कोरोना एक वर्ष का हो गया है।
अब समाज कोरोना महामारी के साथ चल रहा है या महामारी को पीछे छोड़ते हुए आगे निकलने की कोशिश में दिख रहा है लेकिन कोरोना के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता है। जीवन बाद में , धन पहले। लेकिन अभी भी हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि प्राथमिकता जीवन को दें या धन को। समाज जीने के नियम बनाता नहीं दिखा रहा। सरकार की व्यवस्थाएं हमें स्वीकार्य नहीं। नियम तोड़ेंगे ही।
धन की अंधी दौड़ में हमने जीवन की स्वाभाविक राहें छोड़ दी। हमें प्रकृति के अनुसार जीने के बजाय तय किया कि प्रकृति हमारे अनुसंधानों और आदेशों का पालन करे।