नमस्कार मित्रो ,
दिन ढलने के बाद घूमने गया ,मौसम में परिवर्तन आया है. ठण्ड की चुभन महसूस होने लगी है।
देखा कि खेत खाली हो चुके हैं. और किसानों ने खेतों में बीज बो दिए हैं. जमीन ने अपना रंग बदला है. खाली किन्तु जुते हुए खेत भी बहुत खूबसूरत लग रहे हैं. यही कविताओं की जमीन है ,यहां जीवन के रंग हैं यहां सपनों के उगने का इंतज़ार है आत्म संतोष है. किसानों ने क्या बोया यह तो फसल उगने के बाद ही पता चलेगा। अक्सर तो हम जो बोते हैं वही काटते भी हैं. काटना ही पड़ता है.प्रकृति के पास कोई विकल्प नहीं है.
इस बात की चिंता जरूर है कि जंगल और खेती की जमीन सिकुड़ती जा रही है और आवश्यक या अनावश्यक मकान बनते जा रहे है.
इस बात की चिंता जरूर है कि जंगल और खेती की जमीन सिकुड़ती जा रही है और आवश्यक या अनावश्यक मकान बनते जा रहे है.
दिन एक पन्ने की तरह है जिसमें हम आज की कथा लिखते हैं. और पीछे के पन्ने पलट कर कल का लिखा देख लेते हैं. लेकिन हम अक्सर अपने आज को लिखने की धुन में कल का लिखा पढ़ना नहीं चाहते हैं. अपनी जिंदगी की कापी के भविष्य के खाली पन्नों को देखते जाते हैं. और किसी भी प्रकार उन्हीं को भरने की धुन में रहते हैं.