गुरुवार, 17 सितंबर 2009

स्वप्न कथा

सुबह उमा ने ४ बजे उठा दिया, खेती के दिन हैं वह अपने दिन के काम की तैयारियों में लग गई ।और मैं अपने रोज के काम में । दिन कंप्यूटर पर बीता, कुछ देर खेत में काम किया । शाम को बाज़ार की तरफ़ निकला दोस्तों से गप्पें मारने । बंधू जी से गप्पें मारी लेकिन वहाँ मौलिक /सामाजिक बातें होती हैं सुरेश देव्तल्ला प्रधान , महेश वर्मा , भगवत सिंह रावत ,राजेंद्र बिष्ट ,चंदू भाई, से होता हुआ मिन्टो दीदी जी के घर ।
रचनात्मक कुछ भी नहीं । दिन के बेकार ही गुजर जाने का एहसास (बेकार गुजर जाना यानि सृजन किए बगैर गुजर जाना ) रात को होता है , तब दिन निकल चुका होता है । और हमारे पास एक रात होती है , स्वप्न देखने के लिए । वहाँ सृजन नहीं होता है - हो सकता है सृजन की प्रेरणा हो -स्वप्न अतीत भी है और भविष्य भी । स्वप्न अक्सर हमें रास्ते पर लाने की कोशिश करते हैं हमारा अंतर्मन हमारे भविष्य की गणना करता है बहुत दूर तक देखता है । आवश्यकता है तो स्वप्न को समझने के द्रष्टिकोण की ।

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