सोमवार, 25 जुलाई 2011

खाली पन्ने

कभी -कभी मैं सोचता कि कुछ भी न लिखना ही बेहतर होता है । पन्ने को यूँ ही छोड़ देना अच्छा लगता है । कोई शब्द न हो । कोई आकृति न हो ।
आश्चर्य !कि लोग उसमें से भी अपने विचारों के अनुसार सामग्री पढ़ने की कोशिश करते हैं । यानि कि पन्ना कोरा नहीं रहता । आकाश बिल्कुल खाली रहने के बाद भी लोग आकाश में अपना कोई कोना तलाशते हैं ।
अपने विचारों के लिए कोई सितारा तलाशते हैं । खाली आकाश से बातें करते हैं । या मौन होकर आकाश को एकटक निहारते हैं । तारों के बीच देखने की कोशिश करते हैं अपने बिछुड़े हुए प्रिय जनों को ।


लोग खाली पन्नों की किताब को सहेज कर रखते हैं । क्योंकि उसमें दर्ज किया जा सकता है जीवन --मृत्यु पर्यंत ।
लेकिन बहुधा खाली पन्नों की किताब खाली ही रह जाती है।

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