गुरुवार, 1 जुलाई 2010

कैसी थी सुबह

देखा ही नहीं कि सुबह कैसी थी
यह भी याद नहीं कि सबह के साथ धूप आई या नहीं । खेतों में किसान भरे पड़े थे । सब आपाधापी में थे । देख रहा था कि औरते खेतों से कितना प्यार करती हैं ।
सुबह एक चक्कर गावं गया माई थान दिया जलाया
दिन कंप्यूटर पर बीता । सीधा -साधा नामालूम- सा
गावं में आम आदमी महंगाई के बोझ के नीचे खो -सा गया है । महंगाई के साथ ही उसकी मजदूरी को भी बढ़ाया जाना चाहिए । करोड़ पति मंत्री /नेताओं /उद्योगपतियों और नौकर शाहों के लिए चीजों का महंगा होना कोई मायने नहीं रखता है.लेकिन गरीब के लिए तो महंगाई होना कुँए में धकेले जाने के समान है

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