बुधवार, 30 सितंबर 2009

याद नहीं स्वप्न

रात जो स्वप्न देखे वे पूरे याद नहीं रहे । आधे -अधूरे । जिनसे कोई संकेत नहीं पकडा जा सकता । आजकल मन्दिर का काम देख रहा हूँ तो सपने भी मन्दिर से ही सम्बंधित हो रहे हैं । लेकिनगावं मैं होने वाली भावी घटनाओं से उनका कुछ न कुछ संकेत तो है ही ।
दिन में घरेलू काम से फुर्सत मिलाने के बाद आफिस में बैठकर संस्था का काम देखा ।कल के लिए कार्यक्रम की रूप रेखा तय की ।

मंगलवार, 29 सितंबर 2009

महिलाओं की दिनचर्या

नीद जल्दी खुल गई थी . लेकिनअंधरे की वजह से बाहर निकालने का मन नहीं कर रहा था । सुबह जाड़ा दस्तक देने लगा है । दिन गर्म और शाम फिर ठंडी । गावों में महिलाओं की दिनचर्या बहुत व्यस्त होने लगी है सुबह से ही उन्हें घास काटने का तनाव घेर लेता है फिर खाना बनाने की फिक्र दूसरी तरफ़ अनाज व अन्य फसलों को कूटने/मानने /सुखाने -सभालने की मारामारी ,तीसरी चिंता की यदि वारिश हो गई तो बर्ष भर के किए कराये पर पानी फ़िर जायगा -सारे काम आनन -फानन में करने हैं । तब माना जायगा की असोज बटोर लिया है । पहाड़ का दिन महिलाओं के लिए पहाड़ की चढाई जैसा कठिन होता है शाम होते-होते इतना थक चुकी होती हैं कि अपने लिए खाना बनाने की भी सामर्थ्य नहीं रहती । और अगर बच्चे छोटे हों ,उन्हें घर पर देखने वाला कोई न हो तो महिलाओं के साथ -साथ बच्चों की स्थिति भी बहुत दयनीय हो जाती है । रोजगार के लिए पलायन ने पहाड़ की महिलाओं /बूढों और बच्चों को एक भयानक अकेलापन दिया है । पहाडों का सौंदर्य जितना अद्वितीय है समस्यायें भी उतनी ही विकट हैं ।

सोमवार, 28 सितंबर 2009

धूप में शब्द

धूप कहना चाह रही थी कि मैं धूप हूँ । और तुम छांह ढूंढ़ लो ।
लेकिन शब्द नहीं मान रहे थे । वे निकल पड़े चरवाहों के साथ । शब्द धूप में तपना चाहते थे ,वे सारी गर्मी/सारा तेज सोख लेना चाहते थे अपने भीतर , शब्द मेरी आंखों को देना चाहते थे तेज
दिन में सोच रहा था कि आज शाम को काफी लिखूंगा लेकिन खाना खाते ही पलकें भारी लगाने लगी । और ज्यादा देर तक कंप्यूटर पर बैठना नहीं हो सकेगा ।

रविवार, 27 सितंबर 2009

लेकिन सुकून

कल लिखने का मन नहीं किया । थक गया था । गावं कैसे भी हों होते बहुत सुंदर हैं शांत और गंभीर । चारों ओर से प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य से घिरे । जिस गावं में भी जाना होता है उस गावं में ही लगता है कि यहीं घर बनाकर रहा जाय। आज तो लगभग गावं सड़क से जुड़ गए हैं लेकिन पुराने समय में लोगों ने अपना समय बहुत कठिनाई में गुजारा होगा । तब सड़कें नहीं थी पैदल मार्ग प्रचलन में थे । आज की तरह हर गावं के नजदीक बाज़ार नहीं थे । लोगों को रोजमर्रा की चीजें लेने बहुत दूर तक पैदल ही जाना होता था । लेकिन जरूरतें भी बहुत कम हुआ करती थी अनाज व शाक- सब्जी का उत्पादन घर पर ही प्रयाप्त हो जाता था पानी की कोई कमी नहीं थी वे लोग जो तमाम कठिनाइयोंऔर असाध्य रोगों के बावजूद जो बच गए वे बहुत ताक़तवर होते थे तथा शारीरिक श्रम बहुत किया करते थे । तथा खाने में दूध/दही/ छाछ /घी का प्रयोग किया करते थे क्योंकि पशु पालन तब मुख्य व्यसाय था । और हर घर में दूध, दही,घी की कोई कमी नहीं थी । । तब लोग घरेलू इलाज पर ज्यादा निर्भर होते थे । जबकि आज देखने में आ रहा है कि ऐलोपथी से ऊबे हुए लोग घरेलू /आयुर्वेदिक इलाज की ओ़र झुक रहे हैं । पहाडों में दूर दूर ऊँचाइयों में बसे गावों को देख कर पुराने ज़माने के लोगों की याद आई । आज सुविधाओं ने जीवन को बहुत आसान बना दिया है । हर चीज मनुष्य के वश में है । लेकिन सुकून नहीं ।

गुरुवार, 24 सितंबर 2009

जादुई मिठास .

कल अल्मोड़ा गया था ।साथ में -मां नंदा देवी सेवा समिति के अद्ध्यक्ष श्री किशानंद उप्रेती जी भी थे । संस्था के पंजीकरण का नवीनी करण करवाया, देर होगई तो रात वहीं होटल में रुके । शाम को एक चक्कर बाज़ार घूमने गए यहाँ पर लोग शाम के वक़्त बाज़ार मैं घूमना ज्यादा पसंद करते हैं शाम के वक़्त में बाज़ार में अच्छी रौनक रहती है । लोग तरह-तरह की चीजों की खरीददारी ,घूमने,मिलने -मिलाने आते हैं ।लोगों की वाणी में एक तरह का जादुई मिठास है । शहर -एक बौद्धिक शहर भी है और खूबसूरत भी । सबसे खास बात यह है की शहर अपने भीतर गावं की संस्कृति को भी जीवित रखे हुए है ।
मैं और उप्रेती जी साथ ही रुके । रात देर तक संस्था के कार्यों के बारे मैं चर्चा करते रहे । लौट कर खाना खाकर कुछ देर पिताजी के साथ बैठा । बातचीत की । थकान महूसस हो रही थी .तो सोचा की जल्द ही डायरी लिख कर सो जाना चाहिए ।

सोमवार, 21 सितंबर 2009

प्रतिदिन एक समय

दिन में अपने अन्य कार्यों के साथ सोच रहा था की आज अपने ब्लॉग पर क्या लिखूंगा और अब नींद के मारे बुरा हाल है मन कर रहा है कि छोड़ो भी अब क्या लिखना है । अधिकांश समय इसी कमरे में कम्प्यूटर पर बीता । कभी कुछ --कभी कुछ करता रहा ।उब गया तो रसोई में जाकर चाय बनाकर चाय पी ,फिर खेत में जाकर कुछ काम किया . बच्चों के साथ बैठा ,लौटकर फ़िर कमरे में आया कुछ पुरानी फाइलें देखी । कुछ किताबें तरतीबवार लगाई और अपनी डायरी के पुराने पन्ने पढ़े । कम से कम पाँच सौ पन्ने होंगे जिन्हें सम्पादित करना है । और कम से कम चार सौ कवितायें होंगी जिन्हें संपादित कर प्रकाशन के लिए तैयार करना है । अब इन्हीं कार्यों को प्रथिमकता की सूची में रखना होगा , प्रतिदिन का एक समय इस काम के लिए निर्धारित कर दूंगा ।
असोज के काम ने बहुत जोर पकड़ लिया है । लोग बाज़ार से बिल्कुल से गायब से हो गए हैं । लोग यानी खरीददार ।

रविवार, 20 सितंबर 2009

आंखों में रंग

कोई और काम नहीं था सिवाय घर देखने के । सुबह उमा के साथ धान मानंने खेत में गया ,खेतों में काम करना मेरे लिए काफी आनंददायी काम है । खेतों में मैं प्रकृति के करीब होता हूँ पौंधों और मिट्टी से बातें कर सकता हूँ । हवा को सुन सकता हूँ । अपनी आंखों मैं भर सकता हूँ रंग पूरी प्रकृति के । रच सकता हूँ कोई तस्वीर मन के भीतर ।
खेत से लौटकर मैं सीधे अपने कम्प्यूटर कक्ष मैं आ गया । कुछ फाइलें चेक की । उमा मुझे कुछ घर के काम का निर्देश देकर फ़िर घास के लिए चली गई । मुझे उसके लौटने तक दिन के खाने की सारी तैयारी पूरी करके रखनी थी । खाना खा कर थोडी देर आराम करने के बाद वह फ़िर घास के लिए निकल गई . वह शाम तक बुरी तरह थक चुकी होती है । पहाड़ में औरतें बहुत मेहनत करती हैं । पूरे घर का बोझ उनके कन्धों पर टिका होता है । और ८०% आदमियों का भी । क्योंकि आदमी बाज़ार से शाम को दारु के नशे में धुत्त होकर घर पहुंचता है । दिनभर की थकी औरत को उसकी गालियाँ ,मार ,ताने और उसकी बुरी हालत को भी झेलना होता है ।

शनिवार, 19 सितंबर 2009

पहाड़ और परेशानी

आज दिन बहुत थका देने वाला था । पहले गावं गया । वहां माईथान और धूणी मन्दिर मैं धूप बत्ती की । फिर वहाँ से लौटकर तिमिलखाल में आयोजित शहीद मोहन चंद्र शर्मा जी के पुण्य तिथि के दिन आयोजित श्रद्धांजलि समारोह में श्रद्धा सुमन अर्पित करने गया । लौटकर फलाहार लिया । पहली नवरात्रि का व्रत लिया था ।
तिमिलखाल की चढाई देख कर बहुत आश्चर्य हुआ कि यहाँ लोगों कोअपने घर तक पहुचने के लिए पहाड़ चदनेमें बहुत परेशानी होती होगी रोजमर्रा के सामान ले जाने में तो और भी दिक्कत का सामना करना पड़ता होगा आज के इस समय में तो जबकि हर घर तक को सड़क मार्ग से जोड़ा जा रहा है यह गावं वंचित कैसे रह गया .तथा इससे ऊपर के गावों में तो और भी अधिक बुरा हाल होगा, यहाँ की आबोहवा बहुत अच्छी है ।

गुरुवार, 17 सितंबर 2009

स्वप्न कथा

सुबह उमा ने ४ बजे उठा दिया, खेती के दिन हैं वह अपने दिन के काम की तैयारियों में लग गई ।और मैं अपने रोज के काम में । दिन कंप्यूटर पर बीता, कुछ देर खेत में काम किया । शाम को बाज़ार की तरफ़ निकला दोस्तों से गप्पें मारने । बंधू जी से गप्पें मारी लेकिन वहाँ मौलिक /सामाजिक बातें होती हैं सुरेश देव्तल्ला प्रधान , महेश वर्मा , भगवत सिंह रावत ,राजेंद्र बिष्ट ,चंदू भाई, से होता हुआ मिन्टो दीदी जी के घर ।
रचनात्मक कुछ भी नहीं । दिन के बेकार ही गुजर जाने का एहसास (बेकार गुजर जाना यानि सृजन किए बगैर गुजर जाना ) रात को होता है , तब दिन निकल चुका होता है । और हमारे पास एक रात होती है , स्वप्न देखने के लिए । वहाँ सृजन नहीं होता है - हो सकता है सृजन की प्रेरणा हो -स्वप्न अतीत भी है और भविष्य भी । स्वप्न अक्सर हमें रास्ते पर लाने की कोशिश करते हैं हमारा अंतर्मन हमारे भविष्य की गणना करता है बहुत दूर तक देखता है । आवश्यकता है तो स्वप्न को समझने के द्रष्टिकोण की ।

बुधवार, 16 सितंबर 2009

आस्था का केन्द्र

दिन में मैं और उमा गावं गए । मन्दिर निर्माण का कार्य देखा इशवरी दत्त ,बाला दत्त ,दामोदर ,प्रकाश चन्द्र , मोहन चन्द्र काम कर रहे थे । उमा घास काटने चली गई और मैं मन्दिर में रहा । सभी लोगों की आस्था का केन्द्र , यहाँ आकर सभी सर झुकाते हैं अपनी समस्याओं के समाधान चाहते हैं . अपनी गलतियों को स्वीकार करते हैं दिमाग मैं एक नई ताजगी और आत्मविश्वाश लेकर घर लौटते हैं . कुछ देर बाद मैं भी खेत में चला गया ,दिमाग को एक अद्भुत शान्ति मिलती है इन खेतों के बीच ।मुझे तो इन खेतों के बीच बहुत आनंद आता है लेकिन देख रहा हूँ कि उमा के पास काम की अधिकता हो गई है शाम होते -होते वह बुरी तरह थक चुकी होती है । जबकि अभी असोज का पूरा महीना शेष है । फसल भी कटनी है और घास भी काटनी है । इसे व्यस्थित करना होगा । सुबह एक आसमानी रंग की खुबसूरत चिड़िया घर के आगे के पेड़ पर बैठ गई यह आगंतुक चिड़िया थी । कुछ देर पेड़ की शाख बैठकर पर उसने गाना गया ।

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

धान उनकी रग-रग में

कल बहुत थक गया था तो डायरी नहीं लिखी ,आज दिन में कुछ देर संस्था का काम किया । खेत में गया । उमा ने धान काटे थे मैंने उन्हें एक ढेर में लगाया ताकि चार पाँच दिन बाद उन्हें मान दिया जाय । हमारे यहाँ एक पीढ़ी इन धानों को बहुत प्यार करती है ये धान उनकी रग-रग में उगते हैं उनका अतीत इन्हीं धान की बालियों के साथ गुजरा वे आज भी ,उम्र के आखिरी दौर में अपने खेतों में बड़े प्यार से आते हैं हरे -भरे खेतों के बीच अपनी यादों को सींचते हैंऔर घर लौट कर अपने परिजनों के बीच खेत -बैल और फसल की यादों को बाँटते हैं । धान ही उनकी संस्कृति रही और धान ही उनका जीवन उनकी पूजा -तपस्या । और एक पीढ़ी को ये धान उलझन लगते हैं । उन्हें ये धान छोड़ कर शहर जाना है । खैर........ ।
अभी खाना खा कर कुछ देर इजा -बौज्यू के साथ बैठ कर बात चीत की । उससे पहले मुन्नू,कुन्नु और दिप्पी ने दिमाग का भुजिया बना कर रख दिया था । बारिश के बंद होने के साथ ही खेती बाड़ी के काम ने जोर पकड़ लिया है । यह समय किसानों के लिए बहुत ही व्यस्तता का होता है । पूरी सार किसानों से भरी पड़ी है । कोई फसल काट रहा है तो कोई उन्हें ढेर लगा रहा है । तो कोई दूसरी फसलों को काट कर घर को ले जा रहा है । चाय- नाश्ता, खाना -पानी सब खेत में । ऊपर से मौसम का भी डर है इसलिए सारे काम फ़टाफ़ट निबटाने हैं ।

रविवार, 13 सितंबर 2009

प्रेम की भाषा का जवाब

दिन बेकार -सा गया । यूँ तो करने को कुछ ख़ास नहीं था फ़िर भी कुछ काम करने बैठो तो बच्चों का उधम । परेशान होकर सोने जाओ तो बच्चे वहाँ भी नहीं छोड़ते ।बहुत सुखद है बाल लीला । लेकिन एक घंटे मैं दिमाग का भुजिया बना कर रख देते हैं ।और एक घंटे बाद दिमाग किसी काम का नहीं रहता । सिर्फ़ कुछ घरेलू काम किए । फूलों की छंटाई की । गाय और बछड़े को नहलाया -धुलाया । फूलों से बात करो तो फूल बातें करने लगते हैं . गाय से बातें करो तो गाय बातें करने लगती है . बिल्लियों से बातें करो तो बिल्लियाँ बातें करने लगती है प्रेम की भाषा का जवाब भी प्रेम से ही मिलता है । दादी जी का श्राद्ध था ।पिताजी ने श्राद्ध किया । उमा खाना खाकर घास लेने चली गई कुछ देर श्री नंदकिशोर मासीवाल और श्री प्रताप राम जी के साथ बैठ कर क्षेत्रीय विकास के सम्बन्ध पर चर्चा की । एक बार सोच रहा था कि बाज़ार घूम आऊं फिर सोचा कि खाली बाज़ार जाकर भी क्या करूँगा बच्चे सो गए तो मैं कम्प्यूटर पर बैठ गया । और शाम तक काम करता रहा ।

शनिवार, 12 सितंबर 2009

यह सौंदर्य और स्वप्न

आज सुबह से ही मौसम साफ़ था । चटख धूप । दिन में गावं गया ।खेत भर आए हैं । और जल्द ही फसल कटनी आरम्भ हो जायगी । मन्दिर का निर्माण कार्य देखा । लौटते हुए घाटी के सौंदर्य को निहारता हुआ आया । यह सौंदर्य स्वप्नों के एक ऐसे संसार में ले जाता है जहाँ जाकर इस दुनिया और वर्तमान का कोई होश नहीं रहता । अपने अस्तित्व का भान नहीं रहता है.स्वप्न इस हरियाली में खेलते हुए गुजरे अतीत के , स्वप्न प्रेम के , स्वप्न वर्तमान के ,इस प्रकृति में एकाकार होकर खोने के । इन पहाडों में ये आँखें दूर तक का सफ़र कर लेती हैं . विचारों को एक विराट खुला आकाश मिल जाता है . इसी अस्तित्वहीनता के बीच शब्द आकार लेने लगते हैं और जब ध्यान टूटता है चेतना लौटती है तो बनती है एक कविता . लौटकर खाना खाया । फिर आकर अपने कम्प्यूटर पर बैठ गया । पी४ पोएट्री पर एक कविता पोस्ट की । बाज़ार नहीं गया ।शाम के खाने के बाद कुछ देर पिताजी के साथ बैठ कर मन्दिर निर्माण के सम्बन्ध में बातें की । और फिर आकर कम्प्यूटर पर बैठ गया । डायरी पोस्ट भी हो गई है । अब सोने के लिए जाना ही ठीक होगा

शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

छ: तारीख से लगातार बर्षा से चारों ओ़र गहरी हरियाली छा गई है । रामगंगा अपने उफान पर है ।ओह! इतना डरावना उफान । इतनी विशाल नदी को देखकर लगता ही नहीं इस नदी के अस्तित्व को कोई खतरा है लेकिन मई -जून में तो बारिश न होने के कारण इसके भविष्य को लेकर चिंता होने लगी थी ।इसका पानी बिल्कुल सूख चुका था । लोग बे हिसाब मछलियाँ नदी से उठा -उठा कर ले गए ऐसा पहले कभी नहीं देखा । इस बारिश से रास्तों के दोनों ओर कमर कमर तक लम्बी घास उग आई है खेत /जंगल सब हरे भरे हो गए हैं लगभग सभी गधेरों में पानी बहने लगा है काश! धरा का यह हरित कालीन सदाबहार होता । इन गाड़ गधेरों का पानी बारहों मॉस इसी तरह भरा पूरा बहता रहता तो पहाड़ से पलायन आधा रूक जाता। लोग इस पानी और जमीन से अपने लिए सोना उगाते ।
अभी इस अंधेरे में बहार बर्षा की पायल बज रही है -छम्म -छम्म! अँधेरा इतना सुहावना भी होता है ? मन करता है कि इस सुंदर अंधेरे में घुमने निकलूं और उड़ान भरूं मन के आकाश में ।

सोमवार, 7 सितंबर 2009

इसी बारिश में

दिन मैं तेज बारिश में पहाड़ों को नहाते देखा । पेड़ों,लताओं , फूलों, पत्तियों पर गिरती बूंदों से बजाने वाले संगीत की ताल पर उन्हें झूमते देखा , देखा कि हवा और बारिश मैं पेड़ नाचने /गाने लगते हैं । बारिश उनके लिए एक उत्सव है । लेकिन अतिब्रष्टि या तूफ़ान नहीं । इसी बारिश में उमा गाय के लिए घास काटने के लिए चली गई, लौटी तो भीग कर निज्झुत्त हो चुकी थी । एक गिलास गरम चाय बनाकर मेडम को दी । और मैंने भी पी । मुझे चाय पीने का मन हो ही रहा था ।
दिन में कुछ देर कम्प्यूटर पर कार्य किया मेल देखी । बारिश के कारण बाज़ार नहीं गया । सन्डे पोस्ट में छपी अपनी कवितायें पढ़ी । अच्छी लगी । कुछ देर बच्चों के साथ बैठ कर उनका स्कूल का काम देखा । बच्चों के बीच बैठना ,उनकी बातें सुनना , उनके साथ बात-चीत करना भी बहुत जरुरी है बाहर बारिश अभी भी जारी है

रविवार, 6 सितंबर 2009

एक धुएँ का शहर

आज सुबह ही दिल्ली से लौटा हूँ । नानी जी के पीपल पानी पर गया था । आधी दिल्ली तो रहने के लिए सबसे खतरनाक स्थान है ।ऐसी जगहों पर जो लोग अस्थाई तौर पर या कम वेतन पर काम कर रहे हैं उन्हें वापस अपने गावं या गावं के नजदीकी शहर मैं जाकर काम तलाश करना कर अपनी रोजी रोटी चलानी चाहिए । या स्वरोजगार ,खेती आदि करनी चाहिए क्योंकि वहाँ सबकुछ प्रदुषण मुक्त तो होगा । और कम खर्च में काम चल जायगा लेकिन दिल्ली तो लोगों का समंदर बनता जा रहा है ।भीड़ -अथाह भीड़ बेशुमार दौलत कमा कर भी लोगों के चेहरों पर सुकून नहीं दिखाई देता -बेचैनी का/दौड़ा-भागी का एक अंतहीन सिलसिला । इसी अशांति के कारण लोगों की सहनशीलता ख़त्म होती जा रही है । वहाँ गलियों में हवा के लिए जगह नहीं है । धूप के लिए जगह नहीं है । और रहना एक विवशता है । पेड़ भी उगना नहीं चाहते हैं । उनके लिए उगना भी एक विवशता है ।चारों ओर धुआं ही धुआं और शोर ही शोर ।
दिल्ली जाकर तो लगभग सभी मित्रों के यहाँ जाना होता है । रात बस में नींद नहीं आई रात भर बस फुटबाल की तरह उछालती हुई लाई। नाश्ता करके सो गया । उमा ने खाने के लिए जगाया । तरो-ताजा होकर खाना खाया फिर कंप्यूटर पर बैठा । मेल देखी बाद में बाज़ार को निकल गया मित्रों से मिला जगदिश पाण्डेय , राजेंदर सिंह बिष्ट ,चंदू भाई ,महेश वर्मा ,मुरली मनोहर ,नरेश कुमार , विपिन शर्मा आदि कई मित्र गण मिले घर आते आते काफी अँधेरा हो चुका था ।

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...