रविवार, 1 जनवरी 2017

nav varsh

नमस्कार मित्रो ,
नये साल के  शुभ आगमन की पावन वेला पर आपको मंगलकामनाएं। 
हमने आज खुशियां मनाने के जो मार्ग चुने हैं  वे प्राकृतिक हितों के बिलकुल विपरीत हैं. पृथ्वी के लिए हमारी खुशियां बहुत भारी  पड़  रही हैं. आकाश हमारे आयोजनों  से  खतरे में है. मानवीय हित तथा जीव जंतुओं के हित  खतरे में हैं. 

समझ नहीं आता कि मानवीय हितों के पक्ष में आवाज उठाने  के लिए कौन आएगा।  
नेता! संभव नहीं है. अपने स्वार्थों की परिधि में बंधे हुए लोग ! संभव नहीं. 

मानवीय सभ्यता की पुनर्स्थापना के लिए  बात करना भी आज के माहौल में खतरे से खाली  नहीं.  
शराब और हिंसा जिस समाज में राजा और प्रजा के मनोरंजन और हित  साधने के के मुख्य साधन बन गये हों उस समाज को पतन के गर्त में जाने से कौन रोक सकता है. क्योंकि शराब ही सबसे पहले व्यक्ति के विवेक को ख़त्म करती  है. 

हम दुनियां के बेहतरीन लोकतांत्रिक व्यवस्था में रहते हैं।  लेकिन  दुर्भाग्य है कि हम आत्मनियंत्रित  नहीं हैं. हमें सड़क पर चलने के लिये भी सख्त कानूनों की आवश्यकता होती है. और कानूनों का अत्यधिक होना लोकतंत्र के हित  में नहीं है. यदि हम आत्म नियंत्रित नहीं हैं /विवेक का प्रयोग नहीं करते हैं. तो इसका अर्थ  है कि  अभी हम लोकतंत्र के लिए तैयार नहीं हैं. 

हम उत्सव मनाना  नहीं जानते। खुशियों के अर्थ नहीं जानते 
कानून को हमारी सीमायें तय करनी पड़ती हैं. हमारे मार्ग तय करने पड़ते हैं. 
आखिर कानून हमारे लिए क्या-क्या तय करेगा ? 
आइये एक जिम्मेदार नागरिक बनें. नए साल में इस पृथ्वी को जीने योग्य बनाने की पहल करें. 

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