कई बार पंक्तियाँ लिखी और उतनी ही बार मिटा दी । लिख कर मिटाना लेखक के हाथ में तभी तक है जब तक लिखा हुआ उसके अपने पास तक ही सीमित है । जहां से लिखा हुआ लोगों तक पहुँच जाता है वहां फिर कोई भी लेखक अपना लिखा हुआ मिटा नहीं सकता है । कुछ इस तरह कि पत्र लिखकर डाकखाने में डालने के बाद उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता । हाँ !दूसरा पत्र लिखकर पहले के लिखे में संसोधन या नया जोड़ने की बात की जा सकती है ।
आज जमाना डाकखाने का तो लगभग नहीं के बराबर है । पत्र आने अब बंद हो गए हैं । फ़ोन पर हुई बात में वह बात नहीं । एक बार मिले पत्रे को हम कई बार पढ़ते हैं । फिर संभाल कर रखते हैं । कुछ दिनों के बाद फिर उसी को पढ़ना चाहते हैं । बरसों बाद भी उसी पत्र को पढ़ कर वही आनंद आता है । और दशकों बाद वह एक बहुमूल्य दस्तावेज बन जाता है । और हम चाहते हैं कि हमारी मृत्यु के बाद भी पत्र सुरक्षित रहे । लोग पढ़ें । हमारे बच्चे ,बच्चों के भी बच्चे और पूरी दुनियां जाने हमारे राज ।
एक बार लिखकर बाहर आने के बाद वह अमिट हो जाता है । लोग याद रखते हैं । पत्रों को ।
पत्रों के बहाने हमको ।
सोमवार, 5 सितंबर 2011
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