दिन में अपने अन्य कार्यों के साथ सोच रहा था की आज अपने ब्लॉग पर क्या लिखूंगा और अब नींद के मारे बुरा हाल है मन कर रहा है कि छोड़ो भी अब क्या लिखना है । अधिकांश समय इसी कमरे में कम्प्यूटर पर बीता । कभी कुछ --कभी कुछ करता रहा ।उब गया तो रसोई में जाकर चाय बनाकर चाय पी ,फिर खेत में जाकर कुछ काम किया . बच्चों के साथ बैठा ,लौटकर फ़िर कमरे में आया कुछ पुरानी फाइलें देखी । कुछ किताबें तरतीबवार लगाई और अपनी डायरी के पुराने पन्ने पढ़े । कम से कम पाँच सौ पन्ने होंगे जिन्हें सम्पादित करना है । और कम से कम चार सौ कवितायें होंगी जिन्हें संपादित कर प्रकाशन के लिए तैयार करना है । अब इन्हीं कार्यों को प्रथिमकता की सूची में रखना होगा , प्रतिदिन का एक समय इस काम के लिए निर्धारित कर दूंगा ।
असोज के काम ने बहुत जोर पकड़ लिया है । लोग बाज़ार से बिल्कुल से गायब से हो गए हैं । लोग यानी खरीददार ।
सोमवार, 21 सितंबर 2009
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