रविवार, 22 अप्रैल 2012
Abhinav Gatha: बड़ी देर से बैठा सोच रहा था कि आज शुरू कहाँ से कर...
Abhinav Gatha: बड़ी देर से बैठा सोच रहा था कि आज शुरू कहाँ से कर...: बड़ी देर से बैठा सोच रहा था कि आज शुरू कहाँ से करूँ ?सूर्योदय से या फिर उससे पहले . उससे पहले का स्वप्न याद नहीं . हाँ इतना याद है कि ...
बड़ी देर से बैठा सोच रहा था कि आज शुरू कहाँ से करूँ ?सूर्योदय से या फिर उससे पहले .
उससे पहले का स्वप्न याद नहीं . हाँ इतना याद है कि उमा ने पहली चाय के साथ सपने से जगाया और बोली स्वप्न से जागो और हकीकत की जमीन देखो .
एक पल के लिए मुझे लगा की यह सच कह रही है . क्योंकि शारीरिक उडान तो सिर्फ स्वप्न मैं भरी जा सकती है . जमीन पर तो सिर्फ चला जा सकता है. लेकिन यह भी सच है कि स्वप्न हकीकत की जमीन देखने के लिए भी संकेत देते हैं
मैं चाय पीकर फिर रोजमर के कामों मैं उलझ गया .
मैंने बहुधा देखा है कि देखे गए सपनों का कुछ न कुछ संकेत होता है . यानि एक प्रकार से पूर्वाभास .अवचेतन आने वाली चीजों को पहले देख लेता है
लेकिन इस सब के लिए आत्मबल भी मजबूत चाहिए . हम देखे हुए संकेतों को समझ सकें ,उनका विश्लेषण कर आने वाली घटनाओं को देख समझ सकें .
आत्मबल की दुर्बलता के चलते ही अक्सर हम स्वप्न को भूल जाते हैं . या उन्हें नजरअंदाज कर देते हैं . या संकेत नहीं समझ पाते हैं.
स्वप्न बहुत महत्वपूर्ण हैं . उन्हें देखो, समझो और जानो .
रविवार, 8 अप्रैल 2012
दिल्ली में हूँ- भीड़- भीड़- भीड़ जहाँ देखो वहां भीड़ !
गावं में तो भीड़ देखने को बाज जगह तो पांच -पांच किलोमीटर चल कर लोग दिखाई देते हैं . और यहाँ खाली जगह देखने को नहीं मिल रही है .
पूरा पहाड़ यहाँ आ चुका है वहां पर बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है .लेकिन जीवन स्तर अच्छा है .वहां एक बड़ी प्रवृति है कि क्षेत्रीय स्तर पर रोजगार कि संभावनाएं पैदा करने कि कोशिश नहीं की जाती है . युवा इंटर पास करके सीधे दिल्ली दौड़ पड़ते हैं . यहाँ की तड़क भड़क आकर्षित करती है .
यह भी सच है कि लोगों ने यहाँ आकर बहुत अंधाधुंध पैसे कमाए हैं .
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि पहाड़ में रोजगार कि संभावनाएं ख़त्म हो गयी हों . अपार संभावनाएं हैं. कृषि में बागवानी में ,लघु उद्योगों में , व्यापार में .आवश्यकता है तो सकारात्मक नजरिये और मेहनत की.
दिल्ली बहुत अच्छा शहर है .किन्तु धनवानों के लिए . नेताओं के लिए .
आम आदमी के लिए नहीं . आम आदमी तो नेताओं/पूंजीपतियों के हिस्से का नरक भोग रहा है.
गावं में तो भीड़ देखने को बाज जगह तो पांच -पांच किलोमीटर चल कर लोग दिखाई देते हैं . और यहाँ खाली जगह देखने को नहीं मिल रही है .
पूरा पहाड़ यहाँ आ चुका है वहां पर बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है .लेकिन जीवन स्तर अच्छा है .वहां एक बड़ी प्रवृति है कि क्षेत्रीय स्तर पर रोजगार कि संभावनाएं पैदा करने कि कोशिश नहीं की जाती है . युवा इंटर पास करके सीधे दिल्ली दौड़ पड़ते हैं . यहाँ की तड़क भड़क आकर्षित करती है .
यह भी सच है कि लोगों ने यहाँ आकर बहुत अंधाधुंध पैसे कमाए हैं .
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि पहाड़ में रोजगार कि संभावनाएं ख़त्म हो गयी हों . अपार संभावनाएं हैं. कृषि में बागवानी में ,लघु उद्योगों में , व्यापार में .आवश्यकता है तो सकारात्मक नजरिये और मेहनत की.
दिल्ली बहुत अच्छा शहर है .किन्तु धनवानों के लिए . नेताओं के लिए .
आम आदमी के लिए नहीं . आम आदमी तो नेताओं/पूंजीपतियों के हिस्से का नरक भोग रहा है.
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