मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

यह समय

अगर हमारे पास काम ज्यादा है तो हमें न तो वक़्त का ख़याल रहता है और न ही हमें प्रकृति से कोई लेना देना होता है । हम भावना शून्य हो जातें हैं संवेदना ख़त्म हो जाती है । और अपने ही समाज से कट जाते हैं हमें अपने काम से अलावा और कुछ नहीं दिखाई देता है जब हम अपने काम से थक चुके होते हैं और सोचते हैं कि थोड़ा बाहर देख लें तो बाहर देखने के लिए बहुत देर हो चुकी होती है । हम धूप के आने और जाने का अनुभव भूल चुके होते हैं । यही नहीं हम रिश्ते भी भूल चुके होते हैं । काम कितना ही हो खुद को प्रकृति से कभी दूर नहीं करना चाहिए । एक गाय और एक आदमी का रिश्ता बना रहना चाहिए । एक पेड़ और एक आदमी का रिश्ता बना रहना चाहिए । आदमी और आदमी का रिश्ता बना रहना चाहिए । और यदि प्रकृति के साथ भावनात्मक रिश्ता ख़त्म हो गया तो प्रकृति को ख़त्म होने में ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा । तब हम स्वयं को कहाँ बचा पाएंगे ।
यह समय सबकुछ बचाने का है हमें धूप बचानी है । वर्षा बचानी है । पेड़ बचाने हैं। हवा बचानी है । और मानवीय संवेदना बचानी है तथा प्रकृति के साथ अपने रिश्ते बचाने हैं ।

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