पिछली पोस्टें देख रहा था तो कैलाश देवतल्ला भाई की टिप्पणी पर नजर पड़ी - भाई इस समय तो पिछले तीन दिनों से गावं वारिश में नहा रहा है । बहुत मजेदार वारिश हो रही है ।
गावं कोई भी हो इस समय बहुत खराब दौर से गुजर रहे हैं । हर गावं पलायन का दंश झेल रहा है । कई जगह तो गावं का अस्तित्व ही खतरे में है ।
बेरोजगारी के साथ-साथ शिक्षा का गिरता स्तर भी इसके लिए जिम्मेदार है । सरकारी स्कूलों में किताबें निःशुल्क मिलती हैं दोपहर का खाना निःशुल्क मिलता है फिर भी इन स्कूलों में कोई अपने बच्चों को नहीं भेजना चाहता है । खुद इन्हीं शिक्षकों के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ने जाते हैं ।सरकारी स्कूलों के अध्यापकों का वेतन भी निजी स्कूलों के अध्यापकों के वेतन का दस गुना तक ज्यादा है इसके अलावा सरकारी अध्यापकों को दुनियां भर की ट्रेनिंग दी जाती हैं । । लेकिन निजी स्कूलों मे बिना किसी विशेष ट्रेनिंग के भी बेहतर काम दिखाई देता है । सरकार भी बच्चों के साथ खिलवाड़ में पीछे नहीं है । हर वर्ष किताबें बदल जाती हैं । और छात्रों तक किताबें पहुचने में भी बहुत बिलम्ब होता है ।आखिर यह सब क्यों ? बच्चों के साथ यह खिलवाड़ क्यों ? शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है । यह सब सरकारी नियंत्रण से हटाना होगा।
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