बहुधा हमारी आँखों से कई दृश्य निकलते रहते हैं। लेकिन हम वही देखते हैं जो हमारे स्वार्थों के लिए उचित होता है. यह सभी प्राणियों के लिए है. लेकिन चूँकि हम यानि मनुष्य सभी प्राणियों में विवेकवान प्राणी कहे जाते हैं इसलिए हमारा देखने का नजरिया भी विवेकपूर्ण होना चाहिए।
हम अपने स्वार्थों से बाहर देख सकते हैं.
हम युद्धों का विरोध कर सकते हैं. हम भूखों को देख सकते हैं. अत्याचार को देख सकते हैं. हिंसा को देख सकते हैं। क्योंकि हमारे पास आँखें हैं. सोचने की शक्ति है.
यदि इन सभी स्थितियों को देख कर हम अनदेखा कर निकल जाते हैं. तो इस दुनियां में विवेकवान या सामाजिक कहलाने के लिए सदियाँ गुजर जायेंगी।
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