शनिवार, 7 अक्टूबर 2023

 कल अष्टमी के श्राद्ध के साथ ही पिताजी को हमसे बिछड़े हुए एक वर्ष हो गया है।  

इन बारह महीनों मैं पिता जी ममत्व की  छत्र छाया  में व्यतीत अपने बचपन से लेकर उनके हमारे बीच उनके अंतिम दिन तक की यात्रा तक की पुस्तक को पुनः खोल कर देखा।  हर घटना से पुनः गुजरा।  

आज भी घर के हर कोने में उन्हें ढूंढता हूँ।  कभी लगता है वे दुकान में ग्राहकों से बातें कर रहे हैं।  उनकी आवाज कानों में गूंजती है। लेकिन वे कहीं दिखाई नहीं देते हैं।  

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