ठण्ड अब बढ़ने लगी है । धूप मीठी लग रही है । और मौसम बिलकुल साफ़ है ।
आज कई दिनों के बाद लिखने बैठा हूँ ,इस लिए सोच रहा हूँ कि क्या लिखूं ? नेताओं को मुद्दे चाहिए ,चाहे वह समाज के लिए कितना ही घातक क्यों न हो .वहां विवेक का कोई महत्त्व नहीं है
और लेखक को विषय .किन्तु विवेक के साथ ।
एक सत्ता से उतरते ही भुला दिया जाता । और दूसरे को पीढियां याद करती हैं एक के सम्मान की सीमा है और दूसरे का सम्मान वैश्विक होता है । एक अथाह दौलत पाना चाहता है और अथाह दूसरा ज्ञान । एक समेटता है दूसरा बांटता है. यह समाज है ।
आदमी और आदमी के बीच सत्ता ने एक गहरी खाई खोद रक्खी है । उस खाई को पाटे यही लेखक का काम है ।
बुधवार, 1 दिसंबर 2010
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