बुधवार, 14 मार्च 2012

फूल दे पैलाग!  फूल देई छम्मा  देई .
एक बहुत ही ख़ुशी का त्यौहार . छोटे -छोटे बच्चे आते हैं घर की देहरी मैं फूल रखते हैं और बदले मैं उन्हें चावल दिए जाते हैं . बच्चों का समूह गावं के हर घर में जाता है . नवजात बच्चों के लिए एक अलग नई टोकरी ले कर जाते हैं . बच्चे पहले दिन से ही जंगलों से तरह -तरह के फूल तोड़ कर लाते हैं .बच्चे बहुत खुश दिखाई देते हैं 

 और घर की देहरी में बिखरे फूल घर को भी ख़ुशी दे जाते हैं .

आज त्यौहार मनाया .

सोमवार, 5 मार्च 2012

Abhinav Gatha: सुबह का उगता सूरज  दिन की कथा के शीर्षक की तरह है...

Abhinav Gatha: सुबह का उगता सूरज दिन की कथा के शीर्षक की तरह है...: सुबह का उगता सूरज दिन की कथा के शीर्षक की तरह है . इसलिए जरुरी है कि सुबह अच्छी हो . आशावादी हो दिन की कथा का शीर्षक . एक सुखद संगीत प...
सुबह का उगता सूरज  दिन की कथा के शीर्षक की तरह है .
इसलिए जरुरी है कि सुबह अच्छी हो . आशावादी हो दिन की कथा का शीर्षक .

एक सुखद संगीत पूरे दिन मन में गूंजता  रहे .

सपने हों आँखों में .
अंतर्मन में हो प्यास प्रेम की .

लेकिन यह सब होने के लिए क्या हम अपने चारों ओर के मानवीय और पर्यावरणीय वातावरण के प्रति संवेदनशील हैं?
हमने सहनशीलता खो दी है . धैर्य खो दिया है और दूसरों के लिए जीवन दूभर बनाते जा रहे हैं .दूसरों में वे सब जो प्रकृति के जीव हैं .जो प्राण हैं . उनमें स्वयं हम भी हैं . प्रकृति के साथ हमारा व्यवहार बहुत ही अमर्यादित होता जा रहा है.

हर क्षण धरती पर फटने वाले बमों / परमाणु युद्धों के इस दौर में  प्राकृतिक हितों की बात करना बेमानी है. महाशक्तियां तो  सब कुछ ख़त्म कर देना चाहती हैं .खुद को भी .

फिर भी एक चींटी की तरह  प्रयास तो किया जा सकता है . कि धरती में जीवन सभी के लिए  सुगम बने .
 


 

गुरुवार, 1 मार्च 2012

jangal bavhao

 इधर कई दिनों से देख रहा हूँ कि जंगल बेतहाशा जल रहे हैं  . उससे भी भयंकर तथ्य है कि जलने दिए जा रहे हैं .  सब ख़ामोशी से देखते जा रहे हैं . गावं वाले निर्लिप्त भाव से जंगलों को जलता हुआ देख रहे हैं . हम अगर ग्लोबल वार्मिंग की बात को छोड़ दें तो भी इस आग से स्थानीय स्तर पर तात्कालिक हानियाँ तो गंभीर रूप से घातक हैं ही . सबसे बड़ा नुक्सान तो वन्य जीवों का है. जो कि बेमौत मारे जा रहे हैं पक्षियों के घोंसले अण्डों सहित  जल रहे हैं बाघ ,तेंदुए और अन्य जंगली जानवर  जंगल छोड़ कर बस्तियों की तरफ भाग रहे हैं . जंगलों से महत्वपूर्ण औषधियां जल कर राख हो रही हैं . जो कि विलुप्ति की कगार पर हैं . चींटियों की नस्लें खतरे मैं हैं . जंगलों से जंगली जानवरों का भोजन ख़त्म हो रहा है . और सबसे महत्वपूर्ण नुक्सान यह कि सतह से पानी ख़त्म हो रहा है . 

लेकिन फिर भी हर वर्ष जंगल जलाये जा रहे हैं .  आग को रोकने का क्या किसी के पास कोई इन्तेजाम नहीं है क्या ? 
या आग बुझाना नहीं चाहते ? या यह लीसा और लकड़ी माफियाओं ,जंगली जानवरों के तस्करों और ग्रामीणों की मिलीभगत से हो रहा है. अकेला साधन हीन  वन विभाग कुछ नहीं कर सकता . 
जैसे भी हो रहा है .गावों के भविष्य के लिए तो अच्छा संकेत नहीं है . गावों में सूखा बढेगा , फसल का उत्पादन प्रभावित होगा , रोजगार के अवसर प्रभावित होंगे और पलायन बढेगा , अंततः गावों का अस्तित्व ही खतरे में होगा . 
हर साल चातुर्मास में करोड़ों का पौंधा  रोपण होता है और मार्च आते-आते सब जलकर स्वाहा हो जाता है धरती हरी-भरी होगी कैसे ? 
 

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...