मंगलवार, 19 जनवरी 2010
हिंसा की पाठशाला
सुबह चिंताजनक समाचार से शुरू हुई कि कार्बेट पार्क रामनगर में एक बाघ की मौत हो गई है । पूरी दुनिया बाघ बचाने के लिए प्रयास कर रही है । और यहाँ बाघ और अन्य जानवर बेमौत मरे जा रहे हैं .यह घटना प्रशासन तंत्र की मुस्तैदी की पोल खोलती है . साथ ही सरकार की प्राणियों के हितोंकी सुरक्षा की चिंता की पोल भी खोलती है । हर दिशा से शिकारी और अंगों के व्यापारी जानवरों को मार गिराने के लिए बन्दूक ताने खड़े हैं। और सरकारें हैं कि मरने दे रही है .खूबसूरती हमेशा से ही प्राणघातक रही है। गावों में मुर्गी सुबह ब्रह्म मुहूर्त में लोगों को जगाने के लिए बांग देती है जबकि शहर में मुर्गी सुबह ब्रह्म मुहूर्त में अपने प्राणों की रक्षा के लिए चीखती हैभैंस /गाय सुबह अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए राभंती हैं और यहाँ शहर में सुबह बूचड़खाने की ओरजाते हुए अपने प्राणों की रक्षा के लिए राभंती हैं .ये बूचडखाने समाज को हिंसक बनाने की पाठशालाएं हैं . महात्मा गाँधी का अहिंसा का दर्शन अप्रासंगिक लगता है जबकि आज आवश्यकता इस बात कि है इस धरती पर एक गावं या शहर तो ऐसा हो जो मांसाहार का विरोध करता हो या शाकाहारी हो । हम यदि अहिंसा का संकल्प लें तो आतंकवाद की आधी समस्या हल हो जाएगी रह जाएगा तो सिर्फ अन्याय का अहिंसक प्रतिशोध । हमें आज नहीं तो कल अहिंसा का मार्ग चुनना ही होगा ।
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