कल बहुत थक गया था तो डायरी नहीं लिखी ,आज दिन में कुछ देर संस्था का काम किया । खेत में गया । उमा ने धान काटे थे मैंने उन्हें एक ढेर में लगाया ताकि चार पाँच दिन बाद उन्हें मान दिया जाय । हमारे यहाँ एक पीढ़ी इन धानों को बहुत प्यार करती है ये धान उनकी रग-रग में उगते हैं उनका अतीत इन्हीं धान की बालियों के साथ गुजरा वे आज भी ,उम्र के आखिरी दौर में अपने खेतों में बड़े प्यार से आते हैं हरे -भरे खेतों के बीच अपनी यादों को सींचते हैंऔर घर लौट कर अपने परिजनों के बीच खेत -बैल और फसल की यादों को बाँटते हैं । धान ही उनकी संस्कृति रही और धान ही उनका जीवन उनकी पूजा -तपस्या । और एक पीढ़ी को ये धान उलझन लगते हैं । उन्हें ये धान छोड़ कर शहर जाना है । खैर........ ।
अभी खाना खा कर कुछ देर इजा -बौज्यू के साथ बैठ कर बात चीत की । उससे पहले मुन्नू,कुन्नु और दिप्पी ने दिमाग का भुजिया बना कर रख दिया था । बारिश के बंद होने के साथ ही खेती बाड़ी के काम ने जोर पकड़ लिया है । यह समय किसानों के लिए बहुत ही व्यस्तता का होता है । पूरी सार किसानों से भरी पड़ी है । कोई फसल काट रहा है तो कोई उन्हें ढेर लगा रहा है । तो कोई दूसरी फसलों को काट कर घर को ले जा रहा है । चाय- नाश्ता, खाना -पानी सब खेत में । ऊपर से मौसम का भी डर है इसलिए सारे काम फ़टाफ़ट निबटाने हैं ।
मंगलवार, 15 सितंबर 2009
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