गणतंत्र दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं .
गुरुवार, 26 जनवरी 2012
बुधवार, 25 जनवरी 2012
कभी कभी दिन की शुरुआत ही खराब होती है . वह पूरा दिन ही अपनी पटरी से उतर जाता है .
अपने कार्यक्रम मैं अनावश्यक तबदीली नहीं करनी चाहिए . यह सब इसलिए लिख रहा हूँ कि आज पूरा दिन अव्यस्था की भेंट चढ़ गया . दिन भर परेशान रहा सो अलग . खैर छोडो यह सब .
चुनाव प्रचार ने दिमाग खराब कर रखा है . लोग घेर लेते हैं कि क्या करें ?
मैं क्या कहूँ ? कि किसे वोट करें और किसे न करें . यह लोगों का अपना अधिकार क्षेत्र है . मैं तो इतना ही कहूँगा कि जो योग्य हो उसे वोट करें . खुद बिकें नहीं . अपने विवेक का प्रयोग करें . यही समय है जब हम पांच सालों के लिए लोक तंत्र की व्यस्था किसी को सौंपते है .
सुबह एक बार लग रहा था कि आज बारिश होगी . लेकिन दिन में बादल छंट गए . और इस ठण्ड में बारिश का आनंद लेने से वंचित रह गया . शाम ठण्ड बढ़ गयी . अंगीठी जलाई .आग ताप कर ठण्ड दूर की.
बारिश जम कर होनी चाहिए थी . लेकिन नहीं हुई यह चिंता का विषय है . इस समय बारिश का न होना गर्मियों में पानी का संकट पैदा कर देगा . देख रहा हूँ कि गधेरों से पानी गायब हो गया है .
मंगलवार, 24 जनवरी 2012
चुनाव चर्चा
चुनाव प्रचार/प्रपंच जोरों पर है ।
लेकिन दिखाई दे रहा है कि अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए जनता का विवेक नहीं जागा है । लोग तय नहीं कर पा रहे हैं कि किसे चुनें ?और क्यों चुनें ? अच्छे और बुरे तक को तय करने का विवेक नहीं है । धन की चकाचोंध में लोग यह मालूम करना भी भूल गए हैं कि इतना बेतहाशा धन आया कहाँ से ?प्रत्याशी की आय का श्रोत क्या है ? और यह प्रत्याशी इतनी विशाल धनराशि खर्च क्यों कर रहा है ? एक आम आदमी ने अपने जीवन में उतने सादे पन्ने नहीं देखे होंगे जितने नोट इन चुनावों में खर्च होते हैं । इन हालातों में तो लोकतंत्र /सत्ता न तो आम आदमी के हाथ में रहेगी और न ही आम आदमी के लिए । लोकतंत्र बाहुबलियों /धनबलियों /छलबलियों की गिरफ्त में आ जायगा । आम आदमी अन्याय और भ्रष्ट्राचार की मार सहेगा । वह लोकतंत्र में शक्तिविहीन होगा ।
धनबल ,बाहुबल,छलबल की चर्चा तो सुनी जा रही है लेकिन आत्मबल की आवाज कहीं नहीं सुनाई दे रही है । मतदाताओं को विवेक से निर्णय लेने की बात कहने के लिए कोई मध्यस्त प्रचारक नहीं है ।
लेकिन दिखाई दे रहा है कि अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए जनता का विवेक नहीं जागा है । लोग तय नहीं कर पा रहे हैं कि किसे चुनें ?और क्यों चुनें ? अच्छे और बुरे तक को तय करने का विवेक नहीं है । धन की चकाचोंध में लोग यह मालूम करना भी भूल गए हैं कि इतना बेतहाशा धन आया कहाँ से ?प्रत्याशी की आय का श्रोत क्या है ? और यह प्रत्याशी इतनी विशाल धनराशि खर्च क्यों कर रहा है ? एक आम आदमी ने अपने जीवन में उतने सादे पन्ने नहीं देखे होंगे जितने नोट इन चुनावों में खर्च होते हैं । इन हालातों में तो लोकतंत्र /सत्ता न तो आम आदमी के हाथ में रहेगी और न ही आम आदमी के लिए । लोकतंत्र बाहुबलियों /धनबलियों /छलबलियों की गिरफ्त में आ जायगा । आम आदमी अन्याय और भ्रष्ट्राचार की मार सहेगा । वह लोकतंत्र में शक्तिविहीन होगा ।
धनबल ,बाहुबल,छलबल की चर्चा तो सुनी जा रही है लेकिन आत्मबल की आवाज कहीं नहीं सुनाई दे रही है । मतदाताओं को विवेक से निर्णय लेने की बात कहने के लिए कोई मध्यस्त प्रचारक नहीं है ।
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