तमाम तरह के विवादों/विरोधों के बाद अंततः संसद की गरिमा कायम रही और जन भावना का सम्मान हुआ । इसे किसी की जीत की तरह नहीं देखना चाहिए । यह एक समाधान था ।
स्वतंत्र भारत में सत्य और अहिंसा का पहला राष्ट्रव्यापी प्रयोग जो पूरे विश्व को एक सन्देश भी दे गया ।
यह तो सर्वमान्य तथ्य है कि दुराचार एक न एक दिन ख़त्म होता ही है । चाहे वह कितना ही सशक्त क्यों न हो ।
लेकिन एक महत्त्वपूर्ण बात सामने आई । सत्य में शक्ति है । कि सिर्फ एक ईमानदार व्यक्ति के पीछे पूरा भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया खड़ी हो गई ।और दिग्गज नेताओं का समूह भी उसके आगे बौना हो गया । यह ईमान के प्रति लोगों की श्रद्धा है । और भ्रष्टाचार के विरुद्ध नफ़रत भी ।
सोमवार, 29 अगस्त 2011
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