रविवार, 8 अप्रैल 2012

दिल्ली में हूँ- भीड़- भीड़- भीड़ जहाँ देखो वहां भीड़ !
गावं में तो भीड़ देखने को बाज जगह तो पांच -पांच किलोमीटर चल कर लोग दिखाई देते हैं . और यहाँ खाली जगह देखने को नहीं मिल रही है .
पूरा पहाड़ यहाँ आ चुका है वहां पर बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है .लेकिन जीवन स्तर अच्छा है .वहां एक बड़ी प्रवृति है कि क्षेत्रीय स्तर पर  रोजगार कि संभावनाएं पैदा करने कि कोशिश नहीं की जाती है . युवा इंटर पास करके सीधे दिल्ली दौड़ पड़ते हैं . यहाँ की तड़क भड़क आकर्षित करती है .
यह भी सच है कि लोगों ने यहाँ आकर बहुत अंधाधुंध पैसे कमाए हैं .
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि पहाड़ में रोजगार कि संभावनाएं ख़त्म हो गयी हों . अपार संभावनाएं हैं. कृषि में बागवानी में ,लघु उद्योगों में , व्यापार में .आवश्यकता है तो सकारात्मक  नजरिये और मेहनत की.


दिल्ली बहुत अच्छा शहर है .किन्तु धनवानों के लिए . नेताओं के लिए .
आम आदमी के लिए नहीं .  आम आदमी तो नेताओं/पूंजीपतियों  के हिस्से का नरक भोग रहा है.

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