शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

दिन भर तेज धूप

बाज़ार बंद होने के कारण दिनभर घर मैं ही रहा । संतोष मासीवाल जी से प्रिंटर मंगाया था वे आज दिन में लगा गए । दिन भर प्रिंटर को चलाना सीखा । सुबह एक बार लग रहा था कि वारिश होगी । लेकिन दिन भर तेज धूप रही कुछ लोग मिलने के लिए आए थे ।कुछ देर गप्पें मार कर चले गए । दिन किस तरह निकल गया कुछ पता ही नहीं चला । शाम होते -होते प्रिंटर पर काम करना सीख लिया । खाना खाकर कुछ देर पिताजी के साथ बैठकर बातचीत की तत्पश्चात आकर कंप्युटर पर बैठा ।

गुरुवार, 27 अगस्त 2009

शब्दों की डोर

पिछले तीन चार दिनों से कुछ लिख नहीं पाया । लिखने के लिए तो रोज बैठता था । लेकिन एक बार हाथ से छूटी शब्दों की डोर हाथ नहीं आ रही थी । कल कविताओं का एक नया ब्लॉग बनाया । उस पर दो कवितायें लिखी । दिन मैं एक चक्कर गावं गया हरियाली को देख कर तबियत खुश हो गई । लौटने का मन ही नहीं कर रहा था । दूर तक खुबसूरत जंगलों की चादर ओढे पहाड़ और बर्फ की चादर ओढे हिमालय के पहाडों की श्रंखलायें बाँध देती हैं कुछ लोगों से मिलकर लौट आया ।

सोमवार, 24 अगस्त 2009

आज इतना ही

सुबह मामा जी का फ़ोन आया कि नानी जी का देहांत हो गया मन किसी काम पर नहीं लगा । बहुत दुःख हुआ । दिन भर व्यस्त रहा । सांसद श्री प्रदीप टम्टा जी का भ्रमण कार्यक्रम था। घर आकर मालूम बिल्ली के बच्चे को गौल ले गया । बहुत दुःख हुआ ।एक बार पहले भी इसे गौल का मुँह से बचा कर लाया था । फिर पतंग बाघ के मुख से बचाया . शाम को कुन्नु का जन्म दिन था । साधारण तरीके से मनाया ।
आज इतना ही ।

रविवार, 23 अगस्त 2009

झूम रही है रात

दिन का अधिकांश हिस्सा घर पर ही गुजरा । दोपहर अपने अकेलेपनऔर खामोशी के कारण बहुत उदास सी लगाती है . लगता है कि इन पहाड़ी बीहड़ों में कुछ ढूंढ रही है इतवार होने की वजह से बच्चे भी घर पर ही थे । गप्पों का भी एक अंतहीन सिलसिला है । इसलिए फालतू गप्पबाजी से बचने की कोशिश करता हूँ । दिन मैं एक चक्कर भूमियाँ मन्दिर गया । गणेशोत्सव में भाग लिया । अपनी कविताओं के लिए एक ब्लॉग बनाने की सोच रहा था । लेकिन नहीं बन पाया । नींद के मारे पलकें झुकी जा रही हैं । बाहर कीड़ों की सीटी बजाने की आवाज आ रही है । बहुत मधुर संगीत है । अंधेरे में इन कीटों के संगीत पर झूम रही है रात । रात की यह चहल पहल और संगीत मय वातावरण बहुत आकर्षित करता है । अब बैठा नहीं जायगा । रात कितनी ही खुबसूरत हो नींद सुला ही देती है ।

शनिवार, 22 अगस्त 2009

गावं बुलाते हैं .

फिर एक बार धूप अपना रंग दिखाने लगी है । किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखाई देने लगी हैं । दिन मैं तल्ली महरौली गया था । प्रधान जी नहीं मिले तो लौट आया । गावं एक भैंस भी जब रंभाती है तो बड़े प्रेम से । पेड़ बहुत प्रेम से मिलते हैं । रास्ते बहुत ख़याल रखते हैं । हर चीज मैं अपनापन दिखाई देता है । हर कहीं एक सरलता दिखाई देती है नक्काशीदार चौखटों वाले घर बहुत आकर्षित करते हैं बाखलियाँ बहुत लुभाती हैं . आतंरिक तौर पर लोगों मैं आपसी विवाद भी होंगे .मनमुटाव भी होगा . फिर भी गावं शान्ति व् सद्भावना के लिए जाने जाते हैं . खाने के लिए ससुराल चला गया था । कुछ देर श्वसुर जी से बातें की । मासी आते-आते शाम हो चुकी थी । कुछ देर पिताजी के साथ बैठ कर बातें की । उमा ने घास से आने के बाद बताया कि घास काटते वक़्त दराती से उसकी उंगली कट गई है । देखा तो थोडा घाव हो गया था लेकिन मामूली- सा । खाना खाकर अब अपने डेशबोर्ड पर बैठा हूँ सोचने का एक अंत हीन सिलसिला है विषय कहीं से शुरू होता है और कहीं पर ख़त्म ।

शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

धूप के लौटने की तरह

कल अल्मोड़ा गया था । देर होने के कारण रात वहीं रूक गया था । जगदीश पाण्डेय जी के कमरे में रहा । देर रात तक क्षेत्रीय राजनीति पर चर्चा की । दिन में अहा जिंदगी पत्रिका खरीदी ,पत्रिका अच्छी लगती है , समकालीन पत्रिकाओं में सबसे अलग है । स्तरीय भी ।
खाना खाकर सोने की सोच रहा था लेकिन मुन्नू,कुन्नू और दिप्पी की धमा चौकड़ी ने सोने ही नहीं दिया तो उठ कर कंप्युटर पर बैठ गया तो यहाँ बिल्ली आकर गोद में बैठ गई और काम नहीं करने दिया । मैंने चुपचाप बाज़ार निकलने में ही भलाई समझी । कुछ दोस्तों से मिला फिर अपने अड्डे पर आगया यानी बंधू जी की दूकान -चर्चाओं और निष्पक्ष-बेवाक बहस का केन्द्र ।
धूप के लौटने की तरह में भी शाम होते-होते घर लौट आया । उमा रुकी हुई थी की मैं गाय दुहने में उसकी मदद के लिए आऊं। खुबसूरत सांझ कुछ देर बाहर खड़ी रही और फिर न मालूम कब चली गई ।

बुधवार, 19 अगस्त 2009

लग रहा है कि आज लिखने के लिए कुछ ख़ास नहीं है । हर रोज लिखने के लिए होगा भी क्या ? समाचार लोग पढ़ ही लेते हैं -और अपनी -अपनी अभिरुचि के अनुसार समाचारों के अर्थ भी निकाल लेते हैं । फिर होती है तू-तू-, मैं -मैं , मारूं -मरुँ ,खबरों का असर बहुत तेजी से होता है लेकिन सकारात्मक कम और नकारात्मक बहुत अधिक । अभी कुछ देर पहले ही लाइट आयी है ।लाइट नहीं थी तो एक बार सो चुका था बिजली आयी तो नींद खुली और यहाँ आकर बैठ गया । दिन खाली -खाली सा गुजरा -बस एकाध मित्रों से मुलाक़ात कुछ इधर -उधर की गप्पें -धूप ,वारिश और महंगाई पर और कुछ नहीं ।किसानों और ग्रामीणों की पहली चिंता तो राशन पानी ही होती है मेरे बाज़ार से देरी से आने पर उमा जी का पारा थोडा चढ़ा हुआ है मनाना पड़ेगा। कुछ पृष्ट समयांतर के पढ़े

मंगलवार, 18 अगस्त 2009

दिन मैं एक चक्कर चौखुटिया गया .चौखुटिया मासी के बीच सड़क की हालत बहुत ही ख़राब है सरकारी काम का आलम यह है की पिछले आठ सालों से बारह किलोमीटर की सड़क पर डामर नहीं हो पा रहा है लोग बहुत परेशान हैं । यदि किसी किमी पर काम हो रहा है तो इतना घटिया कि एक तरफ़ से बन रहा है तो आगे बढ़ने तक पीछे का बना हुआ टूट जा रहा है । मासी पहुँचने के बाद सुकून मिलता है कि ठीक- ठाक घर पहुँच गए ।
कुछ देर कंप्युटर पर काम किया । मेल देखी। शाम के समय बाज़ार गया, बंधू जी , चंदू भाई से होता हुआ श्री राजेंद्र सिंह जी के घर तक गया । वहाँ कुछ अन्य मित्र गण भी बैठे थे । इस वारिश से बहुत टूट-फूट हो गई है । किसीका मकान टूटा तो किसी के खेत की दीवाल टूटी
कहीं पहाड़ खिसक कर रोड पर आए तो किसी के मकान के ऊपर । कई जगह से मकान पर पहाडी से खिसक कर आए मलवे के नीचे लोगों के दब कर मरने के समाचार अखबारों में छपी है ।
तीन दिन की लगातार वारिश के बाद आज धूप ,प्रकृति मैं एक नई ताजगी छा गई हैजो सृजन को नई ऊर्जा देती हैपरसों रात देर तक पाली रहा यहाँ से सूर्यास्त का दृश्य बहुत रमणीक लगता है और साँझ को तो रोक लेने को मन करता है यहाँ के सूर्यास्त के पलों मैं ख़ुद को भी भुलाया जा सकता है

रविवार, 16 अगस्त 2009

आज मेरे ब्लॉग का डेशबोर्ड खो गया था । बड़ी मुश्किल से मिला । सोच रहा था कि आज़ादी के बासठ साल बाद दुनिया में हमारी और हमारे पड़ोसी पाकिस्तान की सामाजिक स्थिति क्या है ? भारत पूरे विश्व मैं शान्ति और सद्भावना के उद्देश्यों साथ -एक महान लोकतान्त्रिक शक्ति के रूप मैं उभर रहा है वहीं पाकिस्तान एक असफल राष्ट्र और वैश्विक आतंकवाद के केन्द्र के रूप में सामने आया है । एक हिंसक राष्ट्र के तौर पर उभरा है । आज अमेरिकी ड्रोन विमानों के द्वारा पाकिस्तान पर लगातार हवाई हमले किए जा रहे हैं और पाक सरकार चुपचाप बमों की मार झेल रही है । इन बमों के द्वारा पाकिस्तान के आत्मसम्मान की भी धज्जियाँ उड़ रही हैं पाक सरकार की यह कैसी बेबसी है जबकि पाक उदार और सहयोगी पड़ोसी भारत के साथ युद्ध के लिए तैयार है फिर भी भारत शान्ति और सद्भावना का समर्थक है ।यही विचारधारा भारत को महान बनाती है। दिन यूँ ही गुजरा । बूंदा -बांदी दिनभर रही शाम के समय जगदीश पाण्डेय भाई आए थे कुछ देर उनके साथ बैठकर राजनैतिक चर्चा की साथ में मासीगावं के श्री प्रताप राम जी भी थे । मैं अन्दर डायरी लिख रहा हूँ और बाहर वर्षा का संगीत बज रहा है । अंधेरे मैं वर्षा के इस संगीत की धुन पर कौन नाच रहा होगा ?

शनिवार, 15 अगस्त 2009

आज का मौसम बहुत सुहावना था । कल रात से लगी वारिश आज दिन भर रही । इस वारिश से मौसम में एक खुशनुमा तबदीली आ गई है सुबह स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए मिन्टो दीदी जी के स्कूल में गया उसके बाद रामगंगा वेळी पब्लिक स्कूल मैं गया । दोपहर बाद एस,एस ,हीत बिष्ट मेमो,स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रम में चौखुटिया गया । छोटे -छोटे बच्चों की अभिनय कला बहुत आश्चर्यजनक थी । इस तरह का उत्कृष्ट प्रदर्शन निजी स्कूल के बच्चों व् शिक्षकों की मेहनत का परिणाम थी । हमारे यहाँ के सरकारी स्कूलों -प्राथमिक स्तर से इंटर स्तर तक कहीं भी इतनी उत्कृष्ट प्रस्तुति देखने में नहीं आ रही है । शिक्षा का स्तर तो सोचनीय स्तर तक नीचे गिरा हुआ है उसकी चिंता न तो अभिभावकों को है न शिक्षकों को । हालत यह है कि धनी तबके के लोग अपने बच्चों को मोटी फीस या डोनेशन दे कर निजी शिक्षण संस्थानों में भेज देते हैं । तथा मध्यम व गरीब तबके के लोगों के लिए सरकारी स्कूल एक मजबूरी होते हैं ।

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

दिन मैं थोड़ा वारिश हुई एक ओखली पानी जितनी . हरियाली थोड़ा बढ़ेगी। एक चक्कर परथोला गया प्रधान श्री गुसाई राम जी से संस्था से सम्बंधित काम था । लौट कर कुछ देर बंधू जी के साथ बैठा ,उसके बाद श्री राजेन्द्र सिंह जी के साथ बैठकर चाय पी । बाज़ार में जन्माष्टमी के मेले की भीड़ लगनी शुरू हो चुकी थी ऑफिस में बैठकर कुछ काम निपटाया । मेला भी लोगों के मेल मिलाप का एक अच्छा ज़रिया है । कहाँ -कहाँ के नए-पुराने मित्र अचानक मिल जाते हैं । फिर नमस्कार पुरस्कार के बाद शुरू होता है यादों को दोहराने -बांटने का सिलसिला । शाम को बाज़ार की तरफ़ निकला लौट कर उमा के साथ चाय पी ।

गुरुवार, 13 अगस्त 2009

कुछ देर पहले गैरखेत से लौटा हूँ । यहाँ आकर अद्भुत शान्ति की अनुभूति होती है । सुखद एकांत मिलता है जो कि जीवन में ऊर्जा के लिए आवश्यक है सुबह पहले श्री अमर दा से गाड़ी का काम कराया श्री रमेश चंद्र चतुर्वेदी जी को गैरखेत छोड़ना था । उनके मित्र जी की कथा थी इसलिए गैरखेत गया । खाना वहीं खाया । चारों ओर की पहाडियों को देखता रहा -वाह ! आसमान में बादल होने की वजह से हिमालय की पहाडियां दिखाई नहीं दे रही थी । लेकिन रामगंगा नदी घाटीबहुत सुंदर लग रही थी । इसे पर्यटक स्थल होना ही चाहिए ।

बुधवार, 12 अगस्त 2009

दिन पूरी तरह व्यस्त रहा । संस्था के कार्य से ग्राम कल्छिपा व सीमा गया । कल की वारिश से लोगों मैं थोडा उम्मीद जगी है कि अभी भी हरियाली होगी और घास की समस्या हल होगी । दोपहर की धूप मैं जंगलों के बीच से गुजरते हुए बहुत अच्छा लगा लेकिन लगा की इन चीड़ के दरख्तों के बीच बांज और देवदार भी लगा होना चाहिए शाम के वक़्त गाड़ी लेकर उत्तमसानी तक गया रास्ते मैं नौबाडा से आगे जाने पर टायर फट गया टायर बदल कर लौट रहा था तो पट्टा टूट गया । बहुत परेशान किया आज गाड़ी ने । घर आते-आते बुरी तरह थक चुका था । उमा ने चाय बना कर दी । खाना खा कर कुछ देर कंप्युटर पर काम किया । सोते- सोते दस बज चुके थे।

मंगलवार, 11 अगस्त 2009

एक तरफ नींद लग रही है दूसरी तरफ़ ब्लॉग लिखने से स्वयं को नहीं रोक पा रहा हूँ । आज कई दिनों बाद पानी बरसा है तो एक उम्मीद जगी कि अभी हरा होगा .सूखे को देखते हुए तो लगता है कि कम से कम सतझड़ तो होने ही चाहिए तब कहीं जाकर श्रोत फूटेंगे . दिन मैं गाड़ी का कुछ काम कराया । एक चक्कर बंधू जी की दूकान तक गया । मासी के विकास के सम्बन्ध में कुछ चर्चा की । चाय पीकर लौट आया. कंप्युटर पर कुछ टाइपिंग का काम किया । और दिन इसी तरह निकल गया । उमा जी दूध लेकर आ गई दूध पीकर सो जाउंगा

सोमवार, 10 अगस्त 2009

पिछले दो -तीन दिन से नेट काम नहीं कर रहा था । इसलिए अपना ब्लॉग पोस्ट नहीं कर पाया । कल अल्मोडा गया था . दूर से शहर बहुत खुबसूरत दिखता है लेकिन नजदीक जाने पर दिखाई देता है कि पूरा पहाड़ काट- काट कर मकान बनाए जा रहे हैं भविष्य में भूमि धसान का भयंकर खतरा स्पष्ट दिखाई दे रहा है सरकार के पास पहाडों में शहर बसाने का कोई वैज्ञानिक तरीका नहीं दिखाई दे रहा है । उदाहरण के लिए पहाडों पर जब सड़क बनाई जाती है तो पहाड़ काट कर सड़क बनाए जाने के बाद सड़क के ऊपर का हिस्सा धंस कर नीचे आ जाता है इसी तर्ज पर पहाड़ का हर शहर खतरे की ज़द में है । भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए सरकार को पहाडों पर मकान बनाने के लिए कुछ वैज्ञानिक मानक तय करने चाहिए । इसी प्रकार शहर के गंदे पानी के निकास की बात है शहर का गंदा पानी पहाडी ढलानों /गधेरों से होते हुए सीधे नदियों में मिलता है इस प्रकार नदियाँ भी प्रदूषित हो रहीं हैं जबकि नदियाँ पहाडों की जीवन रेखा हैं । क्योंकि श्रोत सूखते जा रहे हैं और पहाडों के वाशिंदों की नदियों पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। ऐसे हालत में नदियों को प्रदूषणमुक्त करने के प्रयास तत्काल किए जाने चाहिए । वरना प्रदूषित पानी पीने से होने वाले नुकसानों व् प्रदूषित नदियों के मछलियाँ खाने से होने वाले रोगों का सामना करना पडेगा ।

बुधवार, 5 अगस्त 2009

शाम का वक़्त कंप्युटर पर बीता ,मूड ठीक नहीं था तो गाड़ी लेकर जाना उचित नहीं समझा । सुबह राखी का त्यौहार बच्चों ने खुशी के साथ मनाया .कुछ देर छत में जाकर चाँदनी रात का लुत्फ़ लिया काश इस वक़्त लाइट चली जाती तो चाँदनी में मौन /गंभीर अँधेरा पहाडिओं में पसरा दिख जाता दिन की यादों को अपने सीने में छुपाये हुए । यह बात अलग थी कि लोगों को थोड़ा परेशानी होती लेकिन इस गर्मी में बाहर निकल कर पहाडिओं के बीच अंधेरे का लुत्फ़ भी लेते ।
दिन आया और मेरी जिंदगी से होता हुआ निकल गया । अब रात की बारी है आंखों से होते हुए आयगी स्वप्नों से होते हुए निकल जायगी
अभी अभी गावं से लौटा हूँ । सूखा और लोगों की चिंताएँ देखी,इतने भयंकर रूप से गर्मी और अवर्षा पहले कभी नहीं देखी । यह तो चतुर मॉस का हाल है .बाद के महीनों मैं क्या होगा ?एक और आश्चर्य कि जंगलों मैं पेड़ कम होते जा रहे हैं । यानी कि जंगलों की सघनता कम होती जा रही है यह मैंने कई जंगलों मैं देखा है । इसीलिए जंगलों की नमी भी ख़त्म होती जा रही है श्रोत सूखते जा रहे हैं । जिसका असर गधेरों और अंततः नदियों पर पड़ रहा है इस सब को देखते हुए प्रतीत होता है कि हमारी नदियों का अस्तित्व भी खतरे मैं है ।

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...