शाम का वक़्त कंप्युटर पर बीता ,मूड ठीक नहीं था तो गाड़ी लेकर जाना उचित नहीं समझा । सुबह राखी का त्यौहार बच्चों ने खुशी के साथ मनाया .कुछ देर छत में जाकर चाँदनी रात का लुत्फ़ लिया काश इस वक़्त लाइट चली जाती तो चाँदनी में मौन /गंभीर अँधेरा पहाडिओं में पसरा दिख जाता दिन की यादों को अपने सीने में छुपाये हुए । यह बात अलग थी कि लोगों को थोड़ा परेशानी होती लेकिन इस गर्मी में बाहर निकल कर पहाडिओं के बीच अंधेरे का लुत्फ़ भी लेते ।
दिन आया और मेरी जिंदगी से होता हुआ निकल गया । अब रात की बारी है आंखों से होते हुए आयगी स्वप्नों से होते हुए निकल जायगी
बुधवार, 5 अगस्त 2009
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