बुधवार, 8 दिसंबर 2010

पलायन का दंश


एक गावं सुराना रिखारी से अभी-अभी लौटा हूँ । प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर गावं । यहाँ से चारों ओर का नजारा देख सकते हैं .हिमालय श्रंखला की हिमाच्छाद्दित पहाड़ियां मन को मोह लेती हैं । तो नीचे की ओर रामगंगा घाटी आकर्षित करती है ।इतनी ऊंचाई पर बसा यह गावं प्राकृतिक रूप से धनी होने के साथ -साथ फसल उत्पादन में भी आत्म निर्भर है । यहाँ पानी भी प्रचुर मात्र में उपलब्ध है । इसे प्रयास करके आर्थिक रूप से भी आत्म निर्भर बनाया जा सकता है । लेकिन यह गावं भी रोजगार की कमी के कारण पलायान का दंश झेल रहा है । पहाड़ों में गावों में उत्साही नवयुवकों के पलायन से वृद्ध लोगों के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई है । वे लोग भी अकलेपन का दंश झेल रहे हैं ।
मैंने अभी तक देखा है कि गावों में रोजगार सृजन के लिए प्रयास किये जायं तो काफी हद तक पलायन रुक सकता है ।
नेट पर बैठ कर मेल देखी । कुछ काम निबटाये ।
सुबह दिल्ली से मामाजी जी आये थे । कुछ देर उनके साथ बैठ कर बातें की।

रविवार, 5 दिसंबर 2010

कुछ लिखना चाहिए

अचानक ठण्ड बढ़ गई है । लगता है कि शीत लहर शुरू हो गई है ।
दिन यूँ ही बीता । गावं की तरफ गया । धूप थी लेकिन ठण्ड के कारण महसूस नहीं हो रही थी ।
इस बार वारिश हुई तो सीधे बरफ गिरेगी ।
बर्फ के साथ गिरेंगी यादें ।
सुबह उमा के हाथों की पहली चाय और फिर अखबार के साथ दिन की शुरुआत की । कविताओं में खोने की सोच रहा था ,खोया ,लेकिन कविताओं में नहीं , बरफीली पहाड़ियों में । ठंडी हवाओं में । हरे भरे जंगलों में ।
लौटा तो लगा कि खाली लौट आया । एक शून्य मेरे भीतर था ।
जिसमें कहीं कोई शब्द नहीं था ,
कोई आवाज नहीं थी ,बिलकुल निः शब्द ।


लौटने के बाद मैंने और उमा ने साथ चाय पी । अच्छा लगा। शून्य में एक दस्तक ।
द्वार खोलो शब्द भीतर आना चाहते हैं ।
मुझे लगा कि आज तो कुछ लिखना ही होगा ।
सांझ ढल गई ठण्ड ने फिर आ घेरा । सारे पक्षी अपने अपने घोंसलों में लोट आए हैं । इस मोह ने एक शून्य को तोडा
और मैं फिर शब्दों के बीच आ बैठा । सोचा कि कुछ लिखना चाहिए ।

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

अंतर

ठण्ड अब बढ़ने लगी है । धूप मीठी लग रही है । और मौसम बिलकुल साफ़ है ।
आज कई दिनों के बाद लिखने बैठा हूँ ,इस लिए सोच रहा हूँ कि क्या लिखूं ? नेताओं को मुद्दे चाहिए ,चाहे वह समाज के लिए कितना ही घातक क्यों न हो .वहां विवेक का कोई महत्त्व नहीं है
और लेखक को विषय .किन्तु विवेक के साथ ।
एक सत्ता से उतरते ही भुला दिया जाता । और दूसरे को पीढियां याद करती हैं एक के सम्मान की सीमा है और दूसरे का सम्मान वैश्विक होता है । एक अथाह दौलत पाना चाहता है और अथाह दूसरा ज्ञान । एक समेटता है दूसरा बांटता है. यह समाज है ।
आदमी और आदमी के बीच सत्ता ने एक गहरी खाई खोद रक्खी है । उस खाई को पाटे यही लेखक का काम है ।

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

उल्लास भी एक रौशनी है


दीपावली पर सभी मित्रों पाठकों को हार्दिक शुभ कामनाएं .
आज लगा कि कुछ अपनी बात कहनी चाहिए । कई दिनों से खामोश था ।
बिलकुल मौन । यानि एक प्रकार से अँधेरे को ओढ़े हुए ,
दीपावली - प्रकाश पर्व पर तो हर ओर प्रकाश होना ही चाहिए
उल्लास भी एक रोशनी है ।
और उम्मीद भी । दोनों एक साथ मिलें तो मंजिल की ओर एक उत्साह के साथ कदम बढ़ेंगे ।

बुधवार, 29 सितंबर 2010

यह दैवीय आपदा थी

आज बहुत दिन हुए अपने ब्लॉग पर बैठे । इस साल की बारिश ने बहुत तबाही मचाई । लग रहा था कि pरक्रती सब कुछ तबाह कर डालेगी । पहाड़ की हर सड़क हर १०० मीटर पर या तो टूट गई थी या ऊपर दे मलवा आने के कारण अवरुद्ध हो गई थी कई जगह तो सड़क का नामो निशान ही नहीं था । एक हफ्ता तक यातायात ठप रहा । वह तो जे सी बी/अर्थ मूवर ने ताबड़ तोड़ चौबीसों घंटे काम करके कुछ मुख्य सड़कें हलके वाहनों के लिए खोल दी .खाने की चीजें ख़त्म होने लगी .आपूर्ति बंद हो गई .हर ओर बाढ़ - भू स्खलन का खतरा मंडरा रहा था । और बारिश थी की थमनेका नाम ही नहीं ले रहे थी .इन्हें दुरुस्त होने में बरसों लगंगे हर गावं में मकानों में दरारें आई कई मकान मलवे के नीचे जमींदोज हो गए . कई लोग दब कर मर गए। ऊपर से पहाड़ धंस कर आने से एक स्कूल में मलवा दीवार तोड़कर अन्दर आने से एक दर्जन से अधिक बच्चे दब कर मर गए । कई आदमी/ औरतें उफनते नदी नालों में बह गए पहाड़ों में भयंकर तरीके से भू स्खलन हुआ .प्रशासन ने कई जगह गावं के गावं खाली करवाए । लोगों ने दहशत में रातें बिताई । लग रहा था कि हर पहाड़ दरकने वाला है ।विशाल चट्टानें खिसक कर ऊपर से नीचे तक आगई . खड़े पहाड़ों के नीचे का हर गावं जमींदोज होने के खतरे के अन्दर था .पूरा उत्तराखंड बरसों पीछे चला गया । लोगो को बचाने के सरकार के प्रयास बहुत सराहनीय थे ।

अब धूप आयी । लेकिन लोगों के आंसूं अब भी बरस रहे हैं । किसी का घर गया तो किसी का प्राणों का प्यारा ।

यह दैवीय आपदा थी । समर्थ पर भी आयी और असमर्थ पर भी ।

मंगलवार, 31 अगस्त 2010

कामन वेल्थ का खेल

आज सुबह टी वी पर कामन वेल्थ खेलों का संगीत देखा , बेहद शर्मनाक प्रस्तुति थी ।भारतीय शास्त्रीय संगीत के सन्दर्भ में तथा भारतीय शास्त्रीय नृत्य के सन्दर्भ में बेहद निराशाजनक स्थिति लगी । भारतीय संस्कृति तथा सैकड़ों क्षेत्रीय संस्कृतियों के इस देश में क्या परोसने के लिए कुछ नहीं था । रहमान साहब को क्या यह नहीं बताया गया था कि कामन वेल्थ खेल भारत में हो रहे हैं ।
यह सरकार को धिक्कारने का विषय है ।
भारत के किसी भी कोने से कुछ भी लिया होता तो गर्व का विषय होता ।
स्पष्ट होता है कि संसद में कैसे लोग बैठे हैं ।लगता है कि आत्म सम्मान के खेल में हम खेलने से पहले ही हार गए हैं । खेलों में घोटालों के महा खेल के बारे में तो खेलों के बाद ही मामला साफ़ होने के बाद कुछ कहा जा सकेगा । जब धुआं उठा है तो आग भी जरुर लगी होगी।
आज कई दिनों बाद आसमान साफ़ देखा । जमीन पानी से पूरी तरह भर चुकी है । नदी नाले भरे हुए हैं यह बारिश कई बरसों बाद हुई है । हालाँकि काफी जान माल का नुक्सान हुआ .बहुत लोगों ने अपनों को खोया यह बारिश उनके लिए कहर बनकर बरसी । फिर भी धरती के लिए यह बारिश अमृत की तरह थी ।
यह धूप भी अमृत की तरह लग रही है ।

गुरुवार, 26 अगस्त 2010

हरा मौसम

आज काफी दिनों के बाद अपने ब्लॉग पर बैठा हूँ एक अजीब -सी उधेड़बुन में हूँ कि क्या लिखूं और क्या न लिखूं ? बरसात अपनी हद से आगे निकल कर सब कुछ तहस नहस करने पर आमादा है । कभी पहाड़ सूख रहे थे और अब जगह-जगह पहाड़ धंस रहे हैं । लगता है कि पहाड़ों पर बना हर मकान खतरे की जद में है ।
यह सब अनियंत्रित निर्माण का नतीजा है ।
दिन बहुत व्यस्त रहा । दोपहर बाद कमरे से बाहर निकलने का समय नहीं मिला । कुछ प्रधान लोग आये थे । उनके साथ बातों में रह गया । शाम को बाहर निकल कर कुदरत का नजारा देखा । हरियाली धरती पर बिछ गयी है ,। एक हरे कालीन की तरह ,जिस पर चलते हुए हरे सपने देखे जा सकते हैं ।
यह मौसम प्यार का है । और इसे सहेज कर रखा जा सकता है।
बादलों को देखा । अभी पानी से भरे आकाश में घूम रहे थे लग रहा था कि बरसने के लिए जगह तलाश रहे हों ।
कई दिनों से पुराने सूख चुके झरनों को फिर झरते देखा ।लगता था कि दूध के झरने हैं ।

सोमवार, 2 अगस्त 2010

हरे सपनों का संसार

हरी भरी धरती जीवन में उत्सव की तरह है ।
हम इस रंग से बहुत उत्साहित होते हैं । और चाहते हैं कि इस हरियाली को हम दीर्घजीवी होकर देखते रहें । इसमें हमारा अतीत भी है और भविष्य भी । स्वप्न भी सच्चाई भी ।
एक सुखद अनुभव भी ।
मैं चाहता हूँ इस हरियाली को अपने रोम -रोम में उगा लूँ , सपनों में सहेज कर रख लूँ । थोड़ा धूप , थोड़ा बादल और थोड़ा पानी अपने भीतर जमा कर लूँ ।
ताकि मेरे भीतर भी हरियाली हमेशा रहे ।

शनिवार, 31 जुलाई 2010

पेड़ लगायें

वारिश में दिन कमरे में ही बीता। कुछ देर रामगंगा नदी देखने गया .अपने पूरे उफान पर थी । देख कर सर चकरा रहा था । लौट कर अपने कमरे में बैठ गया
यह हरियाली,मौसम का यह रूप सहेज कर रखने लायक है
ऐसी बारिश समय समय पर होती रहे तो पहाड़ों में गर्मियों में पीने के पानी की परेशानी नहीं होगी और वातावरण भी स्वच्छ रहेगा ।
हमें इसके लिए अधिक से अधिक बांज ,उतीस ,देवदार बुरांश कंफल के पेड़ लगाने चाहिये।

बुधवार, 21 जुलाई 2010

शिक्षा का गिरता स्तर

पिछली पोस्टें देख रहा था तो कैलाश देवतल्ला भाई की टिप्पणी पर नजर पड़ी - भाई इस समय तो पिछले तीन दिनों से गावं वारिश में नहा रहा है । बहुत मजेदार वारिश हो रही है ।
गावं कोई भी हो इस समय बहुत खराब दौर से गुजर रहे हैं । हर गावं पलायन का दंश झेल रहा है । कई जगह तो गावं का अस्तित्व ही खतरे में है ।
बेरोजगारी के साथ-साथ शिक्षा का गिरता स्तर भी इसके लिए जिम्मेदार है । सरकारी स्कूलों में किताबें निःशुल्क मिलती हैं दोपहर का खाना निःशुल्क मिलता है फिर भी इन स्कूलों में कोई अपने बच्चों को नहीं भेजना चाहता है । खुद इन्हीं शिक्षकों के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ने जाते हैं ।सरकारी स्कूलों के अध्यापकों का वेतन भी निजी स्कूलों के अध्यापकों के वेतन का दस गुना तक ज्यादा है इसके अलावा सरकारी अध्यापकों को दुनियां भर की ट्रेनिंग दी जाती हैं । । लेकिन निजी स्कूलों मे बिना किसी विशेष ट्रेनिंग के भी बेहतर काम दिखाई देता है । सरकार भी बच्चों के साथ खिलवाड़ में पीछे नहीं है । हर वर्ष किताबें बदल जाती हैं । और छात्रों तक किताबें पहुचने में भी बहुत बिलम्ब होता है ।आखिर यह सब क्यों ? बच्चों के साथ यह खिलवाड़ क्यों ? शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है । यह सब सरकारी नियंत्रण से हटाना होगा।

शनिवार, 17 जुलाई 2010

हरियाला आप सभी को मंगलमय हो .



हरियाला त्यौहार पर सभी उत्तराखंड वासियों व सम्मानित पाठकों को हार्दिक बधाई । यह हरियाली धरती पर कायम रहे यही कामना है सब कुछ हरा भरा हो बाहर भी - भीतर भी ।आँखों में प्रेम का हरीतिमा छाई रहे । बातों में प्रेम का हरा पन हो ।
हरियाली , चारों ओर हरियाली .

मंगलवार, 13 जुलाई 2010

अपनी कहानी

सुबह से लेकर दिन ढलने तक की दिनचर्या एक कहानी बन चुकी होती है । अपनी कहानी । जिसे देख भी सकते हैं ,सुन भी सकते हैं दूसरों को सुना भी सकते हैं , पढ़ भी सकते हैं .विश्लेषण भी कर सकते हैं । पर उस कहानी को सम्पादित कर उसमें कोई बदलाव नहीं कर सकते हैं । उस कहानी कोई री -टेक नहीं है। किसी को कुछ कह दिया तो कह दिया । रोटी खाई तो खाई । नहीं खाई तो नहीं खाई । हारे तो हारे ,जीते तो जीते । एक अंश मात्र भी बदलाव की संभावना नहीं ।
अपनी कहानी का एक पात्र हूँ । और एक रस्सी की तरह बहुत सारी चीजों को अपने इर्द-गिर्द लपेटते हुए कई पात्रों को अपने साथ जोड़ते हुए
सब लोगों के बीच खड़ा हूँ या साथ चल रहा हूँ ।
हर रोज अपनी कहानी खुद ही पढ़नी होती है । बिलकुल अकेले ।
रोज की तरह सुबह उठा , पत्नी चाय बनाकर ले आयी । बाहर सुबह की ठंडी बयार में बैठ कर चाय पी । और फिर अपने रोजमर्रा के कामों में जुट गया । एक -एक पल एक कहानी को रचते हुए ।
चारों ओर की सुखद हरियाली ,बादलों से भरा नीला आकाश । और मैं अपने सपनों को तराशते हुए आगे बढ़ते हुए आज की कहानी लिखने बैठा हूँ ।- काश! मौसम का यह रूप हमेशा साथ रहता .
रात स्वप्न अपनी कहानी लिखेंगे
कभी -कभी स्वप्न भी बहुत भयानक कहानी रच डालते हैं । बावजूद इसके स्वप्नों की कहानी भी होती बड़ी दिलचस्प है। और हम बहुत कुछ स्वप्नों की कथा में भी छुपाते हैं । खुद अपनी पत्नी से भी । जो कि हमारी कथा की सबसे पहली पात्र है .

शनिवार, 10 जुलाई 2010

अतीत का केनवास

शनिवार । दिन बहुत गर्म था ।
रूटीन के काम निबटाये . कुछ पुराने कागज पत्र देखे । कुछ बेकार -से कागज जलाये ।
लगा की यादों को जला रहा हूँ । लेकिन यादें हैं कि और ताजा होती जाती हैं
फिर सोचा कि यादों को इस तरह नहीं जलाना चाहिए । उन्हें सहेज लेना ही बेहतर होगा .चाहे मन के किसी कोने में । कमरे की दीवारों में यादों के लिए भी जगह होनी चाहिए ।
कभी- कभी अंतर्यात्रा के समय मन की यादों की गेलरी से होते हुए जाना काफी सुकून भरा लगता है । उस गेलरी में एक विराट केनवास है ।जिसे देखते हुए निकलना बहुत आश्चर्य भरा लगता है । यकीन नहीं होता है कि इस केनवास में चित्रित चित्र स्वयं की जिंदगी के हिस्सा थे । अच्छे या बुरे - सुखद या दुखद , यह बात अलग है ।
अंतर्यात्रा आत्म सुधार के लिए का एक अवसर भी है । आत्म समालोचना भी है। कि हम कहाँ थे और कहाँ हैं ।

मंगलवार, 6 जुलाई 2010


दो दिनों से लगातार बारिश से धरती नहा रही है । और निखरती जा रही है । हरियाली का यह रूप सम्मोहक है । मन को अनूठी शांति मिलती है .पहाड़ों की घाटी हो या शिखर या आकाश । यह बदलाव हमारे मन के भीतर नयी ऊर्जा और ताजगी देता है । नदी- नाले, गाड़-गधेरे सब पानी से भर गए हैं , अभी कुछ दिनों पहले की पानी की त्राहि -त्राहि मची थी .और आज तो लगता ही नहीं कि पांच दिन पहेले इतना भयानक सूखा पड़ा था ।
सुबह अल्मोड़ा जाने की तयारी की थी लेकिन बारिश को देखते हुए फिर कार्यक्रम बदल दिया ।
कमरे में बैठ कर पुराने कागज छांटे कमरे की सेटिंग बदली कुछ रुका हुआ काम किया और मौसम का पूरा आनंद लिया । इत्मीनान से बारिश में भीगा ।
बारिश को अभी भी चैन नहीं । लेकिन जमीन को अभी लगभग चार दिन-रात बारिश चाहिए ।

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

आदमी कितना असहाय है


दिन भर कई काम किये । कभी इधर तो कभी उधर । बारिश की इंतजार में बीता दिन । मौसम अपने समय से काम न करे तो एक भयंकर असंतुलन पैदा हो जाता है । लोग परेशान होने लगते हैं । ईश्वर पर से भरोसा उठ भी जाता है और ईश्वर पर भरोसा करने के आलावा कोई रास्ता भी नहीं दीखता । आदमी कितना असहाय है इस वैज्ञानिक युग में । आज जबकि विज्ञानं ईश्वर की हर रचना को चुनौती दे रहा है ।
टी वी पर बाजार में बिक रहे नकली मिलावटी सामान/फलों के बारे में देख रहा था । यह जहर पूरे समाज को कमजोर /बीमार कर देगा .हमें घरेलू जरुरत की चीजें सीधे किसानों से खरीदने चाहिए । या बाजार सेकच्चा माल खरीद कर घर में तैयार करनी चाहिए ,

गुरुवार, 1 जुलाई 2010

महंगाई

महंगाई भले ही अरबपति मुख्यमंत्रियों /करोडपति मंत्रियों /उद्योगपतियों /नौकरशाहों /बड़े व्यापारियों के लिए कोई मायने नहीं रखती हो लेकिन बेरोजगार/छोटे किसान /गरीब और मजदूर के सामने तो संकट खडा कर ही देती है । महंगाई तो बढ़ी पर मजदूरी या किसानों के उत्पाद का मूल्य वहीँ का वहीँ रहा । इस महंगाई से तो एक भयंकर सामाजिक असंतुलन पैदा हो गया है .
दूसरी सबसे बड़ी समस्या किसानों के लिए पानी की दिखाई दे रही है । जल स्तर कम होने से सिंचाई प्रभावित हो रही है ।सरकार के पास प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के अलावा प्राकृतिक संसाधनों के विकास की कोई नीति नहीं दिखाई दे रही है । पहाड़ों पर सड़कें तो बनाई जा रही हैं लेकिन सडकों के निर्माण में इन्जिनिरियंग का काम कोई बेहतर नहीं दिखाई दे रहा है । यहाँ की इंजीनियरिंग का कार्य अदूरदर्शी है । प्राकृतिक स्थितियों से इनका कोई विशेष लेनादेना नहीं दिखाई देता है । इन्हें पैसा और पहाड़ दिखाई देता है अन्धान्धुन्ध तरीके से पहाड़ खोदे जा रहे हैं ।
सुबह मालूम नहीं कैसी थी ।
दुकान खोलते ही तीन चार ततैयों ने डंक दे मारा ।
सुबह का सुहानापन तो दर्द की भेंट चढ़ गया । लेकिन दर्द तो मुझे हुआ था सुबह तो हर रोज की तरह सुहावनी ही थी ।

कैसी थी सुबह

देखा ही नहीं कि सुबह कैसी थी
यह भी याद नहीं कि सबह के साथ धूप आई या नहीं । खेतों में किसान भरे पड़े थे । सब आपाधापी में थे । देख रहा था कि औरते खेतों से कितना प्यार करती हैं ।
सुबह एक चक्कर गावं गया माई थान दिया जलाया
दिन कंप्यूटर पर बीता । सीधा -साधा नामालूम- सा
गावं में आम आदमी महंगाई के बोझ के नीचे खो -सा गया है । महंगाई के साथ ही उसकी मजदूरी को भी बढ़ाया जाना चाहिए । करोड़ पति मंत्री /नेताओं /उद्योगपतियों और नौकर शाहों के लिए चीजों का महंगा होना कोई मायने नहीं रखता है.लेकिन गरीब के लिए तो महंगाई होना कुँए में धकेले जाने के समान है

शुक्रवार, 25 जून 2010


शनिवार .पूरे हफ्ते के कामों के पुनरावलोकन का दिन । कोई विराम नहीं । काफी दिनों से अपनी कविताओं व आत्मकथा को सम्पादित व व्यस्थित करने की सोच रहा हूँ लेकिन इसके लिए समय प्रबंधन नहीं कर पा रहा हूँ । लगनों के सीजन के कारण समय नहीं निकाल पा रहाहूँ । पिछले महीने अपनी पुरानी सुमो बेचकर नयी स्पार्क कार लाया हूँ इससे थोड़ा व्यस्तता बढ़ गई है । और अव्यस्थित भी हो गया हूँ
मौसम में एक खुशनुमा परिवर्तन हुआ है । वारिश ने धरती के साथ-साथ लोगों के चहेरे के रंग भी बदल दिए हैं । खेतों में नयी रंगत लौट आयी है । और लोग खुश हैं कि अब कुछ होगा .खेतों में मेला लगा हुआ है । लगता है कि यह समय किसानों का ही है ।

शनिवार, 22 मई 2010

अभी अभी एक निमंत्रण से लौटा हूँ । आजकल निमंत्रणों की भरमार है । पिछले दिनों की वारिश से मौसम में कुछ तबदीली आई है । वर्ना इस वर्ष गर्मी से बुरा हाल होता ।
कुछ ख़ास नहीं लिख पाया । हिंद युग्म में कुछ कवितायें प्रकाशित हुई ।

सोमवार, 12 अप्रैल 2010

आखिर कब तक ?

आज दिन बहुत गर्म था । लगता था कि जून आ गया ।
मौसम का यह मिजाज लोगों को विचलित कर रहा है । शहर और गावं दोनों चिंचित हैं .वह किसान हो या नौकरीपेशा चिंता हर कहीं है । करोड़ों रुपये खर्च करके भी आप कुदरत के रस्ते नहीं रोक सकते .क्योंकि आपने ही करोड़ों खर्च करके कुदरत के साथ खिलवाड़ किया है । कुदरत नदी या हवा के प्रदुषण के लिए जिम्मेदार नहीं है । कुदरत जंगलों के सफाए के लिए भी जिम्मेदार नहीं है । यह सब अपने आप नहीं हो रहा है । यह किया जा रह़ा है ।
दर असल जबतक ये जिम्मेदारियां तय नहीं हो जाती तब तक सुधार की कोई भी कोशिश सफल नहीं होगी और हालात बदतर होते जायंगे । हवा और पानी के लिए घर -घर लड़ेंगे गली -मोहल्ले लड़ेंगे , गावं-गावं लड़ेंगे ,शहर -शहर लड़ेंगे ,देश- देश लड़ेंगे । लेकिन सुधार की तरफ कोई नहीं सोचेगा ।हर किसी के अपने स्वार्थ हैं . पूंजीपतियों के अपने स्वार्थ हैं .फैक्ट्रियों और नेताओं के अपने स्वार्थ हैं . आज पानी बोतलों में बिक रहा है कल हवा बिकेगी फिर धूप बिकेगी । ये स्थिति आने वाली है । वर्तमान हालात को देखते हुए यह स्थिति ज्यादा दूर नहीं दिखती । क्योंकि अपनी तरफ से कोई कुछ करता नहीं दिखाई नहीं दे रहा । सबकी नजर सरकारी वजट पर है । और वजट की बन्दर बाँट होती है । फिर सब कुछ वैसा का वैसा । हम सुधार की प्रक्रिया को अपने पूजा -पाठ या भोजन की तरह अनिवार्य क्यों नहीं बनाते ?

शनिवार, 3 अप्रैल 2010

कहानियां तरह-तरह की

हर रोज अपनी बात कहनी होती है . या कहूँ कि पल-पल को जोड़ कर एक कहनी बनानी होती है .जो बहुत रोचक हो । कहानी सिर्फ अपनी ही लगाने से नहीं बनती है । उसमें दूसरों को भी जोड़ना होता है या घसीटना होता है । मैं जिससे मिला और जो मुझसे मिला उसे भी । किसी फूल के पास जाकर कुछ पल उसके पास बैठना ,उसकी सुगंध में शामिल होना और उससे चुपचाप मन ही मन अपनी बात कहना भी प्रकृति के साथ हमारे व्यवहार का एक हिस्सा है । जो हमारे दिन को सुखद बनाता है । हम कुछ देर उसके रंग और गंध से सम्मोहित हो जाते हैं .अपने तनावों से दूर हो जाते हैं । किसी को फूल भेंट करना हमें सुकून पहुंचाता है । एक चिड़िया का अपने चूजे के साथ बतियाना हमें ख़ुशी देता है । जबकि हम उनकी भाषा नहीं जानते हैं।
प्रकृति में चारों ओर हमारे मित्र फैले हुए हैं । कमी है तो उनके साथ दोस्ताना संवाद की । यही चीजें हमारी कहानी के जीवंत और रोचक पात्र हो सकते हैं । इनके और हमारे बीच के संवाद दूसरों के लिए महत्वपूर्ण हो सकते है । प्रकृति के साथ बात करती एक कहानी इस पूरी धरती को ख़ुशी दे सकती है । ख़ुशी किसी उपदेश में नहीं मिलती है किसी के कहने से नहीं मिलती । प्रकृति के साथ एक मधुर संवाद कुछ पल हमें अपने आप से संवाद की ओर ले जाता है जहां हमें किसी ख़ुशी की तलाश नहीं रह जाती । और बाहर निकलते ही हम फिर ख़ुशी तलाशते हैं ।अपने दिन में टुकड़ा-टुकड़ा घटनाएँ जोड़ कर एक कहानी बनाते हैं ।ख़ुशी की कहानी । दुःख की कहानी ।सच/झूठ और भी तमाम तरह की कहानियां ।

शनिवार, 27 मार्च 2010

दिन भर बहुत व्यस्त रहा । एक नया ब्लॉग जागरण जंक्शन पर बनाया है । उसे सुबह लिखता हूँ । और इस ब्लॉग को शाम को लिखता हूँ । दिन में अन्य कार्य । गर्मी जल्दी शुरू हो गई है । दिन में देख रहा था कि रामगंगा नदी में पानी अब एक घराट के बराबर रह गया है । यह चिंता का विषय है । कि इस नदी में पानी कैसे बढेगा या इस नदी के पानी का विकल्प क्या होगा । यदि जल्द वर्षा नहीं हुई तो पीने के पानी का विकल्प क्या होगा । पानी यहाँ अब एक समस्या बनता जा रहा है । क्योंकि वारिश कम होने के कारण नया पानी नहीं मिल पायेगा जिससे कि श्रोत फूट पड़ते और चातुर्मास तक पानी मिल जाता । पिछली बार चातुर्मास में भी वारिश बहुत कम हुई थी जिस कारण गधेरों में पानी नहीं रहा । रही- सही कसर जंगलों में लगाने वाली आग ने पूरी कर दी । पहाड़ों के लिए अलग जल संरक्षण नीति बना कर तुरंत लागू करनी चाहिए ।

मंगलवार, 23 मार्च 2010

अनुभव

कई दिन हो गए अपने ब्लॉग पर नहीं बैठे .लगा कि कुछ छूट गया । दिन में कई तरह के विचार आते जिन्हें तुरंत नोट कर लेना चाहिए था लेकिन जो छूट गया वो छूट गया । उसे उसी रूप में सहेजना फिर बहुत मुश्किल होता है । जैसे हम कई बार धूप से इतने प्रभावित हो जाते हैं कि कि धूपको लिखना चाहते हैं लेकिन शाम को धूप नहीं लिखी जा सकती । अनुभव में बहुत कुछ बयां करना छूट जाता या फिर कुछ बनावटी सा बन पड़ता है ।
सोचता हूँ कि जो निकल गया उसे छोड़ दूँ लेकिन फिर भी कुछ न कुछ यादों में सिमटा रहता है और उसे लिखे बगैर चैन नहीं ।

शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

कल लिखना आधे में ही बंद करना पड़ा । बच्चों ने एकाग्रता भंग कर दी । एक यात्रा( चाहे वह छोटी हो या बड़ी ०) में कुछ बहुत देख सकते हैं । बहुत दूर तक हमारी नजर जा सकती है और बहुत कुछ अपने भीतर समेत सकते हैं । यात्रा का एक मकसद यह भी है कि हम नया क्या देख पाते हैं । मैं जो जिंदगी देखता गया वह मेरे रोजमर्रा की दिनचर्या से बिलकुल अलग थी । लोगों के चेहरों से परेशानियाँ और खुशियाँ, क्रोध और प्रेम हम चलते -चलते देख सकते हैं । जिंदगी कहीं दौड़ रही है तो कही एक घुटन भरे कमरे में कैद है। बच्चों का एक व्यवसाय देखा कूड़ा बीनना ,यह समाज के लिए एक बड़ी दुखद घटना है। कि संवेदनहीन लोग इन्हें बुरी तरह फटकारते हैं । इनके लिए यह काम भी एक मानसिक प्रताड़ना झेलने वाला जोखिम का काम है ।

फिर मर गए तेंदुए

सुबह -सुबह दिल्ली से लौटने पर अखबार देखा तो सर चकरा गया । खबर थी कि देहरादून के वन रेंज में दो तेंदुए मृत पाए गए । इन तेंदुओं की मौत या मारे जाने का सिलसिला ख़त्म नहीं हो रहा है । समाज संवेदनहीन हो गया है और सरकार नाकाम । अब तो भगवान् ही मालिक है । लगता है कि बाघों /तेंदुओं की हत्याओं के प्रति कोई भी गंभीर नहीं है ।
भतीजे राजेश जी की शादी में दिल्ली गया था । घर से मैं दिनु और इजा गए थे . शादी ठीक रही कई ऑरकुट मित्र भी मिले ,दामोदर ,कैलास आदि । परिवार और गावं के सभी लोगों से मुलाकात हुई । अच्छा लगा । कुछ समय के liye तो laga ही नहीं कि हम लोग दिल्ली में हैं ।

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

अल्मोड़ा में नाबार्ड की मीटिंग से से कल रात लौटा । देर हो गई थी ,उमा खाना बनाने लग गई थी । यह मोबाइल भी बड़ी अजीब बला है हर घंटे की सूचना बीबी माँगने लगती है । वैसे इसपर झूठ बोलना काफी आसान है । कहीं बैठे रहो और बीबी पूछे तो कहीं बता दो । लेकिन अगर पकडे गए तो बीबी बुरी तरह पीट भी देगी । -सावधान !
मीटिंग में काफी लोग आये थे । कई नए मित्र बने । कई नयी जानकारियां मिली । अनुभव बढ़ा ।

सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

सार में सारस

अभी-अभी अल्मोड़ा से लौटा हूँ । मासी पहुँच कर देखा कि ढलती सांझ में हरी -भरी सार के ऊपर सारसों का झुण्ड उड़ रहा है । वाह ! अद्भुत !
साथ में समयांतर ले कर गया था । कुछ देखा । अखबार देखा कि मुंबई में शाहरुख़ खान के घर पर भाषाई तालिबानों का हमला हुआ । लानत है इन्हें । आखिर बाल ठाकरे और राज ठाकरे इस देश को क्या बनाना चाहते हैं ? यह तो बहुत ही घटिया और गटर लेबल की राजनीति हुई । इन दोनों की देश विरोधी हरकतों पर तत्काल पावंदी लगनी चाहिए । अगर इन्हें ढील दी गई तो यह कोढ़ कल पूरे देश में फैलेगा । तब सरकार के आगे बड़ी समस्या खड़ी हो जायगी .मुंबई और ऑस्ट्रेलिया की घटनाओं में फर्क क्या रहा ?
-सारा भारत एक है । इस विचार को ताकत मिलनी चाहिए ।

शनिवार, 30 जनवरी 2010

कल का अखबार देखा चौखुटिया के पास एक तेंदुआ फिर मारा गया । आश्चर्य कि तेंदुओं की मौत पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है । यह क्षेत्र वन तस्करों के लिए सुरक्षित क्षेत्र है । साथ ही वन्जारों पर भी नियंत्रण रखा जाना चाहिए । क्योंकि ये लोग छोटे जंगली जानवरों -सियार , जंगली खरगोश , वन मुर्गी ,खुबसूरत और लम्बी पूंछ वाला लुप्तप्राय जानवर जिसे कुमाउनी में अठराव कहते हैं इनका शिकार करते हैं ।
सुबह जल्दी उठकर रोज के काम निबटाये ठण्ड बहुत थी लेकिन तेज धूप भी । कल रानीखेत गया था एक मीटिंग थी । लौटते हुए शाम हो गई थी । पहाड़ों का बहुत खुबसूरत नजारा देखते हुए जाने का पूरा आनंद लिया । हर मोड़ पर खूबसूरती इंतज़ार करती लगती है । लेकिन हमें तो देखकर निकल जाना होता है । -खूबसूरती भी ,बदसूरती भी और रह जाते हैं रस्ते । जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण सुख इन रास्तों के पास ही होता है जो ये हमें देदेते हैं ।

मंगलवार, 26 जनवरी 2010

ठण्ड में सारस

सुबह अभी बहुत ठण्ड है। इसके बजूद भी पक्षी सुबह की ठण्ड के गीत गाने निकल आये । कल देखा कि रामगंगा नदी में कई सारसों के जोड़े तैर रहे हैं ।काफी समय बाद इन मेहमान पक्षियों को इस नदी में देख कर बहुत ख़ुशी हुई । कल दिन भर बहुत व्यस्त रहा । एक बुकिंग छोड़ने जौरासी गया था । रस्ते में एक्सीलेरेटर का तार टूट गया फिर जुगाड़ कर तार जोड़ा तब वापस मासी आया मौसम सुहावना कहूँ या डरावना कहूँ क्योंकि ऐसे मौसम को देख कर मैं तो खुश हो सकता हूँ लेकिन किसान तो परेशान हैं । उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा है। इस महंगाई के दौर में अगर किसान के खेत सूख जाएँ तो किसान तो बेचारे मारे गए । एक एक मंत्री/ उद्योगपति /तस्कर/हीरो करोड़ों अरबों रुपयों का मालिक है । उन्हें क्या परवाह कि वारिश हो या न हो । किसान की कौन सोचता है - सिर्फ किसान । पांच सितारा होटलों में रहने वाले मंत्रियों का भला समाज की चिंताओं से क्या वास्ता ? जो मंत्री समाज को कैटल क्लास की संज्ञा दे उस मंत्रीऔर उस मंत्री को समर्थन देने वाली सरकार से देश की जनता क्या उम्मीद करेगी ? और दुर्भाग्य है इस देश की जनता का कि वे फिर भी मंत्री पद पर बने हुए हैं । सरकार को जनता के हितों के विरुद्ध नहीं जाना चाहिए ।

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

आज और कुछ नहीं

कल के अखबार में एक तेंदुए के मारे जाने की खबर फिर छपी । हे भगवान् यह क्या हो रहा है ? इस पर संसद में प्रश्न उठाया जाना चाहिए । और इनकी सुरक्षा निश्चित की जानी चाहिए । आज और कुछ नहीं ।

मंगलवार, 19 जनवरी 2010

हिंसा की पाठशाला

सुबह चिंताजनक समाचार से शुरू हुई कि कार्बेट पार्क रामनगर में एक बाघ की मौत हो गई है । पूरी दुनिया बाघ बचाने के लिए प्रयास कर रही है । और यहाँ बाघ और अन्य जानवर बेमौत मरे जा रहे हैं .यह घटना प्रशासन तंत्र की मुस्तैदी की पोल खोलती है . साथ ही सरकार की प्राणियों के हितोंकी सुरक्षा की चिंता की पोल भी खोलती है । हर दिशा से शिकारी और अंगों के व्यापारी जानवरों को मार गिराने के लिए बन्दूक ताने खड़े हैं। और सरकारें हैं कि मरने दे रही है .खूबसूरती हमेशा से ही प्राणघातक रही है। गावों में मुर्गी सुबह ब्रह्म मुहूर्त में लोगों को जगाने के लिए बांग देती है जबकि शहर में मुर्गी सुबह ब्रह्म मुहूर्त में अपने प्राणों की रक्षा के लिए चीखती हैभैंस /गाय सुबह अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए राभंती हैं और यहाँ शहर में सुबह बूचड़खाने की ओरजाते हुए अपने प्राणों की रक्षा के लिए राभंती हैं .ये बूचडखाने समाज को हिंसक बनाने की पाठशालाएं हैं . महात्मा गाँधी का अहिंसा का दर्शन अप्रासंगिक लगता है जबकि आज आवश्यकता इस बात कि है इस धरती पर एक गावं या शहर तो ऐसा हो जो मांसाहार का विरोध करता हो या शाकाहारी हो । हम यदि अहिंसा का संकल्प लें तो आतंकवाद की आधी समस्या हल हो जाएगी रह जाएगा तो सिर्फ अन्याय का अहिंसक प्रतिशोध । हमें आज नहीं तो कल अहिंसा का मार्ग चुनना ही होगा ।

शनिवार, 16 जनवरी 2010

कल ही दिल्ली से लौटा हूँ । संस्था के कार्य से गया था । मामा जी के यहाँ रुका था ।मारे कुहरे के तीन दिन धूप नहीं देखी बगैर धूप के जीवन की कल्पना भी इतनी ही ठंडी होगी . पाखी और अहा जिंदगी पत्रिकाएं खरीदी । इनमें रचनाएँ प्रकाशनार्थ भेजूंगा यहाँ की भाग दौड़ वाली जिंदगी थका देने वाली और ऊबाऊ लगती है । दौड़ते भागते वाहनों को देख कर लगता है की यहाँ लोग धैर्य और सुकून की जिंदगी जीना पसंद नहीं करते और न ही दूसरों को इस तरह जीने देना पसंद करते हैं । यहाँ धन ही सब कुछ है । उसके आगे जीवन का कोई मूल्य नहीं । आखिर इस ह्रदयहीन दौड़ा-भागी का औचित्य क्या है ? जीवन के मूल्य अनावश्यक नियम और कानून के फंदे में उलझ कर रह गए हैं ।सत्ता के पास के प्राकृतिक जीवन के दृष्टिकोण का अभाव है .और न ही नागरिकों/प्राणियों के प्राकृतिक हितों की सुरक्षा की कोई चिंता या कार्ययोजना है. जबकि प्राकृतिक नियम बेरहमी से तोड़े जा रहे हैं । यहाँ शुद्ध हवा और शुद्ध जल के लिए कोई नियम नहीं है कुछ इस भावना के साथ कि धन के आगे यह सब कोई मायने नहीं रखते.यहाँ व्यक्ति के धन और स्व केन्द्रित होने के कारण प्राकृतिक तौर पर जीवन मूल्यों का हनन हुआ है

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...