धर्म और मीडिया एक भयानक गठजोड़ बनकर समाज को खेमों में बाँट रहे हैं . जिस चैनल पर भी देखो हर वक़्त कोई न कोई उपदेश देता दिखाई देता है। रूपया कमाने का इससे बेहतरीन धंधा और कोई नहीं हो सकता है . या तो फिर घोटाले हैं या फिर यही धर्मं का धंधा .
प्रश्न है कि तमाम धर्मों के उपदेशों व्यापाक प्रसारण के बाद क्या समाज की स्थिति में कोई सुधार आया ? इन तथाकथित संतो उपदेशकों ने समाज में फ़ैल रही हिंसा के लिए कोई बात कही या ये अपनी गद्दी माइक और लखपति करोड़ पति भक्तों की भीड़ छोड़ कर कभी समाज के सबसे नीचे वर्ग के दबे कुचले लोगों की झोपड़ियों तक भी गए ? उनके जीवन की दुरुहताओं /उनकी पीडाओं /उनके शोषण /उनकी भूख / उनकी शिक्षा /उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए भी कभी काम किया ?
या सिर्फ शोषक वर्ग से धन ऐंठने के लिए /उन्हीं की तरह नीचे के वर्ग को बनाये रखने के लिए षड्यंत्र में भागीदारी करते हैं / धनवान भक्तों का एक नया वर्ग खड़ा करते हैं .
यह धर्म के धंधे का सबसे निकृष्ट स्वरुप है कि
उपदेश दो धन कमाओ /चैनल वाले भी कमायें / बाकी दुनियां को कौन पूछे ? समाज की विषमताओं को कौन पूछे / गरीब तो इनके कार्यक्रमों में घुस भी नहीं सकता है .
प्रश्न है कि तमाम धर्मों के उपदेशों व्यापाक प्रसारण के बाद क्या समाज की स्थिति में कोई सुधार आया ? इन तथाकथित संतो उपदेशकों ने समाज में फ़ैल रही हिंसा के लिए कोई बात कही या ये अपनी गद्दी माइक और लखपति करोड़ पति भक्तों की भीड़ छोड़ कर कभी समाज के सबसे नीचे वर्ग के दबे कुचले लोगों की झोपड़ियों तक भी गए ? उनके जीवन की दुरुहताओं /उनकी पीडाओं /उनके शोषण /उनकी भूख / उनकी शिक्षा /उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए भी कभी काम किया ?
या सिर्फ शोषक वर्ग से धन ऐंठने के लिए /उन्हीं की तरह नीचे के वर्ग को बनाये रखने के लिए षड्यंत्र में भागीदारी करते हैं / धनवान भक्तों का एक नया वर्ग खड़ा करते हैं .
यह धर्म के धंधे का सबसे निकृष्ट स्वरुप है कि
उपदेश दो धन कमाओ /चैनल वाले भी कमायें / बाकी दुनियां को कौन पूछे ? समाज की विषमताओं को कौन पूछे / गरीब तो इनके कार्यक्रमों में घुस भी नहीं सकता है .
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