बुधवार, 27 मार्च 2013

ahinsa aaj ki jarurat hai .

आज कई दिनों  के बाद अपने पन्ने पर बैठा हूँ
इस बीच मानवता को दहला देने वाली कई घटनाएँ घटी हैं .
लेकिन जो उत्तराखंड में  हुआ वह काफी चिंता जनक है .जनवरी -फरवरी में उत्तराखंड में लगभग तीस तेंदुओं को अपनी जान गवानी पड़ी . उनमें से कितने मार दिए गए ,कितने स्वतः मरे .यह तो बाद का सवाल है .
  फिल हाल तो यह चिंता का विषय है कि आज  मानव और वन्य जीव आमने सामने है. यह संघर्ष क्यों ?
जंगलों से संघर्ष की आवाज आ रही है . शेर मारे जा रहे हैं ,हाथी मारे जा रहें ,बाघ मारे जा रहें ,तेंदुएं मारे जा रहें , भालू मरे जा रहें हैं सूअर मारे जा रहे हैं  घुरड़ ,काकड़ ,हिरन,खरगोश ,वनमुर्गी ,अजगर ,कोबरा ,वाइपर और  सैकड़ो साल पुराने पेड़ मारे जा रहें हैं . जंगलों की सघनता कम हो रही है . पक्षियों का अस्तित्व खतरे मैं है.
संघर्षों का एक मुख्य कारण यह है कि जंगलों में पशुओं का स्वाभाविक भोजन ख़त्म हो रहा है. यह मनुष्यों के द्वारा अंधाधुंध शिकार का परिणाम है .
आज आवश्यकता जंगलों के साथ  मित्रता पूर्ण  व्यहार की है. हम उनके हकों का अनैतिक दोहन न करें . कानून की जरुरत तब महसूस होती है जब हम अपनी हदें लांघते हैं . जब हमारी क्रूरता अनियंत्रित हो दूसरों के लिए खतरा बन जाती है . तब लगता है कि एक सख्त कानून होना चाहिए . जिस पर अमल हो .

अहिंसा आज की जरुरत है .

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