शनिवार, 22 अगस्त 2009

गावं बुलाते हैं .

फिर एक बार धूप अपना रंग दिखाने लगी है । किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखाई देने लगी हैं । दिन मैं तल्ली महरौली गया था । प्रधान जी नहीं मिले तो लौट आया । गावं एक भैंस भी जब रंभाती है तो बड़े प्रेम से । पेड़ बहुत प्रेम से मिलते हैं । रास्ते बहुत ख़याल रखते हैं । हर चीज मैं अपनापन दिखाई देता है । हर कहीं एक सरलता दिखाई देती है नक्काशीदार चौखटों वाले घर बहुत आकर्षित करते हैं बाखलियाँ बहुत लुभाती हैं . आतंरिक तौर पर लोगों मैं आपसी विवाद भी होंगे .मनमुटाव भी होगा . फिर भी गावं शान्ति व् सद्भावना के लिए जाने जाते हैं . खाने के लिए ससुराल चला गया था । कुछ देर श्वसुर जी से बातें की । मासी आते-आते शाम हो चुकी थी । कुछ देर पिताजी के साथ बैठ कर बातें की । उमा ने घास से आने के बाद बताया कि घास काटते वक़्त दराती से उसकी उंगली कट गई है । देखा तो थोडा घाव हो गया था लेकिन मामूली- सा । खाना खाकर अब अपने डेशबोर्ड पर बैठा हूँ सोचने का एक अंत हीन सिलसिला है विषय कहीं से शुरू होता है और कहीं पर ख़त्म ।

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