ऊफ ! पांच महीने का विराम .
इन पांच महीनों में समय काफी आगे निकल गया . और मैं वहीं का वहीँ बैठा रहा जैसे कुछ लिखने के लिए किसी का इंतज़ार कर रहा हूँ . और वह अभी भी नहीं आया तो मुझे लगा क़ि अब आगे बढना चाहिए . अक्सर जब हम चल रहे होते हैं तो चलते चले जाने की धुमें मीलों का सफ़र तय कर लेते हैं . अनावश्यक इंतज़ार हमें रोक लेता है थक कर विराम करें वह अलग बात है
वहां हम उर्जा लेते हैं . जबकि अनावश्यक इंतजार हमें मानसिक तौर पर थका देता है। फिर हम सोचते हैं कि फिजूल में रुके ,चलते गए होते तो अभी तक काफी आगे निकल गए होते .
एक पल के लिए तो मुझे लगा कि मैं लिखना ही भूल गया हूँ . लेकिन फिर लिखना शुरू किया तो लिखता चला गया .
समझ नहीं आया कि मैं इंतजार किसका कर रहा था . मैंने कई छोटी -छोटी चीजें छोड़ दी , और वे काफी आगे निकल गई . अब उन्हें लिखने का कोई औचत्य नहीं बनता . जो पीछे छूट गई उन्हें भी पकड़ने की कोशिश बेकार है। बस ! यहीं से आगे को लिखते चलो .
इन पांच महीनों में समय काफी आगे निकल गया . और मैं वहीं का वहीँ बैठा रहा जैसे कुछ लिखने के लिए किसी का इंतज़ार कर रहा हूँ . और वह अभी भी नहीं आया तो मुझे लगा क़ि अब आगे बढना चाहिए . अक्सर जब हम चल रहे होते हैं तो चलते चले जाने की धुमें मीलों का सफ़र तय कर लेते हैं . अनावश्यक इंतज़ार हमें रोक लेता है थक कर विराम करें वह अलग बात है
वहां हम उर्जा लेते हैं . जबकि अनावश्यक इंतजार हमें मानसिक तौर पर थका देता है। फिर हम सोचते हैं कि फिजूल में रुके ,चलते गए होते तो अभी तक काफी आगे निकल गए होते .
एक पल के लिए तो मुझे लगा कि मैं लिखना ही भूल गया हूँ . लेकिन फिर लिखना शुरू किया तो लिखता चला गया .
समझ नहीं आया कि मैं इंतजार किसका कर रहा था . मैंने कई छोटी -छोटी चीजें छोड़ दी , और वे काफी आगे निकल गई . अब उन्हें लिखने का कोई औचत्य नहीं बनता . जो पीछे छूट गई उन्हें भी पकड़ने की कोशिश बेकार है। बस ! यहीं से आगे को लिखते चलो .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें