बुधवार, 8 दिसंबर 2010

पलायन का दंश


एक गावं सुराना रिखारी से अभी-अभी लौटा हूँ । प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर गावं । यहाँ से चारों ओर का नजारा देख सकते हैं .हिमालय श्रंखला की हिमाच्छाद्दित पहाड़ियां मन को मोह लेती हैं । तो नीचे की ओर रामगंगा घाटी आकर्षित करती है ।इतनी ऊंचाई पर बसा यह गावं प्राकृतिक रूप से धनी होने के साथ -साथ फसल उत्पादन में भी आत्म निर्भर है । यहाँ पानी भी प्रचुर मात्र में उपलब्ध है । इसे प्रयास करके आर्थिक रूप से भी आत्म निर्भर बनाया जा सकता है । लेकिन यह गावं भी रोजगार की कमी के कारण पलायान का दंश झेल रहा है । पहाड़ों में गावों में उत्साही नवयुवकों के पलायन से वृद्ध लोगों के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई है । वे लोग भी अकलेपन का दंश झेल रहे हैं ।
मैंने अभी तक देखा है कि गावों में रोजगार सृजन के लिए प्रयास किये जायं तो काफी हद तक पलायन रुक सकता है ।
नेट पर बैठ कर मेल देखी । कुछ काम निबटाये ।
सुबह दिल्ली से मामाजी जी आये थे । कुछ देर उनके साथ बैठ कर बातें की।

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