बुधवार, 16 सितंबर 2009
आस्था का केन्द्र
दिन में मैं और उमा गावं गए । मन्दिर निर्माण का कार्य देखा इशवरी दत्त ,बाला दत्त ,दामोदर ,प्रकाश चन्द्र , मोहन चन्द्र काम कर रहे थे । उमा घास काटने चली गई और मैं मन्दिर में रहा । सभी लोगों की आस्था का केन्द्र , यहाँ आकर सभी सर झुकाते हैं अपनी समस्याओं के समाधान चाहते हैं . अपनी गलतियों को स्वीकार करते हैं दिमाग मैं एक नई ताजगी और आत्मविश्वाश लेकर घर लौटते हैं . कुछ देर बाद मैं भी खेत में चला गया ,दिमाग को एक अद्भुत शान्ति मिलती है इन खेतों के बीच ।मुझे तो इन खेतों के बीच बहुत आनंद आता है लेकिन देख रहा हूँ कि उमा के पास काम की अधिकता हो गई है शाम होते -होते वह बुरी तरह थक चुकी होती है । जबकि अभी असोज का पूरा महीना शेष है । फसल भी कटनी है और घास भी काटनी है । इसे व्यस्थित करना होगा । सुबह एक आसमानी रंग की खुबसूरत चिड़िया घर के आगे के पेड़ पर बैठ गई यह आगंतुक चिड़िया थी । कुछ देर पेड़ की शाख बैठकर पर उसने गाना गया ।
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