गुरुवार, 27 अगस्त 2009

शब्दों की डोर

पिछले तीन चार दिनों से कुछ लिख नहीं पाया । लिखने के लिए तो रोज बैठता था । लेकिन एक बार हाथ से छूटी शब्दों की डोर हाथ नहीं आ रही थी । कल कविताओं का एक नया ब्लॉग बनाया । उस पर दो कवितायें लिखी । दिन मैं एक चक्कर गावं गया हरियाली को देख कर तबियत खुश हो गई । लौटने का मन ही नहीं कर रहा था । दूर तक खुबसूरत जंगलों की चादर ओढे पहाड़ और बर्फ की चादर ओढे हिमालय के पहाडों की श्रंखलायें बाँध देती हैं कुछ लोगों से मिलकर लौट आया ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...