछ भी करने का मन नहीं हुआ . दिन को निकलने दिया , धूप को आने दिया . हवा को बहने दिया ,सारे काम चुप चाप होने दिए . किसी काम में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया .
आज सपनों को भी आने की मनाही थी .
आज अपने भीतर एक शून्य चाहता था .
चुप- चाप शाम ने दस्तक दी . मैंने दरवाजा खोला . दिए की रोशनी की एक किरण सीधे मेरे भीतर प्रवेश कर गयी .जैसे रोशनी को मेरे दिल के भीतर से गुजरते हुए एक लंबा रास्ता तय करना हो .
ज्यों ज्यों अँधेरा गहराता गया मेरे भीतर उजाला बढ़ता गया .
मुझे लगा कि इसी रोशनी की तलाश थी मुझे . यहीं से होकर कोई राह निकलती है .
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