शनिवार, 24 अक्टूबर 2009
कलम मैं ताकत
दिन में एक चक्कर गैरखेत गया हिमाच्छादित पहाडियों ने मन मोह लिया । आज लगभग छः माह बाद दो कवितायें लिखी । हो सकता है की अभी सोते सोते एक कविता और लिख डालूं । काफ़ी समय से लग रहा था की मैं कविताओं की दुनियां से रिटायर हो गया हूँ । वैसे भी हर गंभीर और मौलिक विधा लगभग रिटायर -सी होती जा रही है । कोई कह रहा है कि कविता मर रही कोई कह कर चला जा रहा है कि कहानी ,उपन्यास,या निबंध मर रहा है । दरअसल ये सब हारे/ ऊबे/चुके हुए लोग हैंजिनके पास नया कहने को कुछ नहीं है जो आम जन को उकेरता हो। उनका मानना है कि कलम बेअसर हो चुकी है। उन्हौंने लिखना बंद किया तो घोषणा कर डाली कि यह सब तो मर रहा है । जो अपनी दूकान बंद कर जुआ घर मैं बैठे हैं। या नशे मैं धुत्त हैं ।या समाज के बारे मैं सोचना बंद कर दिया है। उन्होंने लिखना बंद किया तो पढ़ना भी बंद किया । लेकिन सौभाग्य से यह सब फल-फूल रहा है। लोग लिख रहे हैं । और समाज की चेतना को झकझोर भी रहे हैं । उनकी कलम मैं ताकत है।
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