बुधवार, 14 अक्टूबर 2009

ठण्ड एकदम बढ़ गई । मौसम में यह परिवर्तन बहुत सुखद लगा । परसों मोहना गया था । मोबाइल से कुछ सांझ के चित्र खींचे लेकिन अफसोस कि ढलती सांझ को शब्दों में नहीं ढाल पाया । और मुस्कराती हुई साँझ पलटकर चली गई । और इसी के साथ प्रकृति का परिधान भी बदल गया । और इससे पहले कि अंधेरे का परदा कायनात को ढक ले मैं और उमा मासी को लौट आए ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...